सरलमती

 

अनुश्री - कविताएं 

सही करें कितना ही हम उंगली तो भी उठती है,
गले लगा लें बड़े प्रेम से गाली तो भी मिलती है।
सरलमती को दुनिया में सम्मान मिला है कभी नहीं?
बकरी की पीड़ा भी क्या द्रवित किसी को करती है?

उंगली तोड़ दिया होता, गला दबाया यदि होता,
गीदड़ के पिल्लों का जबड़ा तो फिर खुला नहीं होता।
अनचाही घासों से फसलें जकड़ी हुई नहीं होतीं,
भाई-चारे का ठेका यदि हमने लिया नहीं होता।

चमन सुगन्धित सारा होता, अपने फूल खिले होते,
गन्दी गलियों में रहने को हम मजबूर नहीं होते।
अपने मन की मस्त हवा बस्ती बस्ती बहती होती,
सभी भेड़िये उसी समय यदि भय से भाग गए होते।
                                         कवि रमेश तिवारी 

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