मुक्तक
ऐ भारत की प्यारी नारी ! तुम स्वरूप श्रद्धा की हो,
तुम तो फूलों सी कोमल या छुई-मुई से नाज़ुक हो ।
नहीं, नहीं झाँसी की रानी, दुर्गावती आदि भी हो
तुम तो प्रबल दामिनी हो, काली चण्डी दुर्गा तुम हो !
धरती जैसी धैर्य धारिणी मुख पर अम्बर की गरिमा,
लज्जा ममता करुणा की बहती उर में तेरे सरिता ।
किंतु किसी ने तेरे बच्चों को छूने की कोशिश की,
ख़तरा बनकर झपटी होगी उस पर क्रुद्ध शेरन सी
सारे अब संसार में, गुंजित जय श्रीराम ।
अवधपुरी है सज गयी, जन्मभूमि अभिराम।।
जन्मभूमि अभिराम, बज रहे ढोल नगाड़े ।
पशु, पक्षी, हर जीव, कर रहे हैं जयकारे ।।
नये वर्ष के साथ, उछलते उत्सव प्यारे ।
राम कृपा के मेघ, घिरे हैं नभ में सारे ।।
वीर चाहिए भक्त चाहिए शेरों का परिवार चाहिए ।
भारी भीड़ हमें भेड़ों की नहीं चाहिए, नहीं चाहिए !
जीना है मस्ती भरी जिंदगी हारना है नहीं, हाफना है नहीं,
जीना हमें है जिलाना उन्हें, हमें इसलिए कोई चिंता नहीं।
जिन्हें घृणा है देश-प्रेम से उनका हिन्दुस्तान नहीं,
गद्दारों के लिए समझ लो यहाँ कोई स्थान नहीं ।
फिर से देश नहीं सौपेगा सत्ता नकली लोगों को,
ठीक यही होगा वे जाएँ अपने असली वतनों को ।
जीवन भर का जेल हो गया,
अनजाने मे खेल हो गया ।
आँखों ने अपराध किया,
सबला ने बंदी बना लिया ।
जीवन जिसकी राहें न हो,
जीवन वह जो प्रेमरिक्त हो,
अथवा पूरा स्वार्थसिक्त हो,
जीवन वह जो तपा नहीं है,
जिसमें आँसू बहा नहीं है,
दिल टुकड़ों में टूटा न हो,
किसी चाह में चीखा न हो,
जिसमें सपने मीठे न हों,
कंठ प्यास से सूखे न हों,
ऐसा जीवन मरा हुआ है,
उत्तर-दक्षिण पड़ा हुआ है ।
1.
मानता हूँ तुम सबसे ज़्यादा पी सकते हो,
पीना बुरी बात है भी बेहतर कह सकते हो ।
2. बरपी तबाही इस तरह जैसे क़यामत बिछ गयी,
नौजवानों की लगी जब भीड़ को वो दिख गयी ।
1. दिल कभी मोम था आज पत्थर हुआ
अब पिघलना ज़रूरी नहीं रह गया ।
विन रहम दर्द की आग जलती नहीं
अश्क भी इसलिए ठंढ से जम गया ।
3. इश्क खातिर मरेंगे नहीं लोग अब
मिल रहीं दिलरुबाएँ नयी रोज ही ।
चोट मजनू सहे वेवजह क्यों भला
ले रही मौज लैला कहीं और ही ।
4. सॉफ जाहिर वजह है दमन का मेरे
ढूढ़ता हूँ तसल्ली महज सब्र में ।
गार डाला पसीना बदन ऐंठ कर
भूंख तो भी लिए जा रही कब्र में ।
5. दामन मिला आदमी का मगर
जिंदगी है मिली एक हैवान की ।
आदमी की शकल हो गयी आम है
आदमी दिख रहा आज शैतान भी ।
जोकर अजीब देखो, ज्ञानियों की खीस देखो
नंगन की नाच देखो, गीत सुनो गूंगन के ।
ऐसे हास्य दृश्य के अनेक आइटम देखो
चित्र हैं विचित्र औ चरित्र राजनीति के ।
डूब गया हूँ तुम सरिता हो, बहँक गया हूँ तुम कविता हो !
चित्त चुरा ले वह सुगंध हो, स्वर की महिमामयी छन्द हो !
तुम गुलाब हो खिलती हो, हर चीज़ महकने लगता है,
झलक मात्र से ही मन में, उद्द्वेलन होने लगता है ।
नयनों का अभिषेक करा दो, साँसों पर वश रहा नहीं,
जीवन का अतृप्त कमल, हे प्रभा-रश्मि, है खुला नहीं ।
घट-घट के भगवान को, नहीं ठिकाना आज,
नहीं ठिकाना आज, उन्हें डर इस गीरी का,
सत्ता पर अधिकार, हुआ नेतागीरी का,
नेता बदले रूप, ज़रूरत हो जिस क्षण में,
भगे देवता आज, कभी थे जो कण-कण में ।।
इंडी धूल के बादल उड़ाने वाले अचानक गायब हो गए।
सोशल मीडिया पर मोदी को हराते-हराते खुद सो गए '
अब भारत उठ बैठा है कश्मीर से कन्याकुमारी तक।
उसके जग जाने से चोरों के गिरोह मायूस क्यों हो गए?
प्रेम छलकते जिन हृदयों में उनकी बातें सब पढ़ते हैं
जाति-पाति विष वाले काले खुद लिखते खुद पढ़ते हैं।
खिला कमल अब खिला रहेगा, भारत हिन्दू राष्ट्र बनेगा !
योगी विजयी मोदी विजयी यूपी है महाराष्ट्र है,
केशरिया में रंगा हुआ अब अपना सारा राष्ट्र है।
99 के बाद लगा पप्पू भारत का हुआ सगा ।
हिंदुस्तानी एक हुए इंडी के सपने फेक हुए।
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