बसों मेरे मन में गोविन्द मेरे




'अनुश्री-कविताएं' हिन्दी में रचित मन को मुग्ध कर देने वाली पुस्तक है। यह इतनी सरल है कि इसे कोई भी पढ़ और समझ सकता हैं । इसमें प्रवेश करते ही आपको ऐसा प्रतीत होगा कि आप सुन्दर से कल्पना लोक में हैं जिसमें एक ओर दिव्य मंदिर हैं जहाँ प्रार्थना व् भजन हो रहे हैं घंटियां बज रही हैं, दूसरी ओर भारतीय संस्कृति की अदभुद झांकियां सजी हुई हैं, राजनीति के रहस्यमयी सुरंग हैं, देश के स्वर्णिम अतीत के चलचित्र, नन्हें बच्चों के घरौंदे, प्रेम की चित्ताकर्षक वादियां हैं, मनोरंजक एकांकी, दिल पिघला देने वाली कहानी सहित ह्रदय को झकझोर देने वाली महामारी का चित्रण भी शामिल हैं।

बसों मेरे मन में गोविन्द मेरे,

लगा लो चरण में लगा लो, लगा लो !

डुबा दो मुझे प्रेम के सिंधु में,

डूबने से बचा लो, बचा लो, बचा लो !

हाथ मेरा पकड़ लो यशोदा दुलारे,

सहारे सहारे किनारे लगा दो !

दाता नहीं और कोई कहीं,

द्वार का नाथ अपने भिखारी बना लो !

संकोच क्यों मांगने में करूं, 

मांगता हूँ चरण दास अपना बना लो   

तुम हो हमारे गोपाल प्यारे,

तुम्हीं हो हमारे, हमारे तुम्हीं हो ! 

तुम्हीं मेरे राजा, तुम्ही मेरे स्वामी,

तुम्हीं आस हो, मेरी सांसें तुम्हीं हो

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