Monday 8 April 2024

बिहारी लाल


अवधी भाषा के इस सवैया छन्द को अनुश्री - कविताएं से लिया गया है। अनुश्री पढ़िए और ऐसी सैकड़ों कविताओं का आनंद लीजिये : 








नंदनन्द के धाम अनंद महा, बहु भाय रही ब्रज की फुलवारी ।
उठि धाय चलो तहँ को सुसखा, सब जाय रहे पुर के नर-नारी ।।
बहु रंग के फूल अनन्त खिले, अलि बृंद अचंभित आज अनारी ।
मन्द गती की समीर सुगन्धित, कंपित पुष्प लता अरु डारी ।।

सर कन्चन थाल में पंकज लै, करपै नव चंचल अंचल डारे ।
स्वागत हेतु खड़ी हरि के, कछु लाज के कारन घूँघुट काढ़े ।।
अवलोकत हूँ खग हूँ न उडें, अति आतुर ह्वे धुनिहूँ न सुनावें ।
आवत देखि के राधे गोपाल, उतावल ह्वे सुधि-बुद्धि नसावें ।।


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