Anushree - Kavitaen

जो लोग यह सोचते हैं कि सनातन डेंगू है, मलेरिया है, मच्छर है, कोरोना है अतः वे इसे समाप्त कर देंगे, उन्हें चाहिए कि वे अनुश्री की इस कविता को पढ़ें।

हम पीपल हैं, हम चंदन हैं,
हममे ईश्वर की भक्ती,
हिंसक को हमने हिरन बनाया,
शान्ति हमारी शक्ती ।
हम स्वर्ण धातु हैं, दैविक हैं हम,
आदि सभ्यता की पहिचान,
परत-परत इतिहास पलट लो, सब बदले
हम अब भी मानवता के प्राण ।
दुनियाँ को धमकाने वाले चले गये,
हमें बदलने वाले
खुद अपने परिचय में उलझ गये,
कोहरे छाये, बादल बिजली कड़की,
घनी अंधेरी रातें आईं,
ओले वर्षे, कठिन कुटिल चिंगारी भड़की,
किन्तु सूर्य पूरब में फिर से
उसी तरह से उग आया है ।
आज तिरंगा मुस्काया है !
शताब्दियों पश्चात
भारती गरज उठी है,
अम्बर की दीवारें सारी काँप उठी हैं,
महाद्वीप की महाशक्ति हम फिर से होंगे,
अहंकार का काल निकट आया है ।
आज तिरंगा मुस्काया है !
From #AnushreeKavitaen Poet Ramesh Tiwari

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