राम कथा - पूज्य व्यास शिवानंद जी ‘भाई श्री’
शुक्रवार, 4 नवम्बर 2022 पूज्य व्यास शिवानंद जी ‘भाई श्री’ ने गवल गार्डन, जेल रोड - शहर बहराइच में राम कथा के महत्व का वर्णन करते हुए कहा कि राम कथा से ह्रदय दिव्य हो जाता है, मुख कीर्तिवान, शान्त और प्रसन्न हो जाता है इसलिए यदि गीत सजता है तो उसे श्रोता पसंद करता है किन्तु यदि प्रभु श्री राम की कथा से श्रोता सजता है तो उसे स्वयं परमात्मा पसंद करता है । कथा में उत्तम जीवन जीने का मार्ग मिलता है । कथा से चित्त में विषाद समाप्त हो जाता है । जैसे अशोक वाटिका में सीता मैया को विचलित देखकर हनुमान जी महाराज ने उन्हें राम जी की कथा सुनाकर उनकी पीड़ा का निवारण कर दिया । निहत्थे रावण पर राम जी ने वार नहीं किया तब रावण कहता है कि यदि शत्रु हो तो राम जैसा हो, सनातन की यह मर्यादा है । सनातन की मर्यादा देखिये कि जहाँ पिता के एक बचन से राम 14 वर्षों के लिए वनवास पर चले जाते हैं । सनातन ही एकमात्र धर्म है जिसे धर्म कहा जा सकता है । उन्होंने सबसे कहा कि राम चरित मानस की कम से कम एक चौपाई सभी को नित्य पढ़ना ही चाहिए । इस ग्रन्थ श्रेष्ठ की केवल एक ही चौपाई सदमार्ग पर ले जाने के लिए प्रयाप्त है । अन्त में पूज्य व्यास जी महाराज ने मधुर भजनों के साथ मानस के मंगलाचरण की विस्तृत व्याख्या की । वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि। मंगलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ॥ अर्थात वम शब्द से प्रारम्भ होने वाला यह ग्रन्थ अमृत सरोवर है । यदि आप ठाकुर जी के हो गए तो माता लक्ष्मी जी का सानिध्य आपको निश्चित ही प्राप्त होना है ।
शनिवार, 5 नवम्बर 2022 व्यास शिवानंद जी ‘भाई श्री’ ने कहा कि मैं संस्कृति, संस्कार और सनातन पर आधारित कथा कह रहा हूँ क्योंकि इनकी रक्षा का उत्तरदायित्व प्रत्येक कथा व्यास और धर्मगुरु का होता है । उन्होंने राम चरित मानस के मंगला चरण के शेष श्लोकों की व्याख्या करते हुए कथा ऋषि भारद्वाज और महर्षि याग्यवलिक के संबाद तक कही । सीता राम वन हैं और उसमें विचरण करने वाले महर्षि वाल्मीकि कोयल हैं और प्रभु हनुमान जी तोता हैं जिन्होंने इसी रूप को धारण करके गोस्वामी जी को राम जी के दर्शन कराये थे । आप सभी के जीवन में भी भगवान् कभी न कभी आते हैं । संभवतः आप उन्हें पहचान नहीं पाते । जिस व्यक्ति को एक पल भी राम के बिना चैन नहीं मिला वही आगे चलकर तुलसीदास बना । आपकी मोबाईल में, गाडी में, आफिस में सीता राम के चित्र होने चाहिए । प्रत्येक स्थिति में यदि राम जी की याद बनी रहे तो उसके बराबर न कोई पूजा है और न कोई भक्ति है । भगवान् के चरणों में अनुराग जैसी काम भावना, सनातन की रक्षा में क्रोध, अपनी संस्कृति का मद, सभी प्राणियों से मोह तथा राम नाम का लोभ भी जीवन को धन्य कर सकता है । लोग हमारे देवी देवताओं का मजाक इसलिए उड़ाते हैं क्योंकि हम उसे स्वीकार करते हैं । यदि कृष्ण शांति दूत बने तो उन्होने भीष्म पर चक्र भी उठा लिया था । भारत को सोने की चिड़िया इसलिए कहा गया क्योंकि यहाँ संस्कारों की चिड़िया रहती है । यहाँ की महिलाएं अपना चित्र नहीं बल्कि चरित्र सजाना जानती हैं । उन्होंने कहा कि एकलब्य राजा जरासंध के प्रधान सेनापति के पुत्र थे । जब उन्हें युद्ध में शामिल न होने के लिए कहा गया तो उन्होने कहा आपने मेरा अंगूठा ही काट लिया । महाभारत में ऐसा लिखा हैं । महर्षि बाल्मीकि के विषय में उन्होने कहा कि वे वरुण देवता के दसवें पुत्र थे न कि किसी जंगल के डकैत । उन्होंने श्रोता समूह से अनुरोध किया कि मंगलवार को राम विवाह की कथा होगी उस दिन सभी भारतीय परम्परा की पोशाक धोती को धारण करके तथा तिलक लगाकर कथा श्रवण करने आवें । इससे कथा मण्डप की छवि अदभुद होगी । तीर्थ करने से कोई लाभ नहीं यदि आप अपने मोहल्ले के मंदिर का सुबह सायं दर्शन नहीं करते हो । वायु देवता, जल देवता, अग्नि देवता सहित अन्य बहुत से देवता आपके जीवन को चलाते हैं, क्या उन्हें कोई टैक्स नहीं चाहिए ? अतः आप सभी सुबह 8 से 10 के मध्य कथा स्थल पर आवें और यज्ञ में शामिल होने की कृपा करें ।
रविवार, 6 नवम्बर 2022 व्यास शिवानंद जी ‘भाई श्री’ ने आज भगवान शंकर और माता पार्वती के विवाह की कथा कही । कैसे शम्भू और भवानी कुम्भक ऋषि के पास गए, उनसे राम कथा सुनी, फिर कैसे माता सती को राम जी के पारब्रह्म परमेश्वर होने में संदेह हुआ, उन्होंने परीक्षा ली और कैसे महादेव ने उनका त्याग कर दिया । अंत में कैसे दक्ष प्रजापति की सभा में माता सती ने आत्मदाह कर लिया और पार्वती के रूप में उनका जन्म और पुनः भगवान शंकर से उनका विवाह हुआ । इस कथा के दौरान व्यास जी ने यह भी बताया कि राम परीक्षा के नहीं बल्कि प्रतीक्षा के विषय है । ‘राम कथा सुन्दर करतारी संसय विहग उड़ावन हारी ।‘ जीवन सूखा नहीं होना चाहिए बल्कि उसे राम रुपी रस से युक्त होना चाहिए । मंदिर में यदि मूर्ति ही देखते रहोगे तो कुछ नहीं होगा, वहां जब भगवान के सुन्दर स्वरुप का भाव ह्रदय में जागेगा तभी पूजा पूर्ण होगी । मंदिर में पहले भगवान के चरण पर दृष्टि पड़नी चाहिए और धीरे-धीरे उनके सारे शरीर को निहारना चाहिए तभी मूर्ति में भगवान के दर्शन कर सकोगे । गौ, गंगा, धर्म और देश की निन्दा सुनना पाप है । ‘जाके प्रिय न राम वैदेही, सो नर ताजिये कोटि बैरी सैम यद्यपि परम सनेही ।‘ राम के लिए प्रहलाद ने पिता का त्याग किया, शंकर ने सती को छोड़ दिया । महादेव ने पहले सती जी को समझने की कोशिश की फिर जब वे नहीं मानी तब उन्होंने कहा: ‘होइहै सोइ जो राम रचि राखा ।‘ इसलिए इसका अर्थ यह नहीं होता कि सब कुछ राम जी पर छोड़ दो, पहले प्रयत्न करो । ‘कर्म प्रधान विश्व रचि राखा, जो जस करय सो तस फल चाखा ।‘ पद पाकर जो रघुपति का पद त्यागे उसका वही परिणाम होता है जो दक्ष का हुआ था । जिसकी कोई रक्षा नहीं करता उसकी रक्षा तो भोले बाबा करते हैं । उन्होंने सांप बिच्छू इत्यादि जीवों को संरक्षण दिया । अतः महादेव के चरणों में यदि कल्याण नहीं है तो फिर अन्य कहाँ हो सकता है । उन्होंने मनुस्मृति का उद्धरण प्रस्तुत करते हुए कहा आदर्श पत्नी वह है जो गृह कार्य में दक्ष हो, जिसकी वाणी मधुर हो, जो अपने पति में प्राण का अनुभव करती हो और जो पतिव्रता हो ।
सोमवार, 7 नवम्बर 2022 व्यास शिवानंद 'भाई श्री' ने कहा कि नारायण ने राम के रूप में अवतार एक नहीं बल्कि पांच उद्देश्यों की पूर्ती के लिए लिया था । उन्होंने जालन्धर की धर्मपत्नी बृंदा की कहानी सुनायी जो कि नारायण की अनन्य भक्त थी फिर कैसे तुलसी बनी और कैसे अपने ईष्ट से नाराज होकर उन्हीं को श्राप दे दिया । उसी श्राप से भगवान् सालिगराम बने और और तबसे उनकी पूजा तुलसी चढ़ाकर होने लगी । व्यास जी ने एक बहुत सुन्दर भजन सुनाया जिसे सुनकर लोग झूमे उठे । अवध सैंया मेरी छोड़ो न बहिया, सिया के सैंया मेरी छोड़ो न बहियाँ...... भगवान् शंकर नारद के गुरु हैं । नारद अपने गुरु की बात न मानकर भगवान् के पास अपने तप की सफलता सुनाने चले गए और परिणाम बहुत ही अष्टकारी हुआ । इसलिए गोविन्द से पहले गुरु पर भरोसा होना चाहिए । पाप तो बहुत हैं किन्तु महापाप केवल पांच माने गए हैं : ब्रह्म हत्या, सुरा पान, स्वर्ण की चोरी, गुरु, मित्र और भाई के पत्नी के प्रति निषिद्ध धारणा और इन चारों में से कोई भी अपराध किये हुए व्यक्ति की संगत करना । नयी पीढ़ी को भागवत कथा सुनना बहुत आवश्यक हो गया है क्योंकि देश यदि सुसंस्कृत नहीं होगा तो सशक्त नहीं हो सकता । जीवन साधन कमाने के लिए है किन्तु इसमें पड़कर साधना का त्याग करने के लिए बिलकुल नहीं । भक्ति में जब आगे बढ़ोगे तो माया, मोह, भय सब पीछे छूटते चले जायेंगे ।
मंगलवार, 8 नवम्बर 2022 व्यास शिवानंद जी ‘भाई श्री’ ने भगवान प्रभु राम जी की बाल लीलाओं का वर्णन किया । भगवान शंकर ने गिरिजा से कहा कि आज मैंने एक चोरी की है । भवानी ने जवाब दिया मैं विश्वास नहीं कर सकती कि आपने चोरी की होगी । भवानी, मैंने और कुछ नहीं बल्कि काग भुसुंडि के साथ बाल प्रभु राम के दर्शन की चोरी की है । मैया कौशिल्या ने चारों भाइयो को अलग-अलग चार पालने में लिटाया तो चारो रोने लगे और किसी यत्न से जब चुप नहीं हुए तो माता गुरु वशिष्ठ के पास गई । गुरुदेव ने सुझाया कि लक्ष्मण को राम के साथ और शतुध्न को भारत के साथ कर दो । ऐसा करने पर चारो खेलने लग गए । चारो भाई जब खेलने गए तब लखन लाल ने राम जी से कहा मुझे प्रतिद्वंदी मत बनाना । यहाँ भरत लाल विपक्ष में होने को यह कहते तैयार हो गए कि चाहे पक्ष हो या विपक्ष प्रभु की लीला पूरी होनी चाहिए । चारों का नामकरण गुरुदेव ने उनके गुणों के आधार पर किया । राम अर्थात जो सारे विश्व को विश्राम दे, जो भक्ति में रत वो भरत, जिसके नाम से शत्रु शत्रु न रह जाय वो शत्रुघ्न, जो शेष है, सहारा है वही लक्ष्मण । व्यास जी ने शास्त्रीय संगीत में गाया : 'ठुमुक चलत राम चन्द्र बाजत पैजनिया ।' काग भुसुंडि जी को संदेह हुआ कि यदि बालक राम परमेश्वर होते तो रोते क्यों । इस संदेह को दूर करने के लिए राम जी का हाथ भुसुंडि जी के पीछे लग गया, वे जहाँ-जहाँ उड़े भगवान का हाथ वहां तक पहुँचता रहा । अंत में जब लौटकर आये तो देखा कि बालक राम के मुंह में सारा ब्रह्माण्ड समाया है । अब उन्हें लगा राम सब में ही नहीं अपितु सब राम जी में है । उन्हें यह ज्ञान हुआ कि यदि नाम और रूप हटा दिया जाय तो सब कुछ राम है ।
भक्त जब तक भगवान् से जुड़ा रहता है तब तक आनंद में रहता है । इसलिए यदि भक्त बनना है तो चौबीस घंटे के बनो । व्यास जी ने बड़ा मधुर भजन सुनाया : 'मेरी चाहत की दुनिया बसे न बसे, मेरे दिल में उजाला सदा चाहिए ।' राम जी की कथा सुनना अर्थात सत्संग तपस्या से भी बढ़कर है । एक बार गुरु विश्वामित्र और गुरु वशिष्ठ में इसी बात को लेकर मतभेद हुआ तो दोनों शेष भगवान के पास गए । वहां विश्वामित्र जी ने सारी तपस्या का प्रभाव लगा दिया तो भी पृथ्वी उनसे नहीं सम्भली जबकि वशिष्ठ जी ने केवल दो घडी के सत्संग का प्रभाव लगाया तो उनसे पृथ्वी संभल गयी ।
12 नवम्बर 2022 व्यास शिवानंद जी भाई ने आज राम वन गमन और राम भारत मिलाप की हृदयस्पर्शी कथा कही । उन्होंने कहा जब भरत जी ननिहाल से लौटकर आये तब गुरु वशिष्ठ ने एक सभा बुलाई जिसमें उन्होंने भरत जी को समझाने की कोशिश की कि वे अपने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए राज सिंहासन संभालने के लिए तैयार हो जाएँ जैसे परशुराम ने किया था या पुरु ने अपने पिता ययाति की इच्छा पूरी की थी । भरत लाल जी ने गुरुदेव तथा अपने स्वर्गीय पिता दोनों के निर्देशों को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि यदि यह धर्म होता तो अनिष्ट न होता क्योंकि जहाँ धर्म होता है वही सुख होता है । वे अपने जेष्ठ भ्राता को मनाने निकल पड़े । जब ऋषि भारद्द्वाज ने उनकी प्रशंसा की कि आप संत हैं, आपने राजपद का त्याग कर दिया । इस पर उन्होंने उत्तर दिया कि मैं संत नहीं हूँ बल्कि मैं लोभी हूँ क्योंकि मैं राजपद का त्याग रामपद प्राप्त करने के लिए कर रहा हूँ । भरत लाल जी ने प्रयागराज से कहा कि मैं क्षत्रीय हूँ मांगना मेरे धर्म के प्रतिकूल है, फिर आपके यहाँ मेरे वंश की कन्याएं रहती हैं, यमुना सूर्यपुत्री और गंगा भगीरथ पुत्री, तो भी मैं अपने धर्म का त्याग करके आपसे कुछ मांगना चाहता हूँ : "जनम जनम रति राम जी पद यह वरदान न आन" । व्यास जी ने कहा कि अनजाने में किये गए अपराध की सजा स्वप्न में मिलाती है । किन्तु जानबूझ कर किये गए अपराध की सजा से कोई बच नहीं सकता । इसलिए किसी बुरी घटना का दोष किसी अन्य पर लगाना उचित नहीं । झूठ बोलना अपराध है किन्तु कन्या की शादी के लिए, गाय की रक्षा के लिए बोले गए झूठ अपराध नहीं हैं । सत्य बोलना धर्म है किन्तु अप्रिय सत्य धर्म नहीं है । हमें चोटी रखने और तिलक लगाने में गर्व का अनुभव होना चाहिए, विशेष रूप से ब्राह्मण को क्योंकि यदि वह धर्म का अनुसरण नहीं करता है तो दूसरे भाइयो से कैसे अपेक्षा की जा सकती है । अधर्मी यदि अधर्म करे धरती को बहुत ग्लानि नहीं होती किंतु यदि धर्मात्मा अधर्म करे तो धरती माँ इस वेदना को सहन नहीं कर पाती । उन्होंने जोर देकर कहा धर्म केवल शिवानंद का विषय नहीं है बल्कि आप सभी का भी । जिम में पसीना बहाने में शर्म नहीं आती पिता के चरण दबाने में शर्म आती है ।
रविवार, 13 नवम्बर 2022 व्यास शिवानंद जी भाई ने सूपनखा के नाक कान कटने, खर दूषण वध, सीता हरण, राम जी का सुग्रीव से मित्रता की कथा कही । सूपनखा वासना की प्रतीक है । वह पंचवटी में मेकअप करके आई । सूपनखा के नाखून तो बड़े हैं किन्तु बाल छोटे हैं । वह राम जी से विवाह का प्रस्ताव करती है । सूपनखा विधवा थी किन्तु उसने कहा वह कुंवारी है । वह वासना के चक्कर में दौड़ी-दौड़ी घूम रही है । वह लक्षमण जी से कहती है सुन्दरी तो कह दिया किन्तु मेरी और देख नहीं रहे हो । सोच कर देखो भारतीय महिलाएं ऐसी नहीं होतीं हैं । सूपनखा विदेशी संस्कृति का एक उदहारण है । जो भारतीय महिलायें विदेशी संस्कृति अपनाती हैं वे आज की सूपनखा ही हैं । जीवन में जब वासना आती है तो बहुत सी उपलब्धियां लेकर आती है किन्तु ऐसे व्यक्ति का समाज में स्थान रावण या सूपनखा की तरह होता है, संत इसके चक्कर में नहीं पड़ते । सूपनखा का जब नाक कान कट गया वह अपने भाई खर दूषण से झूठ बोली कि मैं गोदावरी में पानी पीने गयी थी वहां दण्डक वन में दो अत्यंत सुन्दर राजकुमार थे उनमें से एक ने मेरी यह दशा की है । खर दूषण के मारे जाने के बाद वह रावण के पास गयी और वहां भी झूठ बोला । वह जानती थी कि उसका भाई वासना को महत्त्व देगा संबंधों को नहीं । इसलिए उसने कहा मैं आपके लिए एक अत्यंत सुन्दर स्त्री को लाने गई थी जो दो राजकुमारों के साथ रहती है । किन्तु वहां एक राज कुमार ने मेरे नाक कान काट लिए । वासना में लिप्त लोगों के वैसे भी नाक कान नहीं होते ।
व्यास जी ने भगवान राम जी की सुंदरता का वर्णन करते हुए कहा कि अयोध्या वासी राम जी से इतने मुग्ध हुए कि स्त्री बनकर उनके सानिध्य की कामना करने लगे और वही सब द्वापर में गोपियाँ बने । उन्होंने कहा भक्ति में अनन्यता होनी चाहिए । यह नहीं कि सोमवार को शंकर जी, मंगलवार को हनुमान जी, वृहस्पतिवार को भगवान विष्णु, शनिवार को शनि देव । इससे काम नहीं चलता । एक ईष्ट होना चाहिए जैसे महाराज तुलसी दास जी ने कृष्ण रूप में भगवान को प्रणाम नहीं किया और कहा, 'तुलसी मस्तक तब नवे जब धनुष वाण लो हाथ ।' हनुमान जी के पास जब गरुण जी आये और कहा कि आपको भगवान् कृष्ण ने बुलाया है । यहाँ हनुमान जी ने भी जवाब दिया कि मैं कोई कृष्ण को नहीं जनता । यहाँ गरुड़ ने घमंड में हनुमान जी से कहा, आप जानते हो कि आप किससे बात कर रहे हो । हनुमान जी ने गरुष को उठाकर ऐसा फेका कि वे समुद्र में जाकर गिरे । भगवान अपनों के भी दर्प का शमन करते हैं ।
प्रस्तुति, रमेश चन्द्र तिवारी
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