सवर्ण
कांग्रेस के लोग दस दस पंद्रह पंद्रह वर्षों तक
प्रधान मंत्री की कुर्सी पर बैठे रहते हैं – पता नहीं कौन सा घी खा कर आते हैं कि थकते नहीं | बीजेपी का प्रधान मंत्री तो केवल चार साढ़े चार वर्षों में ही थक कर चूर हो
जाता है | सामान्यतः
पार्टियाँ यह सोचती हैं कि सवर्णो की संख्या बहुत कम है उपर से वे वोट डालने भी कम
ही जाते हैं अतः उसकी ओर ध्यान देना बहुत ज़रूरी नहीं है | हाँ, उसके खिलाफ कुछ करके चुनाव ज़रूर जीता जा सकता है
क्योंकि एक बड़ी संख्या में दलित व पिछड़ा वर्ग उससे घृणा करता है | खैर, इन्हें
यह पता नहीं है कि सवर्ण वोट तो उतना नहीं डालने जाता है लेकिन एक बड़ी संख्या में
वोटरों को मोड़ देता है | कांग्रेस
ने इसी के दम पर निर्वाध राज किया और जब जब यह वर्ग बीजेपी के साथ जुड़ गया वही
कांग्रेस ज़मीन पर आ गयी | बहन
मायावती जी इसी के दम पर मुख्य मंत्री बनी थीं | बाद में जब उन्होने इस वर्ग को धोखा दिया वे राजनीति से गायब हो गयीं | इसी वर्ग ने विश्वनाथ प्रताप सिंह को प्रधान मंत्री बनाया और जब उन्होने इस
वर्ग का पैर काटा तो उनका नाम लेने वाला कोई नहीं रह गया | 2014 में इसी वर्ग के भक्तों ने माहौल बनाया तो मोदी जी राजनीति के धरातल पर हीरो
बनकर उभरे | उन्हें
यह नहीं भूलना चाहिए कि यदि गिलहरी पहाड़ की तरह अपने पीठ पर जंगल नहीं उगा सकती
तो पहाड़ भी उसमें से एक अखरोट नहीं तोड़ सकता | घृणा की राजनीति से घृणित और कोई राजनीति नहीं | बड़े बड़े शब्दों में तारीफ अक्सर व्यंग्य होता है | एससी/एसटी अत्याचार क़ानून को कुछ इतना बढ़ा चढ़ा दिया गया कि अब वह व्योहारिक
ही नहीं रह गया | जब लोग
बिना अपराध षड्यंत्र से जेल जाएँगे तो किसी को पता है इस समाज का क्या होगा ? मेरा मतलब यह नहीं है कि बीजेपी केवल सवर्णों का पक्ष ले सभी देश के नागरिक
हैं अतः सबका साथ सबका विकास की राह पर पूरी ईमानदारी से चले और वे दलित वे पिछड़े
जो अभी भी वंचित जीवन जी रहे हैं उन्हें हर तरह का सहयोग देकर मूल धारा में लावे | ईर्ष्या किसी सुदामा को संपत्ति देने में नहीं होती – ईर्ष्या तो तब होती है जब किसी धनवान के महल उसे सुदामा कहकर बनवाए जाते हैं |
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