Sunday 8 July 2018

पसीने की बूँद



आज तो ऐसी उमस है कि पंखा की तो बात न करिए कूलर भी फेल | ऐसे में मैने एक महिला को आज एक चकरोड के किनारे घास खोदते देखा | जब ढेर लग गया तब उसने उसे झाड़-झाड़ कर बोरे में रखना शुरू किया | मैं वहाँ खड़ा नहीं हो पा रहा था लेकिन उसके शरीर पर पसीने की एक बूँद भी न थी | मैने पूछा, "इसे अपने जानवर को कैसे खिलाओगी ?" "मैं इसे घर ले जाकर डंडे से पीटूँगी," उसने कहा | "फिर जब यह पूरी तरह सॉफ हो जाएगी तब इसे ऐसे ही भैंस को खिला दूँगी | थोड़ा सा भूसा और आंटा भी उसे खाने को दूँगी |" "सुबह तुम्हारी भैंस कितना दूध देगी ?" मैने उससे फिर पूछा | "बाबूजी, दो ढाई सौ सुबह मिल जाते हैं और सौ रुपये शाम को |" उसकी मेहनत और उसकी कमाई ने मुझे सोचने के लिए मजबूर कर दिया | फिर मुझे याद आया कि किसी आफ़िस में सवा लाख महीने पाने वाला अधिकारी किसी नागरिक को कैसे तीन दिन दौड़ता है सिर्फ़ तीन लाइन कुछ लिख देने के लिए क्योंकि पहले दिन वह किसी से बातचीत करने में व्यस्त था और दूसरे दिन वह किसी और का कुछ काम कर रहा था | वाह रे हिन्दुस्तान ! इसीलिए तो सबको सरकारी नौकरी चाहिए | आश्चर्य यह है कि ऐसे ही लोग कहते हैं कि मोदी यह नहीं कर रहे हैं, वह नहीं कर रहे हैं - देश को दुबोने में लगे हैं | सामाजिक समता के नाम पर आप अपने ही समाज को धोखा दे रहे हो और ज़िम्मेदार मोदी जी को ठहरा रहे हो ?

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