Saturday 16 June 2018

दलित साहित्य

मैं न तो आरक्षण का विरोधी हूँ और न बाबा साहब के विचारों का – मैं दलित साहित्य में लगातार भरती जा रही घृणा का विरोधी हूँ जिसकी वजह न तो बाबा साहब हैं और न ही उनके द्वारा बनाई गयी आरक्षण नीति | दलित साहित्य में घृणा और उसकी प्रतिक्रिया में सामान्य वर्ग की उनके प्रति घृणा का कारण यदि कोई है तो वह कांग्रेस की पार्टी-नीति है जिसने अब तक पुनरावृति के माध्यम केवल 4 प्रतिशत लोगों तक ही आरक्षण का लाभ पहुचने दिया है | यही 4 प्रतिशत लोग अपने को आराम की स्थिति में रखने के उद्देश्य से अपने भाइयो में सामान्य वर्ग के प्रति घृणा का भाव भरने लगे ताकि वे अपने अधिकार को सोच न सके और यह आवाज़ न उठाएँ की उन्हें शिक्षित किया जाय और जिनको एक बार आरक्षण मिल चुका है उन्हें पुनः उससे वंचित करके दूसरों को मौका दिया जाय | यही चार प्रतिशत आरक्षित धीरे-धीरे कांग्रेस के प्रचारक बन गये और पूरा हिन्दू समाज दो भागों में बँट गया | बाद में इसका लाभ उठा कर एक क्षेत्रीय दलित पार्टी भी अस्तित्व में आ गई | इसने भी बाबा साहब की पूरे दलित समाज को उपर उठाने के उद्देश्य को स्पष्ट नहीं किया बल्कि और भयानक घृणा की राजनीति करने लग गयी | आज शायद ही मनुस्मृति को कोई पढ़ता हो | अब भी उसकी ढोल पीटने वालो की क्या मंशा हो सकती है सोचो ! वाह री राजनीति ! इन चार प्रतिशत लोगो में से जहाँ कहीं भी कोई है उसे न राष्ट्र से मतलब न समाज से मतलब केवल घृणा उगलेगा | सोशल मीडिया पर लिखने के लिए इनके पास और कोई विषय नहीं है | आज इनमें से एक पूर्व प्रवक्ता सज्जन कहने लगे कि देखो दलित आज कितना निरीह है | इनसे कह दिया गया है राम और हनुमान तुम्हारे भगवान हैं और ये अब भी मत्था झुकाए घूम रहे हैं | देखो आज यही एकमात्र सूत्र है जिससे समाज थोड़ा बहुत जुड़ा है | इन सज्जन की घृणा देखो कि ये उसे भी तोड़ देना चाहते हैं |

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