Sunday 29 April 2018

मेरे मन



क्या देखा, क्यों मुग्ध खड़े हो
प्यारे मेरे मन ?
कोमल किरणों की धारा पर
कुछ चित्र रुपहले
बनते, मिटते, मोहित करते ?

क्या सुनकर तुम खोए से हो
प्यारे मेरे मन ?
वायु की निर्मल धारा में
संगीतमयी, अति भव्य, मधुर
वाणी के गरिमा मय स्वर ?

वो क्या जिसका पान किया
मतवाले मेरे मन ?
टेसू की पंखुड़ियों में
चैतन्य चुरा ले, चित्त सुला दे
स्वर्गिक मृदु वह मधु ?

किस सुगंध में नयन बन्द हैं
प्यारे मेरे मन ?
बासन्ती वैभव में सँवरी
हरी स्वेत चम्पा झबरीली
मादक उसकी बढ़ती साँसों की ?

किसने तेरा हाथ पकड़
निष्प्राण कर दिया मेरे मन ?
एकान्त शान्त उद्यान किनारे
छिपती, बचती हर एक दृष्टि से
उस प्यारी लतिका के किसलय ?

ये भोरे मेरे मन,
मत निराश हो, तू अनन्त में,
तृष्णा तेरी अनन्त,
यह जीवन है -
आएँगे ऐसे जीवन अनन्त ! - Ramesh Tiwari 
रविवार, 29 अप्रैल 2018

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