Monday 16 April 2018

अभिलाषा


वो देखो, वही चमेली है न !
सूखी डंठल पर मुरझाई सी
वह तुन्हें दिखती होगी ।
इधर आओ, अब मेरी आँखों से
उसे निहार कर देखो :
वह अभी भी उतनी ही स्वेत है,
पहले से अधिक कोमल,
उसके अधखुले ओंठ निश्छल,
उसकी सुगन्ध और व्यापक है ।
उसका साहस तो देखो !
वह कई दशकों से
तूफ़ानों से लड़ती,
प्रचंड ग्रीष्म से खेलती,
शूल सी शीत का
तिरस्कार करती
अभी तक खिली है ।
शायद एक अभिलाषा की शक्ति
उसे मिलती रही है ।

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