Monday 3 July 2017

मेरे कृष्ण कन्हैया



तुम जितना रूठो मुझसे
तुम जितना भागो मुझसे
जी चाहे जितना मुझे सताओ
मैं तेरा हूँ तुम मेरे हो
निकल सको तो निकलो हिय से

ये मेरे कृष्ण कन्हैया
ये जीवन नाव खेवइया
मैं तुझमें इस तरह घुल चुका
जैसे मिश्री जल में
छोड़ सको तो छोड़ो दुर्बल बहियाँ

जीवन इंजन तो चलता है
पर पहिया वहीं घूमता है
हे मनभावन प्यारे कान्हा
हाथ लगा दो मुझे बढ़ा दो
दलदल में यह दुखी खड़ा है

मैं पुकारता तुझे रहूँगा
हाथ जोड़कर खड़ा रहूँगा
मुरली तेरी नहीं बजेगी कब तक
कब तक छिपे रहोगे
निश-दिन राधे रटा करूँगा
                                - रमेश तिवारी

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