Sunday 18 October 2015

चुपके से आई

'सपनों में चुपके से आई' गीत की रचना मैने २८ मार्च १९८८ को की थी उन दिनों मैं रायपुर मध्य प्रदेश के नर्मदापारा में रह रहा था



रजनी के आँचल में सब सो गये थे
तभी मेरे सपनों में चुपके से आई,
फिर धीरे-धीरे अनिल के सलिल पर
परी तैरती सी पड़ी हो दिखाई ।
लो सानिध्य अनुभूति मैने भी पाई
तभी मेरे सपनों में चुपके से आई ।

आ जा, तू आ जा, मेरे पास आ जा,
उड़ना तुझे, आ जा री, मैं सिखाऊँ !
जी में उमंगें उठी उड़ चलूं मैं
तेरे साथ हो के कहीं दूर जाऊँ ।
पर कोशिशों ने निराशा जताई
तभी मेरे सपनों में चुपके से आई ।

काले दुशाले पे तारों की बुटें
युगल शून्य जगती थे सोए उसी में ।
भूतल हृदय पर मैं दौड़ता था
तू उज्जल परी सी थी फिरती गगन में ।
आतुर दृगों ने धीरज गँवाई
तभी मेरे सपनों में चुपके से आई ।

अंबर का प्रेमी हृदय मानों मैं था
धरती के दिल की तू भी मूर्ति थी,
हम एक के दूसरे में पिरोए
हुए प्यार की भावना जोड़ते थे ।
अचानक मेरी चेतना लौट आई
तभी मेरे सपनों में चुपके से आई ।

नयनों ने खोजा तुझे फिर न पाया
अधूरी रही बात होनी दिलों में,
झूठा था सपना मैं जानता था
फिर भी था उलझा कुछ ढूँढने में ।
जाने तू आकर मेरा क्या चुराई
तभी मेरे सपनों में चुपके से आई ।।
-              रमेश चंद्र तिवारी

No comments:

Post a Comment