Tuesday 6 October 2015

प्रेम सागर निरंकुश हुआ जा रहा


इस गीत को मैने 06 सितंबर 1988 को लिखा था ।






जाग जा री प्रिये यामिनी ढल रही
प्रेम सागर निरंकुश हुआ जा रहा ।

तू तो सोई हुई है तुझे क्या पता
ये हृदय ठोकरें किस तरह सह रहा ।
प्यार की व्यग्र लहरें गरज सी रहीं
चित्त का शून्य है गूँजता जा रहा ।
प्रेम सागर निरंकुश हुआ जा रहा….

मत्त मन गीत गाता भटक है रहा
आज अंतःकरण खलभला सा रहा ।
खोल पलकें बँटा ले व्यथायेँ मेरी
मैं इन्हीं हलचलों में कंपा जा रहा ।
प्रेम सागर निरंकुश हुआ जा रहा….

नींद में और भी डूब तू क्यों रही
उर तुम्हारा बता क्या नहीं दुख रहा ।
धड़कनों की गती तीब्रतम हो गयी
देख मानस भवन नीव से हिल रहा ।
प्रेम सागर निरंकुश हुआ जा रहा….

जाग जा री प्रिये यामिनी ढल रही
प्रेम सागर निरंकुश हुआ जा रहा ।

- रमेश चन्द्र तिवारी

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