Wednesday 3 April 2024

देश-प्रेम, अनुश्री से

 

"हर एक पितामह के सीने में देश प्रेम की ज्वाला थी,

हर एक हृदय में आज़ादी के सपनों की वरमाला थी।

कौड़ी की कीमत में बिकने प्राणों के तब ढेर लगे थे,

सूखी नदियों में बहने को रक्त श्रोत सब उफन पड़े थे ।

नहीं कभी सोचा था उनने भावी भारत क्या होगा –

अपनी ही ज़ंजीरों में वह बुरी तरह जकड़ा होगा …....

Read the full poem, read Anushree - Kavitaen 


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