Wednesday 20 May 2015

निकली है वान्ट

इस व्यंग्य रचना को मैने १० जून १९८८ को लिखा था तथा यह तरुण छत्तीसगढ़ में १६ जुलाई १९८८ को प्रकाशित भी हो गयी थी |

मेरा बेरोज़गार दोस्त भागते हुए आया
हाँफ़ते-हाँफ़ते उसने बताया
यार, निकली है वान्ट !
अरे! मैने कहा तू हो जा शांत |
उसने कुर्सी खींची
बैठकर बढ़ती साँस रोकी |
फिर बोला,
लीडरों के पद भारी मात्रा में हैं रिक्त
और अपने लिए हैं बिल्कुल उपयुक्त |
उमर में जिंदगी भर की छूट,
चलो दो पद लावें लूट |
इसमें चूके
तो रहोगे भूंखे
क्योंकि हम ओवर ऐज हो चुके |
रही योग्यता की बात
पढ़ता हूँ पेपर है साथ |
शिक्षा में :
चलेगा पहला अक्षर फेल
बस चाहिए अनुभवों का तालमेल |
अनुभव न्यूनतम :
किसी मान्यता प्राप्त जेल में बिताएँ हों दो वर्ष,
अस्पताल में पौन वर्ष |
अनिवार्यता :
होना ज़रूरी है फोकटी कार्यकर्ता,
मुख्य रूप से, जिससे इलाक़ा हो डरता |
वरीयता :
अगर है अभिनेता तो मिलेगी वरीयता |
हो दुर्नाम या बदनाम
बस नाम होने से काम |
आवेदन विधी :
है बिल्कुल सीधी
नाटकीय आँसू बहाने का,
परिमार्जित झूठ बोलने का,
उत्तम डींग मारने का,
दमदार गला फाड़ने का,
इन सबका सही-सही कालम भर देना है
और नीचे अंगूठा टाप ठोंक देना है |
संलग्नक :
जाने माने नेता द्वारा जाति प्रमाण पत्र,
साथ में वाइन हाउस का चरित्र प्रमाण पत्र
संलग्न कर कोई पार्टी देख लो
और उसको यह सब भेज दो |
नोट :
नागरिकता में
ज़रूरी नहीं है भारतीयता |
केंद्र परीक्षा के
चुनो अपनी इक्षा से |
और हाँ, इस परीक्षा में
बैठने के बजाय होना है खड़ा
सोचना नहीं है
अगर जर-ज़मीन बेचना भी पड़ा |
-              रमेश चन्द्र तिवारी

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