Monday 10 January 2022

परशुराम

जाके प्रिय न राम वैदेही सो नर तजिय कोटि बैरी सम यद्यपि परम सनेही । महाराज तुलसीदास जी

ब्राह्मण एक ऐसा वर्ग है जिसे सीता-राम से स्वाभाविक श्रद्धा है । अतः जो उसके प्रिय आराध्य का सेवक है वह उससे अलग नहीं हो सकता । वे लोग जो कल ब्राह्मणों के विरुद्ध समाज में इतना विष घोल चुके थे क़ि ब्राह्मणों को यह लगने लग गया था क़ि मानों भारत भूमि अब उनका देश ही नहीं है । वे लोग अब परशुराम सम्मलेन कर रहे हैं । ये वही लोग हैं जो कल भगवान राम का अपमान कर रहे थे आज वे परशुराम जयन्ती मना रहे है । परशुराम का भी नाम राम ही है क्योंकि परशु माने फरसा जो राम शब्द का पूरक नहीं है बल्कि उसका विशेषण है अर्थात वे राम जिनके हाथ में मुख्य रूप से धनुष नहीं अपितु फरसा है । राम फरसा लेकर एक ऋषि के यहाँ अवतरित हुए और क्षत्रीय के एक आततायी हयहय वश का विनाश किया । वही राम धनुष लेकर एक क्षत्रीय के यहाँ अवतरित हुए और ब्राह्मण के एक विशेष आतताई वंश का विनाश किया । जब जब होय धरम कै हानी, बाढ़ें असुर महा अभिमानी । तब तब प्रभु धार मनुज सरीरा, हरैं लोक भाव संभव पीरा ।

“मैं भी हिन्दू हूँ, मैं भी राम कृष्ण की पूजा करता हूँ किन्तु घर में । बस केवल टोपी सड़क पर पहनता हूँ, मैं सेकुलर हूँ ।“ दम हो तो बोलो मथुरा में सम्पूर्ण जन्म स्थान पर गोपाल मंदिर बनाऊंगा । दम हो तो राम, कृष्ण के भी मंदिर बनवाओ परशुराम के ही क्यों । तुम्हें भगवान से कोई लेना-देना नहीं है - तुम्हें तो जातिवाद के विष बोना है क्योंकि तुम सेकुलर हो । मैं सभी पार्टियों से कहता हूँ कि परशुराम, राम व् कृष्ण नारायण के विभिन्न अवतार हैं - ये महापुरुष नहीं हैं । इनके मंदिर होने चाहिए, प्रतिमा इनका अपमान है ।

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