गृहशिक्षा

जब हमारा बच्चा कहता है "वो माई गाड!" तब हमें बहुत अच्छा लगता है, जब 'उनहत्तर' कहने पर वह हमारा मुँह ताकने लगता है और 'सिक्स्टी नाइन' कहने पर गिनती समझता है तब हमें और मज़ा आता है | सेंट एग्नीस विद्याललय में पढ़कर हमारे बच्चे अपनी सभ्यता लगभग भूल रहे हैं | उन्हें न अपने कुल देवता का पता है न गोत्र न वंशावली का | उन्हें न धर्म से मतलब, न ईश्वर से मतलब, न सामाजिक व पारिवारिक दायित्व से मतलब | अनुशासन को वे पारम्परिक रूढ़िवादिता मानते हैं और वेशर्मी की हद तक पहुचते हैं | अभी तक तो चलेगा लेकिन वही बच्चे जिस दिन हमें बृद्धा आश्रम में डालकर पलट कर नहीं देखेंगे उस दिन याद आएगा कि सेंट पाल विद्यालय ने क्या किया | अरे, कुत्ता, बिल्ली, चिड़िया अपने बच्चों को अपनी परम्परा की शिक्षा देते हैं, शिकार, सुरक्षा आदि करने में निपुण बनाकर ही स्वतंत्र करते हैं | हमारे आप के पास तमाम निरर्थक चीज़ों के लिए तो समय है लेकिन बच्चों के लिए नहीं है कि हम सायं अपनी संस्कृति से जुड़ी कुछ कहानियाँ उन्हें सुनावें, नैतिक शिक्षा दें, व परिवार, समाज, राष्ट्र के प्रति उनके दायित्व का उन्हें ज्ञान दें | हाँ, आवश्यकता से अधिक नैतिकता में भी दोष है - उसे राजनीतिक, कूटनीतिक और व्यावसायिक चतुराई का भी उतना ही ज्ञान होना चाहिए | कुछ परिवार तो राजनीति से प्रेरित होकर बच्चों में किसी विशेष समुदाय के प्रति घृणा का पाठ पढ़ाने लगते हैं और अपने बच्चे को सदा के लिए या तो हिंसक बना देते हैं या नकारात्मक सोच वाला तिरस्कार करने योग्य पुरुष | और बाद में उनकी बर्वादी पर रोते हैं | बच्चे को एक संतुलित व्यक्ति बनाने में माँ की बहुत बड़ी भूमिका होती है | माता जीजाबाई ने भी तो एक पुत्र को गढ़कर तैयार किया था | माँ यशोदा ने बालक कृष्ण को ५ वर्षों तक स्तनपान कराया था, सुरभि गाय का मक्खन खिलाया था और ऐसी शिक्षा दी थी कि वही बालक संसार से अधर्म को नष्ट करके धर्म की स्थापना कर दी | अब माताएँ अपने बच्चो को बोतल पिलाती हैं | वही बच्चे कोल्ड ड्रिंक की बोतल इस्टाइल से पीते हैं, फिर शराब की बोतल उन्हें झुमाती है और गुलुकोज की बोतल से उनका अन्त हो जाता है |

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