असंतोष की सीमा केवल मृत्यु होती है |
असंतोष की सीमा केवल मृत्यु होती है | किसी को आप अनाज दे दीजिये वह आपसे उम्मीद करने लगेगा कि आपने उसे सॉफ इत्यादि करके पकाने योग्य करके क्यों नहीं दिया | अब आप वैसा भी कर दीजिये फिर वह कहेगा कि आप उसकी तरफ से पका कर परोस देते तो अच्छा था | इस तरह वह निकम्मा अपने आलस्य की वजह से जब तक मर नहीं जायेगा तब तक संतुष्ट नहीं हो सकता | ऐसे वर्ग को सहयोग करना देश द्रोह है | यह वह वर्ग है जो देश के लिये कभी नहीं सोचता | इसे देश का भला चाहने वाले या न चाहने वाले दोनो से कोई परहेज नहीं होता और इसी की स्वार्थपरता का लाभ लेकर ठग और कपटी देश पर शासन करने लगते हैं |
अब समाज में एक दूसरी तरह का व्यक्ति होता है जो उत्पादक है और अपने व्यवसाय में बहुत मेहनत करता है परंतु सामाजिक व प्रशासनिक व्यवस्था की वजह से उसे उचित पारितोषिक नहीं मिलता | ऐसे वर्ग के सहयोग से देश की संपत्ती कभी घटती नहीं बल्कि उत्तरोत्तर बढ़ती है |
प्राचीन समय में लोग महादेव की अखंड तपस्या किया करते थे | बिना अन्न जल ग्रहण किए एक पैर पर वर्षों खड़े रहा करते थे | शतत 'ओम नमः शिवाय' का जाप किया करते थे | अंत में उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर देवादिदेव उन्हें उनकी इच्छा का बरदान प्रदान करते थे और वे शक्तिशाली व समृद्धिशाली हो जाया करते थे | आज देश के युवकों की स्थिति लगभग उन्ही तप्सविओं की तरह है | परीक्षा पास होना उसके बाद इंटरव्यू में बैठे देवताओं को खुश कर ले जाना भगवान महादेव को खुश करने जैसा है | तपस्या में सफल आज के युवक सोचते हैं कि उसके बाद उनकी कोई भूमिका नहीं बचती अब बस उन्हें कुछ करने की आवश्यकता नहीं - वेतन मिलता रहे जीवन चलता रहे |
प्राचीन काल में दुनिया का भोग करने के उद्देश्य से कई लोग महादेव की अखंड तपस्या कर दैविक शक्ति प्राप्त किया करते थे | स्वतंत्रता के बाद से देश के लोगों की वही स्थिति रही है | एक बार सरकारी नौकरी हाथ लग गयी या किसी चुनाव को जीत गये तो समझ लीजिए कि उन्हें उसके बाद जिंदगी का सुख भोगना है अपने पद के दायित्व से उन्हें कोई मतलब नहीं रखना है | जबसे श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में सरकार बनी है तबसे सासदों या मंत्रियों को लगने लग गया है कि उन्हें जनता ने काम करने के लिए चुना है न कि जनता के धन का भोग करने के लिए | धीरे- धीरे सरकारी कर्मचारियो में भी सोच जागृत हो रही है कि अब काम करने के सिवा उनके पास कोई विकल्प नहीं बचा है | इस स्थिति ने निश्चित ही देश को विकास की ओर धकेला है | अगर यही स्थिति बनी रही तो दिन दूर नहीं हैं जब भारत भी अग्रणी देशों की श्रेणी में खड़ा होगा | आज तक कोई भी ऐसी सरकार नहीं बनी है जिसने एक वर्ष के कार्यकाल के बाद अपना जनाधार खोया न हो | एक मोदी सरकार ही है जो लगातार अपना जनाधार बढ़ाती जा रही है | वजह – यह सरकार काम कर रही है मौज-मस्ती नहीं और जनता उसे देख रही है |
हिन्दुस्तान की जनता में काम करने की प्रविर्ति का आभाव तो है ही साथ-साथ मानसिक श्रम के प्रति भी लोग बहुत आलसी हैं | फेसबुक पर इस बात का प्रमाण है | फेसबुक पर कोई ऐसी बात रखो जो चिंतनशील हो और देखो कि बहुत ही कम लोग उस पर ध्यान देंगे | अब कोई विदूस्कीय जुमला, तुकबंदी, या कोई परिहास अथवा भावनात्मक कोई चित्र रखकर देखो लोगों की भीड़ लग जाएगी | यह सत्य राजनीतिक धरातल पर उतना ही लागू होता है | आज नेता लोकप्रिय होने हेतु या जन समर्थन प्राप्त करने हेतु अपने भाषणों में छोटी-छोटी बातों को नाटकीय ढंग से प्रस्तुत करना पसंद करते हैं | वे देश की समस्या और उनके उपाय के पेचीदे विचार को जनता के सामने रखने से बचते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि लोग उसे सुनना पसंद नहीं करेंगे | यही हाल मीडीया का है | कुल मिलाकर आज किसी विद्वान के लिए लोकप्रिय हो पाना कठिन हो गया है और सत्ता लगातार रंगमंच के विदूषकों व नकली चेहरा धारियों के हाथ लग रही है जो जनता की भावनाओं से खेल कर देश के संशधानों का भरपूर लाभ उठा रहे हैं |
जैसे नेता पाखंड करके देश को लूटते हैं वही कार्य इन आधुनिक संतों का है | आज कोई जितना ही बड़ा अनैतिक होगा उतना ही बड़ा संत होगा | लोगों की परख को न जाने क्या हो गया है !
हममें जातिबाद का नशा कुछ इस तरह प्रभावी है कि हम अपना होश खो बैठे हैं | अगर कोई प्रतिनिधि अपनी जाति का है तो हम उस पर कुछ इस तरह फिदा हो जाते हैं कि हमें यह दिखना बंद हो जाता है कि वह देश के लिए कितना हानि कारक हो सकता है या वह हमें क्या देने जा रहा है | किसी जाति का प्रतिनिधि चाहे वह प्रधान मंत्री क्यों न बन जाय वह अपनी जाति के सभी लोगों को लाभ नहीं पहुचा सकता क्योंकि ऐसा करने पर वह प्रधान मंत्री नहीं रह जाएगा | वास्तव में वह करता क्या है, अक्सर वह अपनी जाति के लोगों को भावनात्मक संतुष्टि देकर खुश करता है और जो विरोधी जातियाँ हैं उन्हें लाभ पहुचा कर आकर्षित करता है | इसमें उसकी वाह-वाही भी होती है | कोई ज़रूरी नहीं कि अपनी जाति के सभी लोग अपने लिए अच्छे हैं और दूसरी जाति के सभी लोग अपने लिए बुरे हैं – हर जाति में अच्छे बुरे लोग हैं | अगर हम सभी जाति के अच्छे लोगों को पसंद करना शुरू कर दें तो देश तरक्की कर जाएगा, देश के प्रति लोगों में प्रेम बढ़ जाएगा और विदेशियों की कभी हिम्मत नहीं पड़ेगी कि वे हममें कभी सेंध लगा सकें | जै हिंद ! जै भारतीय !
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