Tuesday 24 April 2018

मोदी जी की नीतियों पर पूज्य गुरुदेव स्वामी परमानन्द जी के विचार

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुर्गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरुरेव परं ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥१॥
Gurudev is not Purush, not Mahapurush and not even Yugpurush, though He looks like that. O, man read the universe you will find Him to be Brahma; to be Vishnu; and also to be Shiva. Now realize He is the Supreme Brahman, and offer thy adoration unto that peerless Being.

पूज्य गुरुदेव स्वामी परमानन्द गिरी जी महाराज बुधवार, 7 दिसम्बर 2016 को श्री शीतल प्रसाद जी के निवास पर अपने शिष्यों को नैतिक शिक्षा विषय पर कुछ बता रहे थे तभी उनसे कुछ प्रश्न किए गये उन्होने क्या उत्तर दिया उसका विवरण निम्नानुसार है :

प्रश्न : महाराज जी, वर्तमान समय में सामाजिक, राजनीतिक एवं आध्यात्मिक स्थिति के विषय में आपके क्या विचार हैं ?

उत्तर : देखो कलियुग का प्रभाव हर क्षेत्र पर है इसलिए इनमें से कोई विकार मुक्त नहीं है | मैं तो समझता हूँ बहुत अधिक पैसों से कभी किसी को लाभ नहीं मिला | महान बनने की लालसा अधिक से अधिक पैसा अर्जित करने का कारण है | कोई वैभव से महान बनना चाहता है तो कोई त्याग के दिखावे से | चाहे कोई सामाजिक व्यक्ति हो, कोई नेता हो या फिर कोई साधु ही क्यों न हो सभी वेचैन हैं | राजनीति में पहले थोड़ी बहुत ईमानदारी थी अब तो बिल्कुल ही समाप्त हो चुकी है |

प्रश्न : महाराज जी, प्रधान मंत्री जी ने विमुद्रीकरण किया परन्तु परिणाम यह आ रहा है कि जनता को काफ़ी मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है | क्या उनका निर्णय देश, काल, परिस्थिति को देखते हुए उचित नहीं है ?

उत्तर : उनका यह निर्णय एक क्रांतिकारी परिवर्तन का है | समस्या यह है कि नैतिक पतन जितना भारत में हुआ है उतना और कहीं नहीं | मोदी जी का यह कितना अच्छा कदम है परंतु विपक्ष इसको असफल करने की हर कोशिश कर रहा है | उनको भय है कि यदि कहीं यह सफल हो गया तो उनके राजनीतिक भविष्य का क्या होगा | उनको जनता की परेशानी से परेशानी नहीं है बल्कि विमुद्रीकरण से उनको जो परेशानी हो सकती है उसके लिए वे परेशान हैं | मोदी जी का अधिक कमाई से विरोध नहीं है - उनका उद्देश्य तो यह है कि आप काली कमाई न करें |

प्रश्न : मोदी जी कैशलेस अर्थव्यवस्था लाना चाहते हैं | क्या भारत जैसे देश में यह सम्भव है ?

उत्तर : आवश्यकता अविष्कार की जननी है | विकसित देशों में टोल भुगतान के लिए कोई टोल सेंटरों पर गाड़ी खड़ा नहीं करता | वह जैसे वहाँ से गुजरता है उसके खाते से स्वयं उतने पैसे निकल कर सरकारी खाते में जमा हो जाते हैं | अब बाकी देश इतनी तरक्की कर चुके हैं ऐसे में हम कब तक अपनी पुरानी परम्परा पर चलते रहेंगे | परिवर्तन तो लाना ही पड़ेगा |

प्रश्न : परंतु परिवर्तन के चक्कर में देश के छोटे-छोटे उद्द्योग, कृषि और मज़दूरी प्रभावित हो रही है, महाराज जी ?

उत्तर : यदि किसी को घर से निकाल दो तो वह जहाँ जाएगा वहाँ घर के लोगों की बुराई करता फ़िरेगा | महान वह है जो यह सोचे कि उसे घर से निकाला क्यो गया, आत्ममंथन करे और अपनी बुराई दूर करने की कोशिश करे | निःसंदेह लोगों को असुविधा हो रही है, कुछ लोग चिढ़े हुए भी है परंतु स्थिति तब अधिक विगड़ रही है जब विपक्षी उन्हें हर कोशिश कर चिढ़ा रहे हैं | किसी आधारभूत परिवर्तन में असुबिधा होती ही है, कई बार समाज अस्त-व्यस्त भी हो जाता है | कोई अच्छा काम हो रहा है उसमें सहयोग करो, सकारात्मक सोचो | अटल बिहारी बाजपेयी विपक्ष के नेता थे | क्या वे कभी सरकार के अच्छे कार्यों का भी विरोध करते थे ?

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