स्वच्छ भारत अभियान पर एकांकी

पहला दृश्य
(शहर का एक मोहल्ला जो पूरे शहर में एक आदर्श बस्ती के रूप में जाना जाता है सभी मोहल्ला वासी अपने-अपने घरों की तथा आस-पास की सफाई के प्रति पूरी तरह जागरूक हैं सॉफ-सुथरी गलियाँ हैं और नालिया कहीं भी चोक नहीं हैं किसी भी दीवाल पर कहीं एक धब्बा या धूल नज़र नहीं आती सार्वजनिक जगहों जैसे पार्क, स्कूल इत्यादि मे सुलभ शौचालय उपलब्ध हैं सभी अच्छे कपड़े पहनते हैं और मेहनत से अपने व्यवसाय में लगते हैं ताकि किसी प्रकार के आभाव का सामना न करना पड़े सुबह का समय है उसी मोहल्ले की एक गली है जिसमें मोहल्ले का ही एक युवक जिसका नाम प्रतीक है अपनी मोटर साइकिल से गुजर रहा है इतने में अचानक एक छत से निकली एक पाइप से पानी की धारा नीचे नाली में गिरती है और छीटें उछलकर उसके कपड़े गन्दा कर देती हैं वह अपनी बाइक को एक किनारे खड़ा कर देता है )
प्रतीक : (ऊपर देखते हुए) ओय भल्लू, तू कभी नहीं सुधरेगा आ देख, मेरे नये कपड़ों की क्या हालत हुई है आज वैसे भी देर से हूँ अब बता अपने काम पर समय से कैसे पहुचूँ ?
भल्लू : (अपने छत से नीचे देखते हुए) परती, तू बहुत बोलने लग गया है ! तुझे नहीं मालूम कि गली में देख-सुन कर सावधानी से चलना चाहिए
प्रतीक : हमें देख-सुन कर चलना चाहिए और तुझे दीवाल से लगी नाली तक पाइप नहीं लगानी चाहिए, यही न ? इधर से कभी कोई तेरे से भी अधिक दबंग निकला न, तो तेरे दाँत तोड़ेगा ! तब तुझे सब समझ आ जाएगा  
भल्लू : बदजुबानी मत कर जा कपड़े बदल कर आ और हाँ, अब आँख खोलकर चलना सीख ले
(प्रतीक अपनी मोटर साइकिल घूमता है और वापस घर लौट जाता है )
दूसरा दृश्य
(दोपहर का समय है भल्लू अपने दोस्त से बात करते हुए मोहल्ले के एक स्कूल के सामने से गुजर रहा है भल्लू मुश्किल से बोल पा रहा है क्योंकि उसका मुँह गुटखा मसाला से पूरी तरह से फूल चुका है अचानक वह लापरवाही से सिर घुमाता है और बगल में थूक देता है संयोग से उधर प्रधानाध्यापक महोदय गुजर रहे होते हैं उनकी पैंट वर्वाद हो जाती है और विधयालय का स्वच्छ फर्श वेशक्ल हो जाती है )
प्रधानाध्यापक : भल्लू, तू इस मोहल्ले का कलंक है । तुझे ईश्वर नहीं सुधार सकता तो मेरी क्या मज़ाल । अब बताओ बच्चों को कैसे पढ़ाऊं और ड्यूटी के समय कहाँ जाऊं ?
भल्लू : गुरुजी, माफ़ करना क्या हुआ, ये मसाला बोलने नहीं दे रहा था
प्रधानाध्यापक : फिर मसाला क्यों खाते हो ? इसे खाना छोड़ दोगे तो क्या हो जाएगा ! लोग तुम्हारी फ़ज़ीहत कर देते हैं इसमें तुम्हें बुरा नहीं लगता
भल्लू : गुरुजी, आपने कभी इसे खा कर नहीं देखा मेरे पास कई सारी पाऊच हैं, कहिए तो आपको दूँ एक बार भी खाए न तो छोड़ना तो दूर इसे कभी भूल भी नहीं पाएँगे ! अरे हाँ, गुरुजी, आइए मैं नल चलाए देता हूँ ।  
प्रधानाध्यापक : तू एक काम कर मेरी चिंता छोड़ और यहाँ से जा तेरे मुँह लगना किसी के लिए ठीक नहीं
(भल्लू और उसका दोस्त फिर से बातें करते हुए आगे बढ़ जाते हैं )
तीसरा दृश्य
(एक दिन शाम को भल्लू कहीं से लौट रहा था मोहल्ले के एक दीवाल के सामने लघु शंका के लिए खड़ा हो जाता है उधर से गुजरने वाले पुरुष महिलाएँ अपना मुँह मोड़ लेते और निकल जाते उसी समय शिव प्रसाद चाचा अपनी टेन्नी टेकते हुए वहाँ पहुचते हैं
शिव प्रसाद चाचा : भल्लू, तुझे शर्म नहीं आती ! तेरी ही माँ बेटियाँ इधर से गुजरती हैं । थोड़ी दूर ही शौचालय है, जा नहीं सकता था !
भल्लू : (चाचा के पास आता है) चाचा, अपना हाथ लाओ तो ।
शिव प्रसाद चाचा : क्या करेगा ?
भल्लू : सूरज डूबने को है । आप इधर-उधर कहीं गिर पड़े तो । चलो मैं घर छोड़ कर आता हूँ ।
शिव प्रसाद चाचा : तू बहुत शैतान है । रोज देखता है मैं इतने समय थोड़ा घूमता हूँ ।
भल्लू : चाचा, हाँ, आपको बताना भूल गया, आज सुबह मंदिर में मैने झाड़ू लगाया था ।
शिव प्रसाद चाचा : झूठ बोल रहा है इतना नेक तू कहाँ हो सकता है । खैर, जा इन खंभों की लाइट जला दे ताकि मैं थोड़ी देर और घूम सकूँ ।
(भल्लू स्ट्रीट लाइट जलाता हुआ चला जाता है और अगली गली में मुड़ जाता है )
चतुर्थ दृश्य
(भल्लू की पत्नी, देवी, टोकरी में कूड़ा भर कर अपने छत पर जाती है वह अपने और अपने पड़ोसी के घर के बीच की गली में कूड़े को फेकती है चूँकि हवा चल रही होती है इसलिए कूड़े का कुछ भाग पड़ोसी के आँगन में जा गिरता है इस पर पड़ोसी की पत्नी, माधवी, भड़क उठती है )
माधवी : देवी, तूने कभी सोचा है कि तेरे नाम का मतलब क्या होता है ?
देवी : तू बड़ी पढ़ी-लिखी है तू ही बता दे क्या होता है !
माधवी : तेरे नाम का मतलब वो नहीं है जो तू कर रही है । देख कितना कूड़ा मेरे आँगन आ गया है । तेरे जैसे पड़ोसी की वजह से लगता है कि कहीं और जाकर बसना पड़ेगा ।
देवी : ठीक है तो जा । कितने रुपये लेगी अपने इस मकान का ?
माधवी : अपने मकान का प्लास्टर तो करा नहीं सकती - मेरा मकान ख़रीदेगी ! केवल तेरा ही मकान एक ऐसा है जो पूरे मोहल्ले की नाक कटवाता रहता है ।  
(ऊपर कहासुनी सुनकर भल्लू छत पर आता है )
भल्लू : (छत की रेलिंग पर झुकते हुए) भाभी, आज इतना नाराज़ क्यों हो ?
माधवी : अपनी महादेवी की करतूत देखो, कितना कूड़ा मेरे आँगन में फेक दिया है ।
भल्लू : भाभी देख सब तो अपने बस में है ये हवा, पानी, आग भी क्या अपने बस में है देवी भला ऐसा क्यों करेगी ? वो तो हवा ने कूड़े को उधर धकेल दिया है भाभी एक काम कर, चल हम दोनो मिलकर हवा से लड़ते हैं कि उसने ऐसी शरारत क्यों की है
माधवी : भल्लू, तुझे ठीक करने की दवाई किसी के पास नहीं है
(ऐसा कहकर माधवी अपने आँगन में झाड़ू लगाने लगती है ।)
पंचम दृश्य
(सूरज उगने को है भल्लू अपना गेट खोलता है तो देखता है कि कूड़े का एक पहाड़ सामने पड़ा है और मोहल्ले के सौ पचास युवक अपनी टोकरी हाथ में लिए वापस लौट रहे हैं ।)
भल्लू : तुम लोग कहाँ लौटे जा रहे हो ? मेरा दरवाजा क्या कोई कूड़ा खाना है ?
युवकों की भीड़ : तो क्या सारा मोहल्ला नगर पालिका है ?
भल्लू : क्या मतलब ?
एक युवक : यही कि तुम करो तो रासलीला ! हम तुम्हारी फैलाई गंदगी को साफ करने के लिए हैं ?
दूसरा युवक : भल्लू, हम लोग कूड़ा तब तक तुम्हारे दरवाजे पाटते रहेंगे जब तक तुम सारे मोहल्ले वालों से माफी नहीं मांगोगे और अपनी हरकत सदा के लिए छोड़ने का भरोसा नहीं दिलाओगे
भल्लू : चल जा ! देखते हैं कल तुम लोग कूड़ा यहाँ कैसे ढेर करते हो ।
तीसरा युवक : पहले इसको हटाओ फिर कल सुबह भी देख लेना
(इतना कहकर सारे लोग अपने-अपने घर लौट जाते हैं भल्लू टोकरी फावड़ा लाता है और कूड़ा हटाना शुरू करता है कूड़ा ढोते, ढोते वह थक कर चूर हो जाता है थोड़ा विश्राम करने के पश्चात वह स्नान करता है शाम को पूरे मोहल्ले के हर घर को जाता है और सबको भरोसा दिलाता है कि वह भविष्य में साफ-सुथरा एक अच्छे इंसान के रूप में रहेगा, अतः लोग अगले दिन उसके दरवाजे कूड़ा नहीं ढेर करेंगे )
लेखक - रमेश चन्द्र तिवारी

शुक्रवार, 25 नवम्बर 2016

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