हमको आगे बढ़ना है
इस कविता को मैने 05
अगस्त सन 1988 को लिखा था |
हम हैं आकुल बढ़ने को मत रोको हमें
भागने दो
देखो लोग बहुत हैं आगे हमको वहीं
पहुँचने दो ।
रहने दो अब बहुत हो चुका बहुत विराम
किए अब तक
धिम्मड़ और फिसड्डी बनकर और जियेंगे
हम कब तक ।
नहीं लेंगे शिक्षा जाओ काहिलपन का
ज्ञान न दो
बार-बार संतोष सिखाकर हमें निष्क्रिय
न कर दो ।
रख लो अपने पास पुराना कालातीत धर्म
अपना
स्वयं कथाएँ कह सुन करके देखो तुम ही
सुख सपना ।
मज़हब जीवन की पद्ध्यति है और नहीं
वह कुछ करता
स्वर्ग नर्क का भय पैदाकर केवल
अनुशासित करता ।
परिवर्तन से बचा नहीं है वस्तु कोई सारे
जग में
धर्म निहित क्या नियम समझते नहीं बदलते
हैं उसमें ?
लाओ सारे पंथ दिखाओ संशोधन उसमें कर
दूं
उन्नति नाम आज से प्यारा लाओ उनका
मैं रख दूं ।
सतत अग्रगामी रहना उत्साह बढ़ाते ही
जाना
एक पंक्ति भर सकती पूरा उसके पालन का
खाना ।
जाती वर्ग के भेद लिखे हैं उसे काट
डालूं लाओ
भारतीय बस लिखूं वहाँ पर सिंधु बूँद
में ही पाओ ।
देव फरिस्तो का होगा जिस जगह विशद
मिथ्या वर्णन
वहाँ लिखेंगे देश देवता उसका ही होगा
पूजन ।
ईश्वर होता मान रहा हूँ पर दस बीस
ग़लत लगता
चमचागीरी लोगों की क्या उसको भी है
प्रिय लगता ।
हर पिता चाहता उसका बेटा प्रगति सिखर
पर चढ़ जावे
कैसे सोंचा प्रगति हमारे परम पिता को न भावे ।
कितना लंबा बांधो क्यो न पुल तारीफ़ ईश के तुम
पर वह खुशी होयगा केवल तेरी कर्मठता
को सुन ।
अब तो हम वह गति लाएँगे सर्वोपरि बन
जाएँगे
साथ हमारा करते-करते बड़े-बड़े थक
जाएँगे ।
भारत, भारत
नाम जपेंगे भारत वाले प्रिय होंगे
जब हम उसे तरक्की देंगे खुराफात सब
भूलेंगे ।
अनुउपयोगी घिसी मान्यता मान नहीं अब
चलना है
नये मूल्य तकनीक नवल से हमको आगे बढ़ना
है ।
- रमेश चन्द्र
तिवारी
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