सच्ची दीवाली

दीवाली त्योहार व्यापार, समृद्धि, प्रेम, उत्साह, आध्यात्म, शांति और सहयोग का प्रतीक है । 28 अगस्त 1988 को इस कविता की रचना इस उद्देश्य से की गई थी कि लोग जैसा राम राज्य में था उसी तरह एक दूसरे के सहयोगी बने ।

दीप खुशियों के ले लो जलाए चलो,
हर गली छान मारो तिमिर ढूँढ लो,
देख लो किस हृदय में है दुख की घनी,
कालिमा रात्रि सी फैलती जा रही,
शीघ्र उनसे वहाँ पर उजाला करो ।
आज ऐसी दीवाली मनाएँ चलो !

प्रेम के अनगिनत दीप लेकर चलो,
है कहाँ पर अंधेरा तलाशो बढ़ो,
देख लो कृष्ण का पक्ष उर में कहीं
है घृणा रूप में क्या घिरा तो नहीं,
शीघ्र उनसे वहाँ पर उजाला करो ।
आज ऐसी दीवाली मनाएँ चलो !

दीप करुणा दया के चलो ले चलो,
काल की रात्रि का तुम पता फिर करो,
देख लो क्रूरता है कहाँ पर बसी,
कौन मानस में है वह निशा सी रुकी,
शीघ्र उनसे वहाँ पर उजाला करो ।
आज ऐसी दीवाली मनाएँ चलो !

सद्विचारो के जलते दिए ले चलो,
कोठरी कोठरी झाँक तम खोज लो,
देख लो चित्त में यदि अमावस मिले,
हों कपट स्वार्थ आदिक जहाँ पर छिपे,
शीघ्र उनसे वहाँ पर उजाला करो ।
आज ऐसी दीवाली मनाएँ चलो !

भूंख की रात में राह भूले हुए
नैश जीवन में हैं जो भी भटके हुए,
झोपड़ी झोपड़ी में उन्हें खोज लो,
रोटियों के दिये जो बचें साथ लो,
शीघ्र उनसे वहाँ पर उजाला करो ।
आज ऐसी दीवाली मनाएँ चलो !

दीप बाहर जलाना तो अभिव्यक्ति है
कि हृदय दीपकों से नहीं रिक्त है ।
राम के आगमन की खुशी है नहीं
तो दीवाली हमारी दीवाली नहीं ।
मन के रावण को आओ पराजित करो,
आज सच्ची दीवाली मनाएँ चलो !
~~~~

यह कविता डायमंड बुक्स द्वारा प्रकाशित मेरी पुस्तक "अनुश्री" से ली गयी है। #अनुश्रीकविताएं हिन्दी में रचित मन को मुग्ध कर देने वाली पुस्तक है। यह इतनी सरल है कि इसे कोई भी पढ़ और समझ सकता हैं । इसमें प्रवेश करते ही आपको ऐसा प्रतीत होगा कि आप सुन्दर से कल्पना लोक में हैं जिसमें एक ओर दिव्य मंदिर हैं जहाँ प्रार्थना व् भजन हो रहे हैं घंटियां बज रही हैं, दूसरी ओर भारतीय संस्कृति की अदभुद झांकियां सजी हुई हैं, राजनीति के रहस्यमयी सुरंग हैं, देश के स्वर्णिम अतीत के चलचित्र, नन्हें बच्चों के घरौंदे, प्रेम की चित्ताकर्षक वादियां हैं।

इस पुस्तक में सौ से भी अधिक कविताएं हैं जो आस्था, प्रकृति, राष्ट्र, मानवता, राजनीति, बाल काब्य, संस्कृति, महापुरुष आदि नौ खण्डों में विभक्त हैं । कोरोना महामारी का हृदयविदारक चित्रण है, स्वच्छ भारत पर एक मनोरंजक एकांकी है और जल ही जीवन है विषय पर एक दिल दहला देने वाली एक कहानी है । पुस्तक बहुत ही सरल, मनोरंजक व् जीवन मूल्यों के सन्देश से युक्त है ।

आपका मन उदास रहता है, अनिक्षा होती है, उत्साह में कमी आ गई है, त्योहारों की स्वाभाविक ख़ुशी नहीं होती है, लोगों से मिलने का मन नहीं होता है, नींद में भय महसूस होता है ? यदि इसमें से एक भी लक्षण आप में हैं तो आपमें मोबाईल लत का बुरा प्रभाव होना प्रारम्भ हो गया है। मोबाईल के चारों और माइक्रोवेव फील्ड बना लेता है जिसके अधिक संपर्क में तनाव होने लगता है। अतः मनोरंजन हेतु पुस्तक पढ़िए, #अनुश्रीकविताएं पढ़िए - उसमें प्रेम, दया, श्रद्धा, उमंग आदि भावनाएं जो आपमें निष्क्रिय हो गयीं हैं उन्हें पुनर्जागृत करने वाली चीजें है। पढ़ते ही आपमें भिन्न-भिन्न मनोभाव उठेंगे और आप प्रसन्न हुए बिना नहीं रह सकेंगे।

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