राष्ट्र भाषा

हिन्दी दुनिया की अन्य भाषाओं में सबसे अधिक समृद्ध, सुव्यवस्थित एवं सरल है । हिन्दी के अतिरिक्त कोई ऐसी भाषा नहीं है जिसका व्याकरण अपवादविहीन हो । इसकी लिपि देवनागरी है जो अत्यंत ही वैज्ञानिक है । इसे संस्कृत से नवीन शब्द रचना और शव्द संपदा विरासत में प्राप्त है । अन्य भाषाओं के शब्दो सहित देशी बोलियों के अपार शब्द संग्रह इसे संप्रेषण की उच्चतम क्षमता प्रदान करते हैं । यह विश्व में तीसरी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है । हिन्दी ने जिस तरह स्वतंत्रता संग्राम को उसके लक्ष्य तक पहुचाया था उसी तरह आज भी राष्ट्र-प्रेम की लौ को जलाए रखने के लिए वह एक मात्र साधन है । 14 सितम्बर सन् 1949 को हिन्दी को भारत की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया था । इसके बाद संविधान में राजभाषा के सम्बन्ध में धारा 343 से 351 तक की व्यवस्था की गयी है । प्रतिवर्ष 14 सितम्बर का दिन हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है । इसी दिन के उपलक्ष्य में ‘राष्ट्र भाषा’ शीर्षक कविता 14 सितंबर 1988 को लिखी गई थी जिसमें यह प्रतिपादित किया गया है कि हिन्दी हमारे राष्ट्र के पहचान की भाषा है । अतः इसे राजभाषा की जगह राष्ट्र भाषा का स्थान मिलना चाहिए ।

कौन देश है जिसे बताओ निज भाषा से प्यार नहीं,
निज वाणी, जीवन पद्धति का किसको है अभिमान नहीं ?

किस भाषा के बूते पर जापान उन्नती करता है,
रूस, फ्रांस विज्ञान शिखर पर किसके बल पर चढ़ता है ?

है कोई अंग्रेज जिसे हो अँग्रेज़ी का ज्ञान नहीं ?
हिन्दी लोग बहुत हैं जिनको हिन्दी की पहचान नहीं ।

बहुतेरे अनुभव करते हैं भारतीयता में अपमान,
अँग्रेज़ी में न जाने क्यो दिखता है उनको सम्मान ।

हमें शिकायत नहीं है लोगों अँग्रेज़ी क्यों सीख रहे,
हमें शिकायत तो इसकी है हिन्दी को क्यों भूल रहे ।

हमें गर्व तो तब होगा जब चीनी से चीनी बोलो,
लेटिन, ग्रीक सहित दुनिया की सारी भाषाएँ सीखो ।

दुख तो तब ही होता है जब हिन्दी नहीं समझते हो,
तुमने हिन्दी नहीं पढ़ी इसको ही गर्व मानते हो ।

धर्म संस्कृति के दीपों को हिन्दी ने संजोया है,
पराधीनता की आँधी में उर में उनको ढोया है ।

हिन्दी ने हुंकार भरी तो विदेशियों के पैर उठे,
भारत की भूमी से गोरे जाने को मजबूर हुए ।

तुम्हें घृणा हिन्दी से क्यों है दक्षिण के प्यारे भाई,
क्यो विरोध इतना कि वह अपना स्थान नहीं पाई ?

हिन्दुस्तानी का परिचय यदि हिन्दी नहीं तो फिर किससे ?
राजनीति से बचो हमेशा ही इसके मीठे विष से ।

हर एक क्षेत्र में नये-नये नित तुम भी आविष्कार करो,
सब कुछ तुम भी कर सकते हो अपने पर विश्‍वास करो ।

फिर अपनी हिन्दी को देखो उपयोगी वह कितनी है,
सब भाषाओं में उत्तम वह सरल और सक्षम भी है ।

तुम महान यदि बनो तो हिन्दी खुद महान बन जाएगी,
अपने साथ तुम्हारा भी यश भू पर वह फैलाएगी ।

तुम्हें नकल ही करना है तो हिन्दी साथ नहीं देगी,
जिसकी नकल करोगे केवल उसकी ही जै-जै होगी ।

अँग्रेज़ों के जूठन को अँग्रेज़ी जीभ चाट सकती !
घातक इतनी अब भी कि हिन्दुस्तान बाँट सकती ।

बड़े विचारों को सोचें हम उनको हिन्दी में लिखें,
औरों से तुलना करने को उनकी भाषाएँ सीखें ।

व्यग्र भाव स्पर्धा का केवल इससे ही जन्मेगा,
सबके आगे होने का उन्माद तभी ही पकड़ेगा ।

अपने पैरों पर अपने को खड़ा तभी कर पाएँगे
हिन्दी और हिन्द का झंडा जब जग में फ़ाहराएँगे ।

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