Friday 17 July 2015

सच्चा वीर

सच्चा वीरशीर्षक कविता मैने 02 सितम्बर, 1988 को विशेषतः बच्चों के लिए लिखा था | रायपुर जो अब छत्तीसगढ़ की राजधानी है वहाँ के दैनिक देशबन्धु ने अपने बाल अंक में इसे दिनांक 09 अक्टूबर 1988 को प्रकाशित किया था |

एक घने जंगल में हिंसक
एक भेड़िया रहता था |
लोफर दोस्त सियारों को संग
लिए घूमता फिरता था |

वन प्राणी सारे के सारे
उसे देख डर जाते थे,
जल्दी-जल्दी भाग घरों में
वे अपने घुस जाते थे |

सिंह बाघ भी उसके मुँह
न लगना उचित समझते थे |
सभ्य और गंभीर सदा वे
उससे हटकर रहते थे |

इतना था वह ढीठ कि खुद को
सबका राजा कहता था |
जब तब भोले भालों को
बेवजह सताता रहता था |

किसी शत्रु ने इन्हीं दिनों
जंगल पर दिया चढ़ाई कर |
इस कुसमय में वीरों को था
चलना शीघ्र लड़ाई पर |

पर क्या था डरपोक भेड़िया
भागा साथ सियारों के |
ऐसे मौके पर ही दिखते
असली रूप कायरों के |

देश-भक्त वनराज शेर फिर
सेना लेकर निकल पड़े |
खूब बहादुरी से लड़कर
दुश्मन के छक्के छुड़ा दिए |

सच्चा वीर वीरता अपनी
केवल तभी दिखाता है,
देश सुरक्षा या जन-हित पर
जब भी संकट आता है |

शेर की आग्या से सेना ने
उस गिरोह को पकड़ लिया,
उसके किए हुए का, बच्चों,
उसने तगड़ा दंड दिया |

जो सियार या घृष्ट भेड़िए
जैसे व्यक्ति होते हैं,
वे दुनिया में जीवन भर
बस निन्दनीय ही रहते हैं |

-          रमेश चन्द्र तिवारी

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