सच्चा वीर
“सच्चा वीर” शीर्षक कविता मैने 02 सितम्बर, 1988 को विशेषतः बच्चों के लिए लिखा था | रायपुर जो अब छत्तीसगढ़ की राजधानी
है वहाँ के दैनिक देशबन्धु ने अपने बाल अंक में इसे दिनांक 09 अक्टूबर 1988 को प्रकाशित किया था |
एक घने जंगल
में हिंसक
एक भेड़िया
रहता था |
लोफर दोस्त
सियारों को संग
लिए घूमता
फिरता था |
वन प्राणी
सारे के सारे
उसे देख डर
जाते थे,
जल्दी-जल्दी
भाग घरों में
वे अपने घुस
जाते थे |
सिंह बाघ भी
उसके मुँह
न लगना उचित
समझते थे |
सभ्य और गंभीर
सदा वे
उससे हटकर
रहते थे |
इतना था वह
ढीठ कि खुद को
सबका राजा
कहता था |
जब तब भोले
भालों को
बेवजह सताता
रहता था |
किसी शत्रु ने
इन्हीं दिनों
जंगल पर दिया
चढ़ाई कर |
इस कुसमय में
वीरों को था
चलना शीघ्र
लड़ाई पर |
पर क्या था
डरपोक भेड़िया
भागा साथ
सियारों के |
ऐसे मौके पर
ही दिखते
असली रूप
कायरों के |
देश-भक्त
वनराज शेर फिर
सेना लेकर
निकल पड़े |
खूब बहादुरी
से लड़कर
दुश्मन के
छक्के छुड़ा दिए |
सच्चा वीर
वीरता अपनी
केवल तभी
दिखाता है,
देश सुरक्षा
या जन-हित पर
जब भी संकट
आता है |
शेर की आग्या
से सेना ने
उस गिरोह को
पकड़ लिया,
उसके किए हुए
का, बच्चों,
उसने तगड़ा
दंड दिया |
जो सियार या
घृष्ट भेड़िए
जैसे व्यक्ति
होते हैं,
वे दुनिया में
जीवन भर
बस निन्दनीय
ही रहते हैं |
-
रमेश चन्द्र तिवारी
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