मुक्तक
ऐ भारत की प्यारी नारी ! तुम स्वरूप श्रद्धा की हो, तुम तो फूलों सी कोमल या छुई-मुई से नाज़ुक हो । नहीं, नहीं झाँसी की रानी, दुर्गावती आदि भी हो तुम तो प्रबल दामिनी हो, काली चण्डी दुर्गा तुम हो ! धरती जैसी धैर्य धारिणी मुख पर अम्बर की गरिमा, लज्जा ममता करुणा की बहती उर में तेरे सरिता । किंतु किसी ने तेरे बच्चों को छूने की कोशिश की, ख़तरा बनकर झपटी होगी उस पर क्रुद्ध शेरन सी सारे अब संसार में, गुंजित जय श्रीराम । अवधपुरी है सज गयी, जन्मभूमि अभिराम।। जन्मभूमि अभिराम, बज रहे ढोल नगाड़े । पशु, पक्षी, हर जीव, कर रहे हैं जयकारे ।। नये वर्ष के साथ, उछलते उत्सव प्यारे । राम कृपा के मेघ, घिरे हैं नभ में सारे ।। वीर चाहिए भक्त चाहिए शेरों का परिवार चाहिए । भारी भीड़ हमें भेड़ों की नहीं चाहिए, नहीं चाहिए ! जीना है मस्ती भरी जिंदगी हारना है नहीं, हाफना है नहीं, जीना हमें है जिलाना उन्हें, हमें इसलिए कोई चिंता नहीं। जिन्हें घृणा है देश-प्रेम से उनका हिन्दुस्तान नहीं, गद्दारों के लिए समझ लो यहाँ कोई स्थान नहीं । फिर से देश नहीं सौपेगा सत्ता नकली लोगों को, ठीक यही होगा वे जाएँ अपने असली वतनो...