प्यारी, सुन्दर, चंचल - अनुश्री
आपका मन उदास रहता है, अनिक्षा होती है, उत्साह में कमी आ गई है, त्योहारों की स्वाभाविक ख़ुशी नहीं होती है, लोगों से मिलने का मन नहीं होता है, नींद में भय महसूस होता है ? यदि इसमें से एक भी लक्षण आप में हैं तो आपमें मोबाईल लत का बुरा प्रभाव होना प्रारम्भ हो गया है। मोबाईल के चारों और माइक्रोवेव फील्ड बना लेता है जिसके अधिक संपर्क में तनाव होने लगता है। अतः मनोरंजन हेतु पुस्तक पढ़िए, अनुश्री-कविताएं पढ़िए - उसमें प्रेम, दया, श्रद्धा, उमंग आदि भावनाएं जो आपमें निष्क्रिय हो गयीं हैं उन्हें पुनर्जागृत करने वाली चीजें है। पढ़ते ही आपमें भिन्न-भिन्न मनोभाव उठेंगे और आप प्रसन्न हुए बिना नहीं रह सकेंगे।
अनुश्री एक बार पढोगे अच्छी लगेगी, दूसरी बार और अच्छी लगेगी, तीसरी बार पढोगे तो लगेगी कि यह वर्तमान पीढ़ी की सबसे अच्छी पुस्तक है और पांचवी बार या उसके बाद पढोगे तो आप ऊबने के बजाय भाव विभोर हो जाओगे, ह्रदय में आनन्द उत्सर्जित होने लगेगा।
एक दो पेज तक पढ़ने का जहमत है उसके बाद किताब महकेगी, भीनी मिठास देगी और पढ़ना सुन्दर स्वप्न देखने जैसा हो जायेगा । एक बार अनुश्री में प्रवेश करके देखो ।
इस पुस्तक में सौ से भी अधिक कविताएं हैं जो आस्था, प्रकृति, राष्ट्र, मानवता, राजनीति, बाल काब्य, संस्कृति, महापुरुष आदि नौ खण्डों में विभक्त हैं । कोरोना महामारी का हृदयविदारक चित्रण है, स्वच्छ भारत पर एक मनोरंजक एकांकी है और जल ही जीवन है विषय पर एक दिल द्रवित देने वाली एक कहानी है ।
A good book is like the river Ganga, which feels bitterly cold before you enter it and pleasantly warm after taking a dip in it. The Ganges purifies your body and "Anushree" your mind.
Fairies are enchanting, so are books. Fairies look beautiful and good books taste sweet and fantastic, but you have to bother chewing and swallowing them. Anushree-Kavitaen is gaining in popularity. It sold thousands of copies.
That will obsolete be in one year, two or three
Is not the book our alluring, appealing Anushree,
True at all times, in all places, makes all fancy her,
The beauty of refined thoughts the critics call her.
Anushree is an appealing garden of poetic flowers in nine different colours; it is fenced in by a truth-seeking essay, a funny one-act-play, a heart-breaking portrayal of Corona pandemic and a poignant short story.
अनुश्री एक बार पढोगे अच्छी लगेगी, दूसरी बार और अच्छी लगेगी, तीसरी बार पढोगे तो लगेगी कि यह वर्तमान पीढ़ी की सबसे अच्छी पुस्तक है और पांचवी बार या उसके बाद पढोगे तो आप ऊबने के बजाय भाव विभोर हो जाओगे, ह्रदय में आनन्द उत्सर्जित होने लगेगा।
एक दो पेज तक पढ़ने का जहमत है उसके बाद किताब महकेगी, भीनी मिठास देगी और पढ़ना सुन्दर स्वप्न देखने जैसा हो जायेगा । एक बार अनुश्री में प्रवेश करके देखो ।
इस पुस्तक में सौ से भी अधिक कविताएं हैं जो आस्था, प्रकृति, राष्ट्र, मानवता, राजनीति, बाल काब्य, संस्कृति, महापुरुष आदि नौ खण्डों में विभक्त हैं । कोरोना महामारी का हृदयविदारक चित्रण है, स्वच्छ भारत पर एक मनोरंजक एकांकी है और जल ही जीवन है विषय पर एक दिल द्रवित देने वाली एक कहानी है ।
A good book is like the river Ganga, which feels bitterly cold before you enter it and pleasantly warm after taking a dip in it. The Ganges purifies your body and "Anushree" your mind.
Fairies are enchanting, so are books. Fairies look beautiful and good books taste sweet and fantastic, but you have to bother chewing and swallowing them. Anushree-Kavitaen is gaining in popularity. It sold thousands of copies.
That will obsolete be in one year, two or three
Is not the book our alluring, appealing Anushree,
True at all times, in all places, makes all fancy her,
The beauty of refined thoughts the critics call her.
Anushree is an appealing garden of poetic flowers in nine different colours; it is fenced in by a truth-seeking essay, a funny one-act-play, a heart-breaking portrayal of Corona pandemic and a poignant short story.
Anushree offers devotional songs and prayers, and at the same time amuses you, interests you and gives you pleasure with verses humorous, hilarious, dreamy, romantic, heroic and informative.
Anushree has blissful love songs which are sure to make you feel the presence of someone who you find captivating and alluring. When heart brims over with heavenly feelings and mind becomes tender and sweet, your love is somewhere near you or in your spirit.
Anushree also takes you to beautiful hills and dales of nature where the air is fragrant with multi-coloured blossoms, introduces you to loving and soothing Indian culture, throws light on mysteries of politics and the frailties of human nature, showers you with the milk of nationalism and finally leaves you among a group of playful children.
Some Feedback
"A fabulous book written by Ramesh Tiwari . I found this book a wonderful diverse poetic creation. Various topics have been captured through powerful illustrations. I liked the sensitivity, emotions and expression in each of the poems... Some of the poems I went through a couple of times as I liked the way these have been narrated. Although all poems are very nice but my personal favourite are आस्था, परंपरा, मानवता, प्रेम और महामारी. Reading the poem titled "महामारी" reminded me of my days which I have faced and tears welled up in my eyes. I highly recommend this book to readers who are looking for different emotions in a single book." -Divya Mishra Tiwari
"अनुश्री कविताएं रमेश चंद्र तिवारी जी द्वारा रचित अनुपम कविताओं का संग्रह है जो लगभग सभी उम्र वर्ग के लोगों आकर्षित करती है। मोटूमल जैसी कविताएं पाठक को हंसाने के साथ साथ युवा वर्ग को अपने बढ़ते शारीरिक वजन के प्रति सचेत करने का कार्य भी करती है।" -Viveksheel
"Once you start reading this book just in a couple of minutes you will start living it with your heart and soul book will flow you in its waves." -Gaurav
"A collection of various beautiful poems that will take you on a nostalgic ride and will bind your attention till the end. Every line makes you feel connected with your life." -Pranay Srivastava
"आपने गागर में सागर भर दिया है "अनुश्री "में और मैं उसमे गोते लगा रहा हूं। हर रचना को मैं चाव से पढ़ रहा हूं।" -Dinesh Pratap Singh Rathore
भजन
प्राणों में गोविन्द, साँसों में गोविन्द,
मंगलमयी मूर्ति नयनों में गोविन्द,
संवेदना चेतना मेरी गोविन्द,
जीवन की ज्योतिर्मयी ज्योति गोविन्द।
गोविन्द गोविन्द गोविन्द गोविन्द,
मन मेरा गाये रे गोविन्द गोविन्द!
तुझे खोजता क्यों फिरू मेरे गोविन्द?
तन मन हमारा तुम्हारा है गोविन्द।
पथ हूँ तुम्हारा पथिक मेरे गोविन्द,
ऱथ हूँ तुम्हारा रथी मेरे गोविन्द।
गोविन्द गोविन्द गोविन्द गोविन्द,
मन मेरा गाये रे गोविन्द ............
महापुरुष
पैदा बहुत हुए भारत में वीर, प्रतापी, महाबली,
मिटटी से पौधे उगे बहुत त्यागी, बलिदानी, घोर तपी ।
सब विधि सक्षम पूत एक जब भारत भू पर जन्म लिया,
दस बारह पीढ़ी बीत गयी तब जाकर अपना जला दिया ।
भारत हुआ अखण्ड खण्ड हर दुश्मन का अभिमान हुआ,
तीन लोक के राजा के मंदिर का तब निर्माण हुआ ।
सारे राष्ट्र का मंदिर, अवध के धाम का मंदिर,
बना अत्यंत सुन्दर भव्य भारतवर्ष का मंदिर ।
अयोध्या धाम का मंदिर, हमारी शान का मंदिर,
हजारों पीढ़ियों की वह सतत पहिचान का मंदिर।
सनातन के ह्रदय में ज्ञान का आधार है मंदिर,
हमारी सभ्यता का मूल पालनहार है मदिर।
मनोहर रम्य मंदिर श्रोत है आनंद का मंदिर,
हमारे प्राण प्यारे राम के...............................!
व्यापर बढ़ा, निर्यात बढ़ा, निर्माण बढ़ा, सम्मान बढ़ा,
भारत पड़ोसियों के सम्मुख अटल महा चट्टान बना।
उत्तर हिम से मृदुल एक देश-प्रेम सरिता निकली,
दक्षिण तक बहते-बहते वह हिन्द-सिंधु में मिल मचली।
लैमारी, घूस, दलाली, गद्दारी, चोरी, मक्कारी –
उसके जल से ठीक हो गयी शदियों की बीमारी।
भेद-भाव का जहर पुराना साफ़ हो गया उस जल से,
हिंसक या तो कैद हो गए अथवा कांपे डर से।
वह परम तपस्वी, दर्शी दूर, दृढ संकल्पी, निष्ठावान,
जन पालक मोदी ...........
....घोडा घुमाया सालार ने खलार पर
भागा भयभीत कोई सिंह से हिरन हो
तीर अर्धचन्द्र शेर हिन्द की कमान से
चीरता अनंत मानो लेजर किरण हो
गर्दन उड़ाया दैत्य मुण्ड गिरा झील में
जय जय सुहेल गूंजा चित्तौरा.....
भारतीय नारी
ऐ भारत की प्यारी नारी ! तुम स्वरूप श्रद्धा की हो,
तुम तो फूलों सी कोमल या छुई-मुई से नाज़ुक हो ।
नहीं, नहीं झाँसी की रानी, दुर्गावती आदि भी हो
तुम तो प्रबल दामिनी हो, काली चण्डी दुर्गा तुम हो !
धरती जैसी धैर्य धारिणी मुख पर अम्बर की गरिमा,
लज्जा ममता करुणा की बहती उर में तेरे सरिता ।
किंतु किसी ने तेरे बच्चों को छूने की कोशिश की,
ख़तरा बनकर झपटी होगी उस पर क्रुद्ध शेरनी……….
अनुश्री - कविताएं
राजनीति
खेत खलियान हाट-बाट औ दुकान सब
धर्म स्थान राजनीति का शिकार है ।
धर्म औ अधर्म को मिलाय सब एक करि
शास्त्र राजनीति का विशाल औ उदार है।
देखो हर ओर राजनीति की ही जीत है
फिल्मी स्टारों को भी करनी राजनीति है।
नीति राजनीति है अनीति राजनीति है
धोखा धड़ी झूंठ सांच सब राजनीति है।
जोकर अजीब देखो, ज्ञानियों की खीस देखो
नंगन की नाच देखो, गीत सुनो गूंगन के।
ऐसे हास्य दृश्य के अनेक आइटम देखो
चित्र हैं विचित्र औ चरित्र राजनीति के।
भाई-चारे का ठेका
सही करें कितना ही हम उंगली तो भी उठती है,
गले लगा लें बड़े प्रेम से गाली तो भी मिलती है।
सरलमती को दुनिया में सम्मान मिला है कभी नहीं?
करी की पीड़ा भी क्या द्रवित किसी को करती है?
उंगली तोड़ दिया होता, गला दबाया यदि होता,
गीदड़ के पिल्लों का जबड़ा तो फिर खुला नहीं होता।
अनचाही घासों से फसलें जकड़ी हुई नहीं होतीं,
भाई-चारे का ठेका यदि हमने लिया नहीं होता।
चमन सुगन्धित सारा होता अपने फूल खिले होते,
गन्दी गलियों में रहने को हम मजबूर नहीं होते।
अपने मन की मस्त हवा बस्ती बस्ती........
अनुश्री - कविताएं
सही करें कितना ही हम उंगली तो भी उठती है,
गले लगा लें बड़े प्रेम से गाली तो भी मिलती है।
सरलमती को दुनिया में सम्मान मिला है कभी नहीं?
करी की पीड़ा भी क्या द्रवित किसी को करती है?
उंगली तोड़ दिया होता, गला दबाया यदि होता,
गीदड़ के पिल्लों का जबड़ा तो फिर खुला नहीं होता।
अनचाही घासों से फसलें जकड़ी हुई नहीं होतीं,
भाई-चारे का ठेका यदि हमने लिया नहीं होता।
चमन सुगन्धित सारा होता अपने फूल खिले होते,
गन्दी गलियों में रहने को हम मजबूर नहीं होते।
अपने मन की मस्त हवा बस्ती बस्ती........
अनुश्री - कविताएं
सिन्दूर
भारत माता सीता मैया सेना प्रिय बजरंगी।
सावधान सिन्दूरी बेटा बड़ा भयानक जंगी !
यत्न करोगे चाहे जो भी लंका भस्म बनेगी ही,
मां सीता को छूने से तेरी पहचान मिटेगी ही।
सावधान सिन्दूरी बेटा बड़ा भयानक जंगी !
यत्न करोगे चाहे जो भी लंका भस्म बनेगी ही,
मां सीता को छूने से तेरी पहचान मिटेगी ही।
सिन्दूर नहीं वह ज्वाला है विस्फोटों की वह माला है,
हिम शैल जला डालेगी वह पंगा तुमने जो पाला है।
राष्ट्र
ऐ भारत की प्यारी नारी ! तुम स्वरूप श्रद्धा की हो,
तुम तो फूलों सी कोमल या छुई-मुई से नाज़ुक हो।
नहीं, नहीं झाँसी की रानी, दुर्गावती आदि भी हो
तुम तो प्रबल दामिनी हो, काली चण्डी दुर्गा तुम हो।
तुम तो फूलों सी कोमल या छुई-मुई से नाज़ुक हो।
नहीं, नहीं झाँसी की रानी, दुर्गावती आदि भी हो
तुम तो प्रबल दामिनी हो, काली चण्डी दुर्गा तुम हो।
धरती जैसी धैर्य धारिणी मुख पर अम्बर की गरिमा,
लज्जा ममता करुणा की बहती उर में तेरे सरिता ।
किंतु किसी ने तेरे बच्चों को छूने की कोशिश की,
ख़तरा बनकर झपटी होगी उस पर क्रुद्ध शेरनी……….
नहीं मानता भारत तुममें पहले सा पुरुषार्थ नहीं,
कैसे समझूँ बाहें तेरी बलविहीन लाचार हुईं !
भीम और अर्जुन के जैसे योद्धा हैं मौजूद यहाँ,
आर्यभट्ट से हो सकते हैं यहाँ छोड़कर और कहाँ ?
अब भी तेरी धरती पर हैं विक्रम और अशोक महान,
छिपे मिलेंगे भोज परीक्षित यहाँ-वहाँ कौटिल्य तमाम ।
रोज-रोज हैं केडी बाबू, ध्यान चन्द पैदा होते,
बहुत दिखेंगे गामा, दारा कुश्ती लड़ने के भूखे ।
नहीं मानता भारत तुममें पहले सा पुरुषार्थ नहीं,
कैसे समझूँ बाहें तेरी बलविहीन लाचार हुईं !
भीम और अर्जुन के जैसे योद्धा हैं मौजूद यहाँ,
आर्यभट्ट से हो सकते हैं यहाँ छोड़कर और कहाँ ?
अब भी तेरी धरती पर हैं विक्रम और अशोक महान,
छिपे मिलेंगे भोज परीक्षित यहाँ-वहाँ कौटिल्य तमाम ।
रोज-रोज हैं केडी बाबू, ध्यान चन्द पैदा होते,
बहुत दिखेंगे गामा, दारा कुश्ती लड़ने के भूखे ।
आज अभी भी सिमटा तेरे सीने में साहस सागर,
प्रतिभाओं के तारे तुममें जग-मग करते हैं भारत ।
शक्ति और समृद्धि की है किसी तरह की कमी नहीं,
भू जंगल में शेर तुम्ही थे वही शेर हो……….
जिन्हें घृणा है देश-प्रेम से उनका हिन्दुस्तान नहीं,
गद्दारों के लिए समझ लो यहाँ कोई स्थान नहीं ।
फिर से देश नहीं सौपेगा सत्ता नकली लोगों को,
ठीक यही होगा वे जाएँ अपने असली वतनों को ।
प्रेम
तू तो सोई हुई है तुझे क्या पता
ये हृदय ठोकरें किस तरह सह रहा ।
प्यार की व्यग्र लहरें गरजने लगीं,
चित्त का शून्य है गूँजता जा रहा ।
जाग जा री प्रिये यामिनी ढल रही,
प्रेम-सागर निरंकुश हुआ जा रहा ।
मत्त मन गीत गाता भटकने लगा,
आज अंतःकरण खलभला सा रहा ।
खोल पलकें हटा तू विकलता मेरी,
मैं असह्य हलचलों में कंपा जा रहा ।
जाग जा री ........
नींद में और भी डूब तू क्यों रही,
उर तुम्हारा बता क्या नहीं दुख रहा ?
धड़कनों की गती तीब्रतम हो गयी,
देख मानस भवन नीव से हिल रहा ।
जाग जा री प्रिये यामिनी ढल रही,
प्रेम-सागर निरंकुश ...............
इतना निराश भी क्यो है, पागल !
शीतल द्रुम छाया में बैठ,
सरिता सलिल-प्यार की बहती
करुणा, अभिलाषा में देख,
दूर कहीं घाटी से आती
सुन पुकार पीड़ित मीठी सी ।
परिचित स्वर का स्वर प्रतिउत्तर
मध्य शैल मालाएँ उँची सी ।
डूब गया हूँ तुम सरिता हो, बहँक गया हूँ तुम कविता हो !
चित्त चुरा ले वह सुगंध हो, स्वर की महिमामयी छन्द हो !
तुम गुलाब हो खिलती हो, हर चीज़ महकने लगता है,
झलक मात्र से ही मन में, उद्द्वेलन होने लगता है ।
नयनों का अभिषेक करा दो, साँसों पर वश रहा नहीं,
जीवन का अतृप्त कमल, हे प्रभा-रश्मि, है खुला नहीं ।
जीवन जिसमें आहें न हों,
जीवन जिसकी राहें न हो,
जीवन वह जो प्रेमरिक्त हो,
अथवा पूरा स्वार्थसिक्त हो,
जीवन वह जो तपा नहीं है,
जिसमें आँसू बहा नहीं है,
दिल टुकड़ों में टूटा न हो,
किसी चाह में चीखा न हो,
जिसमें सपने मीठे न हों,
कंठ प्यास से सूखे न हों,
ऐसा जीवन मरा हुआ है,
उत्तर-दक्षिण पड़ा हुआ है ।
कोरोना वर्णन
चिंडियों की चहक गायब है,
बंदरों की उछल-कूद गायब है,
अब तो कुत्ते भी जी भर नहीं भौकते,
आदमी जिंदा है उसकी जिंदगी गायब है ।
त्योहार आते हैं चले जाते हैं,
लोग मरते हैं मर जाते हैं,
अब तो पता ही नहीं चलता कब क्या हुआ,
आँसू बनने से पहले ही सूख जाते हैं ।
जामाना बेरहम हो गया,
दिल सूख कर दिमाक बन गया,
कुछ घिनौनो ने ऐसा कुछ कर दिया,
सहमी ज़मीं जहाँ मायूस हो गया ।
Poet Ramesh Tiwari
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