बृहदेश्वर मंदिर



राजराज चोल प्रथम द्वारा तमिलनाडु के तंजौर में स्थित बृहदेश्वर मंदिर का निर्माण 1003-1010 ई के मध्य कराया गया था। इस मंदिर इमारत में नीव नहीं है तथा इसका निर्माण किसी भी प्रकार के चिपकाने वाले पदार्थ के बजाय ग्रेनाइट पत्थरों को एक दूसरे से फंसाकर किया गया था। इसमें 130,000 टन ग्रेनाइट प्रयुक्त हुआ था जिसे 60 किमी की दूरी से लाने में 3000 हाथियों को लगाया गया था। 13 मंजिला मंदिर के गुम्बद की उचाई 216 फ़ीट है जिसकी परछाई पृथ्वी पर नहीं पड़ती। गुम्बद शिखर पर जिस एक मात्र पाषाण खंड पर स्वर्णकलश स्थित है उसका भार लगभग 88 टन है। मंदिर में स्थापित शिवलिंग अत्यंत विशाल व् भव्य है। अतः उन्हें वृहदेश्वर नाम से जाना जाता है। इस मंदिर में नन्दी जी की प्रतिमा 6 मीटर लंबी, 2.6 मीटर चौड़ी तथा 3.7 मीटर ऊंची है जो कि एक ही पत्थर से निर्मित दूसरी सर्वाधिक विशाल प्रतिमा है। अपने समय में मंदिर का गुम्बद दुनिया का सबसे ऊंचा गुम्बद था और मंदिर का विश्व के विशालतम स्मारकों में प्रमुख स्थान था। 1000 वर्षों से अधिक आयु वाले इस स्मारक ने 6 बड़े भूकंप झेले हैं। पिसा की मीनार और बिग बेन इससे कम आयु की हैं फिर भी वे क्षतिग्रस्त होने लगी हैं किन्तु बृहदेश्वर मंदिर में कहीं कोई सिकन तक नहीं आई है। आज यह स्मारक संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) के वैश्विक विरासत का हिस्सा है।

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