ढोल गंवार शूद पशु नारी

 

जब प्रभु श्री राम जी ने समुद्र पर क्रोध किया उन्होंने विभिन्न स्वभाव वाले व्यक्तियों के साथ किये जाने वाले व्यवहार की व्यख्या की
। यहाँ समुद्र प्रभु के चरणों में समर्पण करके उनके पराक्रम का बखान करता है तो दूसरी ओर स्वयं को जड़, अज्ञानी सिद्ध करता है जैसा भयभीत लोग अपनी सुरक्षा हेतु किया करते है । प्राचीन काल में सनातन समाज था जिसमें योग्यता के अनुसार लोगों के कार्य निर्धारित होते थे । पूरे समाज का उद्देश्य एक साथ सुख से रहने का था । उस समय पूर्ण अशिक्षित व्यक्ति को गंवार, अनुशासनहीन उपद्रवी को शूद्र, पशु, और अनैतिक स्त्री को नारी से सम्बोधित करते थे और ऐसे लोगों को थोड़ा भय दिखाकर समझदार बनाने व् सुसंस्कृत करने की व्यवस्था थी । समाज के जिम्मेदार लोगों की भावना उनके प्रति कल्याणकारी थी । उस समृद्ध और ससक्त समाज को कमजोर करके उस पर राज करने के लिए विदेशियों, घरेलू द्रोहियों ने फूट डालो राज करो की नीति से समाज में वर्ग को जाति में बदल दिया । जातीय घृणा फैलाना बहुसंख्यक समाज के लिए आत्महत्या है ।

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