ढोल, गंवार, सूद, पशु, नारी...


रामचरित मानस विश्व का निष्पक्ष, निर्मल, सम्पूर्ण व् मानव कल्याणकारी ग्रन्थ है । पूर्वाग्रह से ग्रस्त कुछ लोगों को इस पवित्र महाकाब्य की एक चौपाई पर आपत्ति है : ढोल, गंवार, सूद, पशु, नारी, सकल ताड़ना के अधिकारी । इस चौपाई में दण्ड की मात्रा ढोल का उदहारण देकर बताई गयी है । हमारी परंपरा के अनुसार ढोल को हाथ से बजाकर संगीत निकाला जाता है न कि डंडे से । अर्थात हाथ से जितनी चोट ढोल पर की जाती है उतनी चोट देकर उन्मत्त गंवार, सूद, पशु या नारी को अनुशासित करने के लिए किया जाना अनिवार्य है । हमारी भाषा में अशिक्षित को गंवार कहा जाता है । सूद का तात्पर्य उस व्यक्ति से होता है जिसमें ईश्वर का भय नहीं होता है परिणामस्वरूप वह अनियंत्रित होता है या सामाजिक मर्यादाओं का उलंघन करता है । ध्यान रहे यहाँ सूद शब्द से किसी विशेष जाति व् वर्ग से कोई सम्बन्ध नहीं है । हिंदी में स्त्री को महिला, औरत, भामिनी, तरुणी, वनिता, नारी आदि अनेक शब्दों से सम्बोधित किया जाता है परन्तु इसमें प्रत्येक शब्द स्त्री के एक विशिष्ट स्वरुप की अभिव्यक्ति करते हैं । नारी प्रायः उस युवती को कहा जाता है जो कामुकता में विवेकहीन हो जाती है । अतः यहाँ नारी से सम्पूर्ण महिला वर्ग को सम्बोधित नहीं किया गया है । कुल मिलाकर यदि कहा जाय तो मानवता के संस्थापक महाराज तुलसीदास जी ने इस चौपाई के माध्यम से समाज के किसी अनुशासनहीन व्यक्ति को अनुशासित करने के लिए एक मात्र विकल्प को सुझाया है ।

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