Saturday 3 November 2018

अयोध्या में राम मंदिर



विदेशी यहाँ आए और यहाँ के लोगों पर अपना धर्म थोप गये यह भारतीयता की कायरता थी | यहाँ के धर्म स्थलों को अपने धार्मिक इमारतों में बदल गये यह भारतीयता की कायरता थी | यहाँ के लोगों को गुलाम बनाया और जाते जाते उन्हीं में से बहुतों को उनकी माला जपने की मानसिकता दे गये यह भारतीयता की कायरता थी | आज भारत में, वह भी अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए सरकार लाचार है - इससे बड़ी कायरता संसार में कहीं नहीं है |

प्रधान मंत्री इंदिरा जी एक देश भक्त सनातन महिला थीं | वे देवरहा बाबा की शिष्या भी थी | एक बार वे बाबा से मिलने प्रयाग गयी हुई थी | वहाँ पहले से भक्तों की एक विशाल भीड़ थी | इंदिरा जी जब देवरहा बाबा का आशीर्वाद लेने पहुची तब उस भीड़ ने संत से आग्रह किया कि वे अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए इंदिरा जी से कह दें | जब पूज्य श्री गुरुदेव ने प्रधान मंत्री जी से कहा कि ये भक्त राम मंदिर चाहते हैं तब उन्होने उत्तर दिया कि ये सभी पूरे हृदय से नहीं चाहते - जिस दिन ये लोग पूरे मनोयोग से माँग करेंगे उसी दिन मंदिर बन जाएगा | तपस्वी दास छावनी के हमारे स्वर्गीय गुरुदेव श्री श्री बलुइया बाबा राम मंदिर के नाम पर बहुत चिढ़ते थे | उनका भी कहना था कि लोगों को राम मंदिर नहीं चाहिए | यदि लोगों को वास्तव में राम मंदिर के प्रति लालसा होती तो न कोई न्यायालय न कोई सरकार और न ही कोई राजनीति उसे बनने रोक सकती | मेरी समझ में आता है कि भारतीय जनता ने इसी तरह अपने राजा का मुँह ताका होगा और देश गुलाम हुआ होगा |

आजाद भारत की राजनीति धर्मनिरपेक्षता की नीव पर निर्मित हुई और उस समय के प्रभावशाली नेता महात्मा गाँधी और जवाहर लाल नेहरू ने देश के बहुसंख्यक वर्ग की धार्मिक भावना को दबा कर कुंठित कर दिया । "कहीं धार्मिक बात मत कह देना नहीं तो दूसरा समुदाय बुरा मान जायेगा ।" यह कहते कहते हिन्दू आज भूल गया कि उसका भी कोई धर्म है । जबकि अन्य समुदायों को यह समझाने में वे हमेशा असफल रहे । लम्बी गुलामी के दौरान हिन्दू की धार्मिक व् सांस्कृतिक भावना पहले से ही दबी पड़ी थी स्वतंत्रता के बाद भी वह स्वतंत्र नहीं हो सका । इस विषय में उसकी अभिव्यक्ति में आज भी कायरता है । राम व् राम मंदिर के विषय में कुछ कहने से वह डरता है क्योंकि उसकी चित्तवृत्ति में भय भर गया है । यह भय राष्ट्र, राष्ट्रीय भावना व् स्वयं अस्तित्व के घातक है क्योंकि धर्म और संस्कृति समाज को स्वस्थ, नैतिक, बुद्धिमान बनाने के साथ उसे संगठित रखते हैं और इसीलिए कहा गया है जो धर्म की रक्षा करता है उसकी रक्षा धर्म करता है । दुनिया में हर संप्रदाय अपने धर्म और अपनी जीवन शैली के विषय में स्वतंत्र बोलता है हम आप क्यों घबराएं । हाँ, हमारी स्वतंत्रता इतनी भी नहीं है कि दूसरों के प्रति अपशब्द का प्रयोग करें |

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