डिजिटल भुगतान


एक ग्रामीण गुड बनाने के कारखाने में देर रात को भट्टी बुझ चुकी थी और कढ़ाई खाली पड़ी थी | कुछ मेढक कूदते-कूदते आए उस खाली कढ़ाई में बैठ गये, कढ़ाई ठंढी थी | सुबह हुआ कि भट्टी झोकने वाला आ गया | उसने गूले में आग डाली और ईधन झोकना शुरू कर दिया | कढ़ाई के गरम होते एक मेढक कूद कर बाहर निकल गया | कढ़ाई कुछ और गरम हुई, कुछ और मेढक भी कूद कर बाहर निकल गये | उनमें से एक आलसी मेढक था जिसने सोचा बाहर ठंढक में क्या जाना इसकी गर्मी में तो आनंद है | वह बैठा रह गया | कढ़ाई अचानक इतनी गरम हो गई कि उसके पंजे झुलस गये | अब वह कोशिश करके भी बाहर नहीं निकल सका |   उसमें जब रस डालने वाले आए तब उन्होने उस मेढक को देखा जो जलकर सूख चुका था | तात्पर्य यह है कि मोदी सरकार मौज से बैठने वाली सरकार नहीं है - उसे युग परिवर्तन करना है | अतः डिजिटल भुगतान के लिए आख़िर बाध्य होना ही पड़ेगा तो अभी से क्यों नहीं | परिवर्तन प्रारंभ में दुखदाई होता है लेकिन बाद में वही एक नई व और अधिक सूबिधा जनक सभ्यता के रूप में उभर आता है | यूपीए की अलसाई नीतियाँ भूलो और मोदी जी की कर्म प्रधान नीतियों को समय रहते स्वीकार करो |

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