Saturday 26 November 2016

स्वच्छ भारत अभियान पर एकांकी

पहला दृश्य
(शहर का एक मोहल्ला जो पूरे शहर में एक आदर्श बस्ती के रूप में जाना जाता है सभी मोहल्ला वासी अपने-अपने घरों की तथा आस-पास की सफाई के प्रति पूरी तरह जागरूक हैं सॉफ-सुथरी गलियाँ हैं और नालिया कहीं भी चोक नहीं हैं किसी भी दीवाल पर कहीं एक धब्बा या धूल नज़र नहीं आती सार्वजनिक जगहों जैसे पार्क, स्कूल इत्यादि मे सुलभ शौचालय उपलब्ध हैं सभी अच्छे कपड़े पहनते हैं और मेहनत से अपने व्यवसाय में लगते हैं ताकि किसी प्रकार के आभाव का सामना न करना पड़े सुबह का समय है उसी मोहल्ले की एक गली है जिसमें मोहल्ले का ही एक युवक जिसका नाम प्रतीक है अपनी मोटर साइकिल से गुजर रहा है इतने में अचानक एक छत से निकली एक पाइप से पानी की धारा नीचे नाली में गिरती है और छीटें उछलकर उसके कपड़े गन्दा कर देती हैं वह अपनी बाइक को एक किनारे खड़ा कर देता है )
प्रतीक : (ऊपर देखते हुए) ओय भल्लू, तू कभी नहीं सुधरेगा आ देख, मेरे नये कपड़ों की क्या हालत हुई है आज वैसे भी देर से हूँ अब बता अपने काम पर समय से कैसे पहुचूँ ?
भल्लू : (अपने छत से नीचे देखते हुए) परती, तू बहुत बोलने लग गया है ! तुझे नहीं मालूम कि गली में देख-सुन कर सावधानी से चलना चाहिए
प्रतीक : हमें देख-सुन कर चलना चाहिए और तुझे दीवाल से लगी नाली तक पाइप नहीं लगानी चाहिए, यही न ? इधर से कभी कोई तेरे से भी अधिक दबंग निकला न, तो तेरे दाँत तोड़ेगा ! तब तुझे सब समझ आ जाएगा  
भल्लू : बदजुबानी मत कर जा कपड़े बदल कर आ और हाँ, अब आँख खोलकर चलना सीख ले
(प्रतीक अपनी मोटर साइकिल घूमता है और वापस घर लौट जाता है )
दूसरा दृश्य
(दोपहर का समय है भल्लू अपने दोस्त से बात करते हुए मोहल्ले के एक स्कूल के सामने से गुजर रहा है भल्लू मुश्किल से बोल पा रहा है क्योंकि उसका मुँह गुटखा मसाला से पूरी तरह से फूल चुका है अचानक वह लापरवाही से सिर घुमाता है और बगल में थूक देता है संयोग से उधर प्रधानाध्यापक महोदय गुजर रहे होते हैं उनकी पैंट वर्वाद हो जाती है और विधयालय का स्वच्छ फर्श वेशक्ल हो जाती है )
प्रधानाध्यापक : भल्लू, तू इस मोहल्ले का कलंक है । तुझे ईश्वर नहीं सुधार सकता तो मेरी क्या मज़ाल । अब बताओ बच्चों को कैसे पढ़ाऊं और ड्यूटी के समय कहाँ जाऊं ?
भल्लू : गुरुजी, माफ़ करना क्या हुआ, ये मसाला बोलने नहीं दे रहा था
प्रधानाध्यापक : फिर मसाला क्यों खाते हो ? इसे खाना छोड़ दोगे तो क्या हो जाएगा ! लोग तुम्हारी फ़ज़ीहत कर देते हैं इसमें तुम्हें बुरा नहीं लगता
भल्लू : गुरुजी, आपने कभी इसे खा कर नहीं देखा मेरे पास कई सारी पाऊच हैं, कहिए तो आपको दूँ एक बार भी खाए न तो छोड़ना तो दूर इसे कभी भूल भी नहीं पाएँगे ! अरे हाँ, गुरुजी, आइए मैं नल चलाए देता हूँ ।  
प्रधानाध्यापक : तू एक काम कर मेरी चिंता छोड़ और यहाँ से जा तेरे मुँह लगना किसी के लिए ठीक नहीं
(भल्लू और उसका दोस्त फिर से बातें करते हुए आगे बढ़ जाते हैं )
तीसरा दृश्य
(एक दिन शाम को भल्लू कहीं से लौट रहा था मोहल्ले के एक दीवाल के सामने लघु शंका के लिए खड़ा हो जाता है उधर से गुजरने वाले पुरुष महिलाएँ अपना मुँह मोड़ लेते और निकल जाते उसी समय शिव प्रसाद चाचा अपनी टेन्नी टेकते हुए वहाँ पहुचते हैं
शिव प्रसाद चाचा : भल्लू, तुझे शर्म नहीं आती ! तेरी ही माँ बेटियाँ इधर से गुजरती हैं । थोड़ी दूर ही शौचालय है, जा नहीं सकता था !
भल्लू : (चाचा के पास आता है) चाचा, अपना हाथ लाओ तो ।
शिव प्रसाद चाचा : क्या करेगा ?
भल्लू : सूरज डूबने को है । आप इधर-उधर कहीं गिर पड़े तो । चलो मैं घर छोड़ कर आता हूँ ।
शिव प्रसाद चाचा : तू बहुत शैतान है । रोज देखता है मैं इतने समय थोड़ा घूमता हूँ ।
भल्लू : चाचा, हाँ, आपको बताना भूल गया, आज सुबह मंदिर में मैने झाड़ू लगाया था ।
शिव प्रसाद चाचा : झूठ बोल रहा है इतना नेक तू कहाँ हो सकता है । खैर, जा इन खंभों की लाइट जला दे ताकि मैं थोड़ी देर और घूम सकूँ ।
(भल्लू स्ट्रीट लाइट जलाता हुआ चला जाता है और अगली गली में मुड़ जाता है )
चतुर्थ दृश्य
(भल्लू की पत्नी, देवी, टोकरी में कूड़ा भर कर अपने छत पर जाती है वह अपने और अपने पड़ोसी के घर के बीच की गली में कूड़े को फेकती है चूँकि हवा चल रही होती है इसलिए कूड़े का कुछ भाग पड़ोसी के आँगन में जा गिरता है इस पर पड़ोसी की पत्नी, माधवी, भड़क उठती है )
माधवी : देवी, तूने कभी सोचा है कि तेरे नाम का मतलब क्या होता है ?
देवी : तू बड़ी पढ़ी-लिखी है तू ही बता दे क्या होता है !
माधवी : तेरे नाम का मतलब वो नहीं है जो तू कर रही है । देख कितना कूड़ा मेरे आँगन आ गया है । तेरे जैसे पड़ोसी की वजह से लगता है कि कहीं और जाकर बसना पड़ेगा ।
देवी : ठीक है तो जा । कितने रुपये लेगी अपने इस मकान का ?
माधवी : अपने मकान का प्लास्टर तो करा नहीं सकती - मेरा मकान ख़रीदेगी ! केवल तेरा ही मकान एक ऐसा है जो पूरे मोहल्ले की नाक कटवाता रहता है ।  
(ऊपर कहासुनी सुनकर भल्लू छत पर आता है )
भल्लू : (छत की रेलिंग पर झुकते हुए) भाभी, आज इतना नाराज़ क्यों हो ?
माधवी : अपनी महादेवी की करतूत देखो, कितना कूड़ा मेरे आँगन में फेक दिया है ।
भल्लू : भाभी देख सब तो अपने बस में है ये हवा, पानी, आग भी क्या अपने बस में है देवी भला ऐसा क्यों करेगी ? वो तो हवा ने कूड़े को उधर धकेल दिया है भाभी एक काम कर, चल हम दोनो मिलकर हवा से लड़ते हैं कि उसने ऐसी शरारत क्यों की है
माधवी : भल्लू, तुझे ठीक करने की दवाई किसी के पास नहीं है
(ऐसा कहकर माधवी अपने आँगन में झाड़ू लगाने लगती है ।)
पंचम दृश्य
(सूरज उगने को है भल्लू अपना गेट खोलता है तो देखता है कि कूड़े का एक पहाड़ सामने पड़ा है और मोहल्ले के सौ पचास युवक अपनी टोकरी हाथ में लिए वापस लौट रहे हैं ।)
भल्लू : तुम लोग कहाँ लौटे जा रहे हो ? मेरा दरवाजा क्या कोई कूड़ा खाना है ?
युवकों की भीड़ : तो क्या सारा मोहल्ला नगर पालिका है ?
भल्लू : क्या मतलब ?
एक युवक : यही कि तुम करो तो रासलीला ! हम तुम्हारी फैलाई गंदगी को साफ करने के लिए हैं ?
दूसरा युवक : भल्लू, हम लोग कूड़ा तब तक तुम्हारे दरवाजे पाटते रहेंगे जब तक तुम सारे मोहल्ले वालों से माफी नहीं मांगोगे और अपनी हरकत सदा के लिए छोड़ने का भरोसा नहीं दिलाओगे
भल्लू : चल जा ! देखते हैं कल तुम लोग कूड़ा यहाँ कैसे ढेर करते हो ।
तीसरा युवक : पहले इसको हटाओ फिर कल सुबह भी देख लेना
(इतना कहकर सारे लोग अपने-अपने घर लौट जाते हैं भल्लू टोकरी फावड़ा लाता है और कूड़ा हटाना शुरू करता है कूड़ा ढोते, ढोते वह थक कर चूर हो जाता है थोड़ा विश्राम करने के पश्चात वह स्नान करता है शाम को पूरे मोहल्ले के हर घर को जाता है और सबको भरोसा दिलाता है कि वह भविष्य में साफ-सुथरा एक अच्छे इंसान के रूप में रहेगा, अतः लोग अगले दिन उसके दरवाजे कूड़ा नहीं ढेर करेंगे )
लेखक - रमेश चन्द्र तिवारी

शुक्रवार, 25 नवम्बर 2016

Thursday 24 November 2016

A Prayer to Gurudev



A green, green garden we entered,

Glorious though, we felt disturbed

Because of fear of the unknown.

It looked like some alien zone.


Names of flowers, trees and plants

We learnt from our dads and moms.

The world in classrooms then unveiled;

Life engaged us in its field.


All was dark yet all was dark,

Course mysterious, no spark

Until we bathed in thy light,

In thy beauty blessed and bright.


To thy feet, we make deep bows.

Make us bloom like morning rose.

O Gurudev, O the soul divine!

Shade us by thy hand benign.

                                                - Ramesh Chandra Tiwari
                                                                Wednesday, 23 November 2016

Wednesday 23 November 2016

500 व 1000 नोट बन्दी - एकांकी नाटक

5001000 नोट बन्दी - एकांकी नाटक
प्रथम दृश्य
(८ नवम्बर 2016 की शाम को दिल्ली से टीवी के माध्यम से घोषणा करते हुए ।)
मोदी जी : मेरे प्यारे देशवासियों, विकास की इस दौड़ में हमारा मूल मंत्र रहा है सबका साथ, सबका विकास। यह सरकार गरीबों को समर्पित है और समर्पित रहेगी । एक तरफ आतंकवाद और जाली नोटों का जाल देश को तबाह कर रहा है तो दूसरी ओर भ्रष्टाचार और काले धन की चुनौती देश के सामने बनी हुई है।
बहनों भाइयों, देश को इन दीमकों से मुक्त कराने के लिए एक और सख्त कदम उठाना ज़रूरी हो गया है। अतः आज रात्रि 12 बजे से वर्तमान में जारी 500 रुपये और 1,000 रुपये के करेंसी नोट कानूनन अमान्य होंगी । अब इन नोटों को 10 नवम्बर से लेकर 30 दिसम्बर 2016 तक अपने बैंक या डाक घर के खाते में जमा करवा सकते हैं तथा अपनी जरूरत के अनुसार फिर से निकाल सकते हैं। केवल शुरू के दिनों में खाते से धनराशि निकालने पर प्रतिदिन दस हज़ार रुपये और प्रति सप्ताह बीस हज़ार रुपये की सीमा तय की गई है जो आने वाले दिनों में बढ़ा दी जायेगी।
तत्काल आवश्यकता के लिए 500 और 1,000 रुपये के पुराने नोटों को नए एवं मान्य नोट के साथ 10 नवम्बर से 30 दिसम्बर तक आप किसी भी बैंक या प्रमुख और उप डाकघर के काउंटर से अपना पहचान पत्र सबूत के रूप में पेश करके चार हज़ार रुपये तक के पुराने नोट बदल सकते हैं। ऐसे लोग जो 30 दिसम्बर 2016 तक पुराने नोट किसी कारणवस जमा नहीं कर पाए वे रिज़र्व बैंक के निर्धारित ऑफिस में अपनी राशि एक घोषणा पत्र के साथ 31 मार्च 2017 तक जमा करवा सकते हैं।
सामान्य जन-जीवन की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए 11 नवम्बर की रात्रि 12 बजे तक सभी सरकारी अस्पतालों में, रेलवे, सरकारी बसों, हवाई अड्डों पर एयरलाइन्स के टिकट बुकिंग काउंटर पर, केवल टिकट खरीदने के लिए, सार्वजनिक क्षेत्र के पेट्रोल और CNG गैस स्टेशन पर पेट्रोल, डीजल और CNG गैस के लिए पुराने 500 या 1,000 रुपये के नोट स्वीकार किये जायेंगे।
मेरा पूरा विश्वास है कि देश के सभी राजनीतिक दल, राजनैतिक कार्यकर्ता, सामजिक और शैक्षणिक संस्थाएं, मीडिया सहित समाज के सभी वर्ग इस महान कार्य में सरकार से भी ज्यादा बढ़ चढ़ कर भाग लेंगे, सकारात्मक भूमिका अदा करेंगे और इस कार्य को सफल बना कर ही रहेंगे। भारत माता की जय।
दूसरा दृश्य
(शहर का एक केफे जिसमें लोग कुछ खा पी रहे हैं । उसमें एक मेज पर दो लोग आमने सामने बैठे हुए हैं बगल की दीवाल पर लटकी टीवी चल रही है)
पहला देशवासी : देखा, ये क्या कह दिया प्रधान मंत्री जी ने ! मैं तो कभी इतना पैसा नहीं निकलता था आज जाने क्या हो गया था कि पचीस हज़ार ला कर घर पर रख दिया है - सब 500 और 1000 के नोट । 
दूसरा देशवासी : भाई तेरे पास तो कुछ नहीं है । मेरे घर तो 500 की एक समूची पैकेट पड़ी है । और परिवार वाले कितना छिपाए रखे होंगे उसका तो पता तक नहीं है ।
पहला देशवासी : भाई एक दूसरी मुसीबत, कल तो बैंक भी बंद है और खर्च के लिए दूसरे नोट भी नहीं बचे हैं ।
दूसरा देशवासी : देख, मेरे पास सौ के कुछ नोट पड़े होगें । उसमें से कुछ ले लेना और चल परसों लगते हैं लाइन में ।
तीसरा दृश्य
(एक बैंक के सामने पुराने नोट जमा करने, उन्हें बदलवाने तथा नये नोट निकालने वालों की लाइन लगी है।)
पहला देशवासी : देख नहीं रहे हो ? सुबह से लाइन में लगा हूँ और तुम अभी आए क्या कि बीच में घुसे जा रहे हो ! 
तीसरा देशवासी : थोड़ा सा अड्जस्ट कर लो, भाई – वीवी बीमार है ।
दूसरा देशवासी : तेरे पास पाँच सौ एक हज़ार के पुराने नोट हैं न ?
तीसरा देशवासी : एक भी पैसे नहीं हैं । नहीं तो मुझे मालूम है अस्पताल में पुराने नोट चल जाएँगे ।
पहला देशवासी : ठीक है, तब तो आ जा लाइन में ।
तीसरा देशवासी : शुक्रिया, भाई साहब ! लेकिन मैं जानना चाहूँगा कि मोदी जी के इस फ़ैसले पर आपकी क्या राय है?
पहला देशवासी : प्रधान मंत्री मोदी जी का यह ऐतिहासिक फ़ैसला व्यवस्था बदलने वाला है और हराम की खाने वालों को सड़क पर खड़ा कर देने वाला है । माफिया, काले व्यापारी, तस्कर, सूदखोर, दलाल, घूसखोर जैसे हराम की कमाई करने वालों के अब बुरे दिन आने वाले हैं और मेहनत मजूरी करने वालों के हमेशा से बन्द भाग्य खुलेंगे ।
तीसरा देशवासी : मेरे ख़याल से मोदी जी देश को तबाही की ओर ले जा रहे हैं । किसान कैसे खेत बोएगा, व्यापार सब ठप पड़ जाएगा, न जाने कितने लोग दाना और दवाई की कमी से दुनियाँ छोड़ कर चल देंगे । आप देखते जाइए आगे होता क्या, क्या है !
दूसरा देशवासी : जब भी फसल तैयार होती है जमाख़ोर अपना गोदाम खोल देते हैं । परिणामस्वरूप, अनाज के भाव ज़मीन पर आ जाते हैं फिर वे इस गिरी हुई कीमत पर किसानों का अनाज खरीद कर अपना गोदाम भर लेते हैं और जब किसान के पास अनाज समाप्त हो जाता है तब अपने गोदामों को फिर बंद करके धीरे-धीरे निकासी करने लगते हैं और दुगनी, तिगुनी कीमत पर वही अनाज बेच कर मुनाफ़ा कमाते हैं । ऐसे लोगों का देश के लिए कोई योगदान नहीं होता है बल्कि वे उपभोक्ता और किसान दोनों की जेब काटते हैं । आज देश में काला धन रखने वाले जमाख़ोर जो कल तक सौ करोड़ के मलिक थे वे केवल एक करोड़ के मलिक रह गये हैं । ऐसे में अब वे जमाखोरी करने की स्थिति में नहीं होंगे । 
तीसरा देशवासी : यह आपको लगता है कि ऐसा होगा । मैं आपको सही बताऊं - छोटी मछलियाँ फँस जाएँगी और घड़ियाल कूद कर निकल जाएँगे । मोदी जी को भी वोट चाहिए, इन सबसे उनका कोई लेना-देना नहीं है ।
दूसरा देशवासी : मोदी सरकार ने जिस तरह से एक हज़ार और पाँच सौ के नोट चलन से बाहर किए हैं ऐसा निर्णय केवल वही प्रधान मंत्री ले सकता है जिसे देश से प्रेम हो न कि अपने से । मुख्य मंत्री और प्रधान मंत्री के रूप में कार्य करते हुए मोदी जी को कितना समय हो गया, इस दौरान उन्होने अपने परिवार को मेडिकल सुविधा के अतिरिक्त और कोई लाभ नहीं पहुचाया ।
पहला देशवासी : (तीसरे देशवासी से) भाई साहब बुरा नहीं मानना - लगता है आपको मोदी जी से स्वाभाविक नफ़रत है । मोदी जी ने विकास की बात की थी ? आज विजली, सड़क, रसोई गैस, उर्वरक सब की उपलब्धता पहले से अच्छा है कि नहीं ? उन पर विश्वास न करने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता ।
चौथा दृश्य
(एक टीवी स्टूडियो जिसमें एक रिपोर्टर कुछ विपक्षी नेताओं का विमुद्रीकरण पर बयान ले रहा है।)
टीवी रिपोर्टर : प्रधान मंत्री मोदी जी ने जनता से पचास दिन माँगे हैं इस पर आपका क्या कहना है ?
नेता जी : पचास दिन तो क्या पचास घंटे भी नहीं ! नोट बन्दी एक बड़ा घोटाला है । यदि वर्तमान अफरा-तफरी जारी रही तो व्यापक अशांति पैदा हो सकती है।
टीवी रिपोर्टर : (एक नेत्री के पास जाते हुए)  दीदी, प्रधान मंत्री द्वारा विमुद्रीकरण के विषय में आप जनता से क्या कहना चाहेंगी?
नेत्री : मोदी की तानाशाही के माध्यम से देश नहीं चलना चाहिए। यह ऐसा संकट है जो आपातकाल में भी नजर नहीं आया।
टीवी रिपोर्टर : आप देश के युवा नेता हैं मैं आपसे जानना चाहूँगा कि नोट बन्दी से आम जनता पर क्या असर पड़ेगा ?
युवा नेता जी : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिखा दिया कि वह इस देश के आम लोगों का कितना ध्यान रखते हैं । अब किसानों, छोटे दुकानदारों और गृहणियों के लिए अत्यंत अस्त-व्यस्त करने वाली स्थिति पैदा हो गई है ।
टीवी रिपोर्टर : बहन जी, प्रधान मंत्री जी ने ग़रीबों के हित में बड़ा फ़ैसला लिया और 500 तथा 1000 के नोटों को चलन से बाहर कर दिया है । इससे किसान, मजदूर को क्या मिलेगा ?
नेत्री : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कह चुके हैं कि सरकार पिछले 10 महीने से विमुद्रीकरण की तैयारी कर रही थी । असल बात यह है कि इन 10 महीनों में बीजेपी के नेताओं और उद्योगपतियों को अपना काला धन ठिकाने लगाने का मौका दिया गया।
पाँचवाँ दृश्य
(एक अपार जन समुदाय को संबोधित करते हुए प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी)
मोदी जी : भाइयो एवं बहनो, मैंने घर-परिवार सब कुछ देश के लिए छोड़ दिया। कैसे-कैसी ताकतों से मैंने लड़ाई मोल ली है । मैं जानता हूं वे मुझे जिंदा नहीं छोड़ेंगे। आप लोग 50 दिन मेरी मदद करें उसके बाद यदि काली कमाई न बंद हुई तो देश जो सजा देगा मुझे मंजूर होगा जनता ने मुझे भ्रष्टाचार और कालाधन के खिलाफ लड़ने के लिए चुना है इसलिए मैं यह काम कर रहा हूं ।
इरादा नेक हो तो काम ठीक होगा इससे गरीब, किसान और गांव का भला होगा कालाधन रखने वालों के घर में छापे मारते रहते तो कई साल लग जाते, इसलिए समस्या के समाधान के लिए यह रास्ता अपनाया गया । आज गरीब, अमीर समान हो गए । हाँ आपसे अनुरोध है कि किसी दूसरे की रकम अपने खातों में मत जमा करें
आज सामान्य ईमानदार नागरिक को तकलीफ हो रही है, मुझे उसकी पीड़ा है, मैं पूरा प्रयास कर रहा हूं कि समस्या दूर हो । गरीब को कड़क चाय पसंद, लेकिन अमीर का मुंह बन जाता है, अफवाहें फैलाई जा रही हैं । महिलाओं को 2.5 लाख तक पूरी छूट है, कोई कुछ नहीं पूछेगा । लेकिन, 2.5 करोड़ वालों को नहीं छोड़ूंगा ।
रात में चोरी छिपे लोग गंगा जी में नोट फेंक रहे हैं । मैंने केवल 50 दिन लोगों से थोड़ी तकलीफ सहने का आग्रह किया है । इस देश में बेईमानों के दिन खत्म होकर रहेंगे । बन्दे मातरम !
छठा दृश्य
(दोपहर का समय है । पुरुष, महिलाएँ बुजुर्ग सभी एक बैंक के सामने लम्बी लाइन लगाए खड़े हैं पुलिस वाले ड्यूटी पर हैं और एक, एक करके लोगों को अन्दर जाने दे रहे हैं । अचानक कुछ गाड़ियाँ आ कर खड़ी हो जाती हैं । उसमें से एक नेता जी लोगों की लाइन के पास आते हैं । नेता जी के कार्यकर्ता गाड़ी से पानी की थैली निकालकर लोगों में वितरित करने लगते हैं )
नेता जी : मुझे आप लोगों के प्रति बड़ी सहानुभूति है । मैं आपके दर्द को महसूस कर रहा हूँ । स्वतंत्र भारत के इतिहास में ऐसी स्थिति कभी नहीं आई । आप भरोसा रखिए हम आपके हित की लड़ाई लड़ते रहेंगे और एक सुखी और समृद्ध भारत के लिए जो भी उचित होगा वह सब करेंगे ।
लाइन में लगे लोग : नेता जी जिंदाबाद ! नेता जी जिंदाबाद ! नेता जी जिंदाबाद !
नेता जी : भाइयों एवं बहनों, मोदी जी जबसे प्रधान मंत्री बने हैं तबसे देश ने एक दिन भी चैन की साँस नहीं ली है । बड़ी, बड़ी डींग मारी कहा विदेशों से काला धन ले आएँगे । आप ही बताओ कुछ हुआ ? उन्हें जनता की परेशानी से कोई लेना देना नहीं बस बड़ी, बड़ी बातें करना और लोगों को परेशान करना ....
पहला युवक : (बात काटते हुए) विदेशों में काला धन किसका जमा है, मोदी जी का ? उनके अतिरिक्त कौन ऐसा नेता है जिसको पैसों से नहीं बल्कि देश से लगाव है ?
वरिष्ठ नागरिक : आप सभी ग़रीब, ग़रीब चिल्ला कर अभी तक वोट लेते रहे । कभी ग़रीबों का भी भला हुआ ? अब कह रहे हो मोदी जी अमीरों के नेता हैं । अमीरों के नेता तो सच में आप सभी हो जो बौखलाए हुए हो और गोलबंदी करके सरकार की योजना को विफल करने की पूरी कोशिश में लगे हो । अफवाह कौन फैला रहा है, भ्रमित कौन कर रहा है, उपद्रव कौन उकसा रहा है, काले धन को बदलने के लिए किराए पर लोगों को लाइन में कौन लगवा रहा है ?
दूसरा युवक : नेता जी वापस जाओ, जाकर अपनी खैर मनाओ !
लाइन में लगे बहुत से लोग : नेता जी वापस जाओ, जाकर अपनी खैर मनाओ ! नेता जी वापस जाओ.........! मोदी ! मोदी ! मोदी ! मोदी ! मोदी ! मोदी ! मोदी !.................
(नेता जी धीरे से पीछे मुड़ते हैं और वहाँ से चले जाते हैं ।)
वरिष्ठ नागरिक : इनको विरोध करना है इसलिए विरोध है । कुछ सरकारों को देश के भविष्य से कोई मतलब ही नहीं होता, ये जनता को टुकड़े फेकती हैं और मोटी रकम अपने जेब में डालती है । चुपचाप पाँच वर्ष बीत जाता है और देश की कमर टूट जाती है । यह विमुद्रीकरण साधारण काम नहीं है । प्रधान मंत्री जी को पता है यदि विफल हो गया तो कितनी फ़ज़ीहत हो सकती और सरकार पर भी बन आ सकती है । सोचो, इतना जोखिम और इतने भद्दे विरोध के बीच उन पर कितना मानसिक दबाव होगा । इसके बावजूद भी वे देश की दशा को सुधारने के प्रति संकल्पित हैं ।
पहला युवक : कुछ नेता कहते हैं मन्दी आ जाएगी । कुछ कहते हैं किसानों, ग़रीबों का हित मारा जाएगा । कुछ चिल्ला रहे हैं कि जनता त्रस्त है । मन में राम बगल में छूरी - जनता का बहाना, उद्देश्य अपने सहित काले धंधे बाजों को बचाना । देश की पूरी अर्थव्यवस्था का ८० प्रतिशत केवल इन १० प्रतिशत लोगों के बोरों में है । मोदी जी पर खूब इल्ज़ाम लगाया कि वे अमीरों के नेता हैं । अब क्या हो गया ? कहाँ गया वामपन्थ और भ्रष्टाचार विरोध ? खैर, ढोंगियों का ढोंग बाहर निकल रहा है । इनमें दम हो तो कहें कि प्रधानमंत्री जी ने कुछ खाया है या किसी को खाने दिया है ।
वरिष्ठ नागरिक : ये ढोंगी सत्ता का उपयोग केवल अपनी पीढ़ियों के भविष्य को सुरक्षित करने में करते रहे हैं । इन्हें कभी नहीं दिखा कि काले धन के बल पर देश में असामाजिक तत्व संगठन बनाए किस तरह सक्रिय हैं और सामाजिक संतुलन विगाड़ने, वसूली करने में किस तरह लिप्त हैं । इन्हें कभी नहीं दिखा कि पाकिस्तान हमारी ही करेंसी छाप कर उससे खरीदे गये हथियार हम पर ही चला रहा है ! इन्हें कभी समझ नहीं आया कि यदि काला धन बैंकों में जमा हो गया तो हमें कम व्याज दर पर कर्ज़ मिल सकेगा और हम आम आदमी भी कुछ रोज़गार कर सकेंगे । मुझे तो देश के प्रति इनकी निष्ठा पर ही शक है ।
दूसरा युवक : दादा, एक चीज़ बताओ, अब आम आदमी और व्यापारी बैंक से कितनी रकम निकाल सकता है ?
वरिष्ठ नागरिक : अब आम आदमी बैंक से एक दिन में दस हज़ार और एक साप्ताह में कुल चौबीस हज़ार रुपये निकाल सकता है । चालू ख़ाता धारक व्यापारी हर साप्ताह पचास हज़ार रुपये निकाल सकता है - चाहे एक बार में निकाले या कई बार में ।
दूसरा युवक : मुझे ताज्जुब है ये नेता फिर क्यों तिल का ताड़ बना रहे है । इतनी रकम में सामान्य जिंदगी चल सकती है, हाँ अमीरी नहीं हो सकती । अच्छा यह बताओ एटीएम से कितना निकल सकता है ?
वरिष्ठ नागरिक : एटीएम से भी आप एक बार में ढाई हज़ार निकाल सकते हो ।
पहला युवक : मैं नहीं सोच पा रहा हू कि लोग ई-भुगतान पद्ध्यति क्यों नहीं अपनाते । यदि सारे विक्रेता के पास मशीने हों तो लोग अपने बैंक से कार्ड लेकर सीधे भुगतान करना भी पसंद करेंगे और सारी समस्या ही समाप्त हो सकती है ।
वरिष्ठ नागरिक : यही तो मोदी सरकार चाहती है लेकिन ऐसा न करने की मूल वजह विक्री को छिपाना और आयकर के डर से रकम को बैंक के बजाय घर पर रखना है ।
पहला युवक : प्रधान मंत्री जी ने कहा है कि जिनके पास जन-धन ख़ाता है वे ढाई लाख तक की पुरानी रकम जमा कर सकते हैं । मुझे तो शक है कि नेता लोग या कोई दूसरा भी इन लोगों की सहायता से अपनी न चलने वाली रकम को चलने वाली बना सकता है ।
वरिष्ठ नागरिक : तुम्हारा शक सही है । लोग ऐसा करने की कोशिश भी कर रहे हैं । लेकिन सुना नहीं, मोदी जी ने सबको सावधान किया है कि ऐसा करने से वे क़ानूनी पचड़े में फँस सकते हैं । इसकी भी छानबीन बाद में होगी ।  
सातवाँ दृश्य
(एक ग्रामीण बैंक के सामने पुराने नोट जमा करने, उन्हें बदलवाने तथा नये नोट निकालने वालों की लाइन लगी है।)
पहला किसान : बुवाई का समय तो ज़रूर है और पैसों की थोड़ी दिक्कत भी हो गई है । कोई बात नहीं, बहादर, देश के नाम पर तो लोग कुर्बान हो जाते हैं ! फिर भी हमें भरोसा है मोदी जी हमारे लिए कुछ करेंगे ज़रूर ।
दूसरा किसान : अरे, कर दिया है भाई ! तुम्हें नहीं मालूम अब हम पचीस हज़ार रुपये हर सप्ताह निकाल सकते हैं और पुराने नोटों से बीज भी खरीद सकते हैं । और हाँ, जिनकी शादी है उनके माता या पिता केवाईसी को पूरा करते हुए ढ़ाई लाख रुपये अपने बैंक खाते से निकाल सकते हैं
पहला किसान : सही ! हमें विश्वास नहीं हो रहा ।
दूसरा किसान : ये देखो मैं पचीस हज़ार का चेक भर लाया हूँ - अब तो मानोगे
पहला किसान : वाह, बड़े भाई, आपने तो काम बना दिया । मैने अभी तक चेक भरा ही नहीं है । बस, थोड़ी मदद कर देना ।
तीसरा किसान : कदम सरकार ने उठाए पैर हमारे दर्द कर रहे हैं ।
पहला किसान : चुप वे ! क्या मसखरी करता है !
तीसरा किसान : मैं मसखरी कर रहा हूँ ? तुम्हारे पास तो चेक है, हमें नोट बदलना है । अब तो केवल दो हज़ार ही बदले जाएँगे । मोदी जी ने तो बर्वाद कर दिया किसान को ।
दूसरा किसान : पहले मुँह बंद कर तो ! सच, सच बता कितने रुपये की दिहाड़ी पर दूसरे के नोट बदलने आया है ? बड़ा चला मोदी जी को कुछ कहने ! तेरे जैसे ही लोग अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारते हैं ।
लेखक - रमेश चन्द्र तिवारी
बुधवार, 23 नवम्बर 2016