Vishwabharati releases my book under the title of “Trishna (Thirsty Wings) at a festival of literature being held in Hyderabad on May 27, 2018. The following is the cover of the book. The book is an incredible collection of 44 poems that cover a broad range of subjects, like: politics, nationalism, faith, humanity and love. It is an interesting book, giving a fascinating insight into Mr Narendra Modi’s character and his way of work, dealing with certain individual and national issues and singing some emotive love and devotional songs.
I have a variety of exotic dishes of thoughts – all for you, good friends. Come on and enjoy interesting short stories, essays and poems (both in English and Hindi).
Sunday 20 May 2018
Wednesday 9 May 2018
मनुस्मृति
पूज्य गुरुदेव स्वामी परमानन्द जी महाराज कहते हैं कि हमारा शरीर हिन्दू है जिसके प्रमुख चार अंग हैं: ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र अर्थात शीश, हाथ, पेट और पैर | अब यदि पैर में काँटा चुभ जाय तो क्या हाथ उसे निकालने से इन्कार करेगा या काँटा कहाँ चुभा है उसे देखने से आँख इन्कार करेगी ? क्या पेट सारे शरीर का पोषण नहीं करता ? शीश का कार्य सारे शरीर की सुरक्षा, उसकी देखभाल, और जो भी उसके लिए उचित है उसका मार्ग दर्शन करना होता है | क्या वह कभी किसी अंग के लिए पक्षपात करता है ? कौन ऐसा संगठन है जिसमें विभिन्न वर्ग नहीं हैं ? एक कार्यालय में लोग विभिन्न पदों पर कार्य करते है – न तो सभी अधिकारी हैं और न ही सभी कर्मचारी | पैर में कहीं चोट लग जाती है तो सारा शरीर उसे आरक्षण की विशेष सुविधा देकर उसे स्वस्थ करता है | इसी तरह यदि मस्तिस्क विगड़ता है तो उसका इलाज होता है | एक अंग को स्वस्थ करने के लिए बाकी सारे अंग सहयोग करते हैं | हिन्दू क्षत-विक्षत है क्योंकि राजनीति ने मनुस्मृति के सिद्धांतों का तिरस्कार कर दिया है | उसमें जब तक एकात्मकता का भाव नहीं आएगा, उसका एक अंग दूसरे अंग से घृणा करता रहेगा वह तब तक सशक्त नहीं हो सकता और न ही एक संतुलित समाज बन सकता है |
दीदी माँ साध्वी ऋतंभरा जी ने कई प्रान्तो में वात्सल्य ग्राम की स्थापना की है जिसका उद्देश्य ऐसे शिशुओं का पालन पोषण करना है जिन्हें उनकी माताएँ लोक लाज के कारण त्याग देती हैं | यहाँ पूज्य गुरुदेव स्वामी परमानन्द जी महाराज कहते हैं कि इस सामाजिक विकार का कारण वर्णशंकर संस्कृति अपनाना है | वे कहते हैं कि रूस वाले ऐसी स्थिति में भी बच्चे नही त्यागते | यदि आप उनकी संस्कृति का अनुकरण करते हो तो पूरा वही करो | और यदि आप अपनी संस्कृति का पूर्णतः पालन करो तो ऐसी स्थिति कभी आएगी ही नहीं | गोस्वामी जी ने पुरुषों के लिए कहा है, "जो आपन चाहै कल्याना। सुजसु सुमति सुभ गति सुख नाना॥ सो परनारि लिलार गोसाईं। तजउ चउथि के चंद कि नाईं ॥" जो मनुष्य अपना कल्याण, सुंदर यश, सुबुद्धि, शुभ गति और नाना प्रकार के सुख चाहता हो, वह परस्त्री के ललाट को चौथ के चंद्रमा की तरह त्याग दे | उन्होने स्त्रियों को भी शिक्षा दी है, "एकइ धर्म एक ब्रत नेमा । काँय बचन मन पति पद प्रेमा ।।“ मनुस्मृति में लिखा है कि स्त्री का सच्चा देवता पति ही है। “सततं देववत्पतिः ॥“ श्रीमद्भागवत में कश्यप जी ने दिति से कहा है कि केवल एक पति ही स्त्री का परम देवता है। “पतिरेव हि नारीणाँ दैवतं परमं स्मृतम् ॥“
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