Saturday 16 November 2019

अवधी बोली साहित्य में ग्राम्य दर्शन



The following article by me was broadcast on All India Radio, Lucknow on 22 Oct 2019 at 6.20 pm.

अवधी हिन्दी की एक उपभाषा है । यह उत्तर प्रदेश के अवध क्षेत्र में कई रूपों में बोली जाती है, जैसे: पूर्वी, कोसली, पश्चिमी, गांजरी, बैसवाड़ी आदि । क्षेत्र के हिसाब से अवधी को तीन भागों में बाँटा जा सकता है : लखीमपुर-खीरी, सीतापुर, लखनऊ, उन्नाव और फतेहपुर की बोलियां को पश्चिमी, बहराइच, बाराबंकी और रायबरेली की बोलियां को मध्यवर्ती और गोंडा, फैजाबाद, सुलतानपुर, प्रतापगढ़, इलाहाबाद, जौनपुर और मिर्जापुर की बोलियाँ को पूर्वी । आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने इसे देसी भाषा की संज्ञा दी है । अवधी के प्राचीनतम चिन्ह सातवीं शताब्दी से मिलते हैं जिसे प्रारंम्भिक काल के नाम से जाना जाता है । इसकी अवधि 1400 ई. तक माना गया है । विद्वानों ने इसका मध्यकाल- 1400 से 1900 तक तथा आधुनिक काल- 1900 से अब तक माना है ।

अवधी के मध्यकाल को इसका स्वर्ण काल कहा जा सकता है क्योंकि इसी दौरान प्रेमाख्यान काव्य व भक्ति काव्य दोनों का विकास हुआ। प्रेमाख्यान का प्रतिनिधि ग्रंथ मलिक मुहम्मद जायसी रचित ‘पद्मावत’ है, जिसकी रचना ‘रामचरितमानस’ से चौंतीस वर्ष पहले हुई । मुल्ला दाउद ने सर्वप्रथम 1379 ई. में चांदायन काव्य की रचना की. फिर इसी क्रम में कुतुबन की मृगावती, जायसी कृत पदमावत्, मंझन की मधुमालती, शेख नबी का ज्ञान दीप, उसमान की चित्रावली, जान की कमलावती, नूर मुहम्मद की इंद्रावती, अनुराग बांसुरी, शेख रहीम का भाषा प्रेमतत्व, नारायण का छिताई वार्ता, साधन का मैनासत, सूरदास लखनवी का नलदमन, कासिम शाह का हंस जवाहर, शेख निसार का यूसुफ जुलेखा आदि काव्य-कृतियां रची गईं ।

प्रेमाख्यानक काव्य से प्रेरित होकर अवधी में एक विशेष प्रवृत्ति का जन्म हुआ, जिसे चरितात्मक काव्य कह सकते हैं. ये चरित ग्रंथ प्रायः राम, कृष्ण पर हैं और गौण रूप से सीता, हनुमान, ध्रुव, प्रहलाद, भीष्म आदि से संबंधित हैं । गोस्वामी तुलसीदास कृत रामचरित मानस के बाद तो दोहा चौपाई सोरठा शैली में रचित रामकथाओं की भरमार हो गई । इन काव्यों की भाषा प्रायः ठेठ अवधी है । अवध की लोक संस्कृति की गहरी पहचान इन कृतियों की विशेषता है । राम कथा से लेकर आल्हखंड जैसी लोकगाथाओं की रचना अवधी में बहुत हुई है । ऐसी प्रबंधात्मकता दूसरी भाषा में नहीं है । घाघ जैसे लोकपंडितों ने कृषि और मौसम विज्ञान पर बहुत लिखा है ।

मध्य काल के अन्य कवियों की भाँति घाघ के विषय में कोई प्रमाणित जानकारी उपलब्ध नहीं है । माना जाता है उनका वास्तविक नाम देवकली दूबे था । वे कन्नौज के चौधरी सराय के निवासी थे । अवधी में कृषि संबंधी उनकी कहावतें बहुत प्रसिद्ध हुईं जिसके लिए सम्राट अकबर ने उन्हें चौधरी की उपाधि दी थी । उनकी कुछ कहावतें प्रस्तुत हैं जिन्हें सुनकर आपको भी बहुत सी दूसरी कहावतें याद आ जाएँगी ।

हथिया पोछि ढोलावै।
घर बैठे गेहूं पावै।।

जब बरखा चित्रा में होय।
सगरी खेती जावै खोय।।

गेहूं गाहा, धान विदाहा।
ऊख गोड़ाई से है आहा।।

आद्रा में जौ बोवै साठी।
दु:खै मारि निकारै लाठी।।

उन्नीसवीं सदी से अवधी का आधुनिक युग शुरू हुआ । 1857 के बाद अवधी के जनकवियों ने कई प्रकार से उद्गार व्यक्त किए, जिनके मुख्य बिंदु हैं-व्यंग्य-विनोद और व्यंग्य विद्रूप. व्यवस्था से असहमत होकर और साथ ही अपनी विवशता से कसमसाते हुए इन कवियों ने कभी सत्ता पर व्यंग्य किया, कभी आयातित पाश्चात्य सभ्यता पर । इस क्षेत्र में प्रताप नारायण मिश्र, पढ़ीस, बंशीधर, देहाती, नवीन, रमई काका आदि की कविताएं चिर स्मरणीय रहेंगी । इसकी दूसरी विशेषता कृषक संस्कृति और ग्रामीण व्यवस्था परक रचनाएं हैं । अवधी में किसान काव्य सर्वाधिक लिखा गया है । लहलहाते खेत, स्थानीय ऋतु सौंदर्य अर्थात् प्रकृति-परिवेश इन कवियों को आह्लादित करते रहे हैं । दूसरी ओर ऋणग्रस्त और गरीब किसानों की भुखमरी, उनकी बेगार अर्थात् शोषण-उत्पीड़न इन कवियों के मन में व्यंग्य, वेदना और प्रकारांतर से व्यंग्य-विद्रोह की सृष्टि करते रहे हैं ।

आधुनिक अवधी साहित्य में बलभद्र प्रसाद दीक्षित 'पढ़ीस' का नाम बहुचर्चित रहा है । पढ़ीस का जन्म सीतापुर के अंबरपुर नामक गाँव में 25 सितम्बर 1898 को हुआ था । वे कसमंडा नरेश के प्राइवेट सेक्रेटरी बने । उसे छोड़कर उन्होने आकाशवाणी लखनऊ में नौकरी की जहाँ पर अवधी के कार्यक्रमों की शुरूवात उन्होने ही की थी और पंचायतघर उन्हीं की देन थी । किन्तु अंत में अपने आदर्शों के अनुरूप सरकारी नौकरी करने के बजाय अपने जीवन को दलित और आम किसानों की शिक्षा में तथा ग्रामीण जीवन जीने में लगाना उचित समझा । 1933 ई. में ‘चकल्लस’ शीर्षक उनका काव्य संग्रह प्रकाशित हुआ जिसकी भूमिका स्वयं निराला जी ने लिखी और कहा कि यह काब्य संग्रह हिन्दी के तमाम सफल काव्यों से बढ़कर है । उनकी मृत्यु 09 जनवरी 1943 को अल्पायु में खेत जोतते समय हल के फल से घायल होने से हुई । पढ़ीस जी अवध के पहले किसान कवि थे । चकल्लस में प्रकाशित उनकी कविताएँ उनके गाँव देहात की स्वाभाविक सोच है । उनमें ग्रामीण मजदूर, किसान, महिला आदि भरपूर व्यंजना के साथ प्रस्तुत किए गये हैं । उनकी इस कविता में शोषितवर्ग में स्वाभिमान जगाने की कितनी उत्कंठा है:

फिरि का बिपदा बनई ?
जागि उठउ करउ चेतु,
न अउँघाउ न अकुलाउ
तनुकु भाखउ तउ ।
तनुकु द्याखउ तउ !
तुमरे लरिका बिटिया,
तुमरे बछिया पँड़िया,
तुमरइ बर्द्धउ बधिया,
हयि ख्यातउ खरिहानु
तनुकु जानउ तउ ।
तनुकु मानउ तउ !
लावा को महिमा हयि,
स्वाचउ को केहिका हयि ?
घरू जिहिका तिहिका हयि
को घेरि घेरि घुसा
तनुकु द्याखउ तउ !
तनुकु भाखउ तउ ।
तुमरे घर की माया
ठलुहा लयि लयि भाजयिं !

बंशीधर शुक्ल की रचनाओं में ग्रामीण जीवन ज्यों का त्यों प्रतिबिन्वित है । उनका जन्म लखीमपुर के मन्यौरा ग्राम में सन 1904 में हुआ था और 1980 में उनका स्वर्गवास हो गया । वे अवधी के कवि, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी व राजनेता भी थे । उनकी इन पंक्तियों में एक कृषक की स्थिति एवं व्यवस्था के प्रति विद्रोह स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता है ।

पटवारी कहइँ हमका देउ, हम तुम्हरेहे नाव चढाय देई।
पेसकार कहइँ हमका देउ, हम हाकिम का समुझाय देई
हाकिम कहइँ हमइँ देउ, तउ हम सच्चा न्याव चुकाय देई।
कहइँ मोहर्रिर हमका देउ, हम पूरी मिसिल जँचाय देई
चपरासी कहइँ हमका देउ, खूँटा अउ नाँद गडवाय देई।
कहइँ दरोगा हमका देउ, हम सबरी दफा हटाय देई
कहइँ वकील हमका देउ, तउ हम लडिकै तुम्हइ जिताय देई।

हमरे साढू के साढू जिलेदार।
यक किसान की रोटी,जेहिमाँ परिगइ तुक्का बोटी
भैया !लागे हैं हजारउँ ठगहार।

अवधी के आभूषण चंद्रभूषण त्रिवेदी 'रमई काका' का जन्म 2 फ़रवरी 1915 को उन्नाव जिले के रावतपुर गाँव मे हुआ था तथा १8 अप्रैल 1982 को स्वर्ग वास हुआ । वे वर्ष 1940 से 1975 तक लगातार आकाशवाणी लखनऊ व इलाहाबाद में कार्यरत रहे और उस दौरान पूरे अवधी भाषी अंचल में 'रमई काका' के नाम से जन-जन के मनोमस्तिष्क पर छा गए । काका पढ़ीस और वंशीधर शुक्ल के साथ बहुत लोकप्रिय रहे हैं ।

रमई काका की अवधी में लिखी गईं ग्राम्य जीवन पर आधारित कविताओं में चौंकानेवाली प्रगतिशीलता और विद्रोह का स्वर मिलता है ।

धरती हमारि ! धरती हमारि !

है धरती परती गउवन कै औ ख्यातन कै धरती हमारि।

हम अपनी छाती के बल से धरती मा फारु चलाइत है,

माटी के नान्हें कन - कन मा , हमही सोना उपजाइत है,

अपने लोनखरे पसीना ते ,रेती मा ख्यात बनावा हम,

मुरदा माटी जिन्दा होइगै,जहँ लोहखर अपन छुवावा हम,

पारस नाथ भ्रमर जी का स्थान 20वीं शदी के अवधी साहित्य के प्रमुख साहित्यकारों में है । उनका जन्म जनवरी 10, 1934 को हुआ था । वे बहराइच के जाने माने वकील श्री कन्हैयालाल मिश्र के पुत्र थे उन्होने 02 नवंबर 2003 को शरीर का त्याग किया । उनके द्वारा रचित एक लोक गीत - देखिए इसमें ग्रामीण जीवन का कितना सजीव चित्रण है :

अरहरी के ख्यातन मा आय गईं फलियाँ

झम्मक झम्मक झम झमा झम बाजे पैजनिया

लहकई लहररा औ आय गयीं जोन्धरी

घर की घरैतिन का लाय देव मुदरी

अवधी बोली साहित्य में जहाँ दुनिया की महानतम रचनाएँ हुयी हैं वहीँ अवध क्षेत्र के ग्राम्य जीवन का सजीव चित्रण मिलता है और इसी कारण विद्वानों ने इसे देशी भाषा या देहाती भाषा कहा है । खेत, खलियान, कृषि विधि, प्राकृतिक परिदृश्य, लोगों का रहन सहन, लोक संस्कृति, ग्रामीण वर्ग का जीवन स्तर, उनका शोषण और उसके प्रति साहित्यकारों का रोष - गाँव से जुड़ा कोई क्षेत्र इस साहित्य में अछूता नहीं है ।

मैं स्वयं बहराइच के उमरी दहेलो गाँव का निवासी हूँ । यद्यपि मैंने अधिकतर अंग्रेजी में कहानियां व् कवितायेँ लिखी हैं फिर भी मैंने अपनी मातृभाषा अवधी में कम रचनाएँ नहीं की हैं जिनमें ग्राम्य जीवन का ही चित्रण किया है ।





Tuesday 12 November 2019

Akhil Bharteey Sahitya Parishad

Akhil Bharteey Sahitya Parishad held its monthly meeting at Senani Bhawan, Bahraich on November 10, 2019 and celebrated the end of 400-year-old issue of Lord Ram’s Place of Birth. The Parishad also elected me to serve as the General Secretary of its Bahraich unit.

Saturday 9 November 2019

Ram Janm Bhoomi


Another impossible possible became.The SC verdict on Ram’s Place of Birth issue is impartial, fair and acceptable by all of the parties. It is neither against anyone nor in favour of anybody – Lord Ram, who has ever been the identity of India, got back the land where he was born. It has never had anything to do with Hindus nor with Muslims; it has been the issue created by politics. The Supreme Court has plucked Ram from the whirlppol of politics today and put an end to the 400-year-old contentious issue. However, the constructive contribution of the Modi Government to it cannot be ignored. The Prime Minister has been dealing with the controversial issues one by one successfully only because his system of governance is based on integrating the parts of society into a coherent whole. In a divided society it could not have been possible. Saturday, 09 November 2019

अयोध्या में राम जन्म भूमि वनाम बाबरी मस्जिद लगभग चार शादियों से हिंदू और मुस्लिम के बीच विवाद का कारण थी |

कितने मौत के घाट उतर गये,
कितनों के घर द्वार उजड़ गये |

यह मसला भारतीय राजनीति को हमेशा से प्रभावित किए हुए था |

सर्वोच्च न्यायालय ने न हिन्दू का न ही मुसलमान का पक्ष लिया,
उसने तो इस ऐतिहासिक फ़ैसले से बीमार भारत को स्वस्थ किया |

यह फ़ैसला भावी राजनीति में संप्रदायिक प्रदूषण को कम करने में निश्चित ही सहायक होगा |
जो लोग मोदी सरकार पर हिन्दूवादी होने का आरोप लगाते हैं मेरी समझ से उनकी समझ सही नहीं है क्योंकि यह सरकार दो मुख्य संप्रदायों के बीच तनाव पैदा करने वाले सभी मुद्दों को चुन चुन कर समाप्त कर रही है |

अपने अपने धर्म समझ है अपनी अपनी
आप रखो अपनी रखने दो हमें अपनी |

फिर यदि निर्मल हृदय हो और भारतीय होने में गर्व हो तो आओ साथ साथ कहो :

हम हैं आज़ाद और हम हैं अशफ़ाक
किन्तु हमारे बस एक ही हैं माँ बाप |

Sunday, 10 November 2019

2019 has brought hope and happiness in India: the beginning of change, a new dawn. This chapter will shine gloriously golden in the blue of our country’s history. Everything is possible if there is Modi. Parliament passed a record high Bills and Resolutions, all in the public interest, this year. Lord Ram has lived in exile for centuries. Finally, the period is over now. He will have a grand palace built on the same place where He was born. May the Modi Government live long! Monday, 11 November 2019