Tuesday 10 November 2015

Diwali

(A beautiful view of the grounds of Kisan Post Graduate College, Bahraich, which was decorated by the young cricketers of Thakur Hukum Singh Cricket Association on the eve of Deepawali.) 

Today is Deepawali, a festival of ecstasy, a celebration of Ram Raj. Happy Deepawali!

Who will light lamps and candle,
Who will play crackers
Who has got to dance and sing
In honour of the Creator?
Come on, brothers –
Be you all happy!
Through the years ahead
Dilwali bring you Peace and prosperity! 

The universes are the different rooms of Ram’s palace. The day He built them with matter, enlightened them with the suns, gave music with different sounds, perfumed them and made them pleasant with various tastes was later on named as Deepawali. He celebrates the anniversary of His creation and wants us to be happy and to sing and dance on this day. Friends, brothers, sisters, everyone, come on – let us enjoy His bounties on the Earth, but nicely and gently because we often pass over the happiness of the animals in our excitement. They get frightened of noise, colour and light; particularly, pets get stressed out, confused and injured by our crackers. Thousands of them singe and many of them leave their master’s home every year. After all, they too are the creation of God. I hope we will not let evil overpower good and enjoy everything today without ignoring the effects of our fun with fireworks on other people and animals.

Deepawali symbolizes the restart of business and activity, the influx of prosperity and the desire to spread spiritual light, understanding, love and peace to the world around; and we, being encouraged by such feelings, adorn the earth like heaven graces a dark midnight sky. On this divine day today, let’s light a lamp of righteousness, though it may be tiny, in the atmosphere shrouded by the darkness of broken humanity – hatred, jealousy, greed, lust, cunningness, corruption and all – and let’s grow in prosperity, not alone but with brothers.

Deepawali-Deeps symbolize the knowledge that we need to force up into the society for the well being of all animals, plants and man. Diwali also represents the development of decency and justice, for Ram Raj was established on this day, obliterating the despotic rule of Rawan. When Lord Ram sat on the throne, he was greeted by the cheers of ecstatic people. There was no trace of bigotry, intolerance, extremism etc; they all became rich, intelligent, talented and decent; and no one ever liked to deceive anybody. May this Deepawali make the world make sensible judgements, so they live in peace and harmony with themselves and with those around them!

 राम राज बैठे त्रयलोका | हर्षित भये गये सब सोका ||
बयरु न कर काहू सन कोई | राम प्रताप विषमता खोई ||
नहि दरिद्र कोऊ दुखी न दीना | नहि कोऊ अबुध न लच्छन हीना ||
सब निर्दंभ धर्म रत पुनी | नर अरु नारि चतुर सब गुनी ||
सब गुनग्य पण्डित सब ज्ञानी | सब कृतग्य नहि कपट सयानी ||

‘People are busy preparing for Deepawali and you’re sitting under this tree meditating, boy?’ asked the Brahman.’Shriman, I’ve no house to wash. Nor lamps and candle, nor any fireworks either’ replied the boy. ‘However, I’ve have a big heart which I wash and illuminate for Shri Hari and Mata Laxami.’ ‘Chandragupta,’ cried Kautilya, ‘I’ve a crown for you!’

आभाव से संपन्नता के प्रति प्रयत्न में आनंद है | संपन्नता में उत्सव का दिन और सामान्य दिन एक सा लगता है | तमाम ऐसे धनवान होंगे जो अदभुत प्रकाश, मिठाइयां और बिचित्र पटाखों के बीच उदास बैठे होंगे वहीं एक गरीब एक दिया में मस्त होगा | भगवान ने किसी को कुछ दिया है और दूसरे को कुछ

Monday 9 November 2015

The Sun Set


As the ruby-red sun sets,
The blonde-fair full faced moon
Rises at the other end.
He says, “O, the yellow-blue calm sea!
Look, I’m the same as I was a month ago.”
The sea soon turns scarlet-gold,
With her waves leaping up
In an effort to kiss the moon.
The dawn ends everything the next day.
The universe becomes white blue again
As the sun shoots up in the deep sky.
Poets read between each change.

-                                                                                                                                                                      -  Ramesh Chandra Tiwari

Dhanteras


All that exists in the world is useful and helps us survive. What is useful is valuable and everything that is valuable is wealth which is called Mahalaxami, the consort of Narain, who like a king rules the universes and enforces immutable laws favourable to the entities in terms of their survival and lust for life. The entities that make a universe take shape and grow and in doing so they need something to live on. This need is the mother of business which is symbolized as Bhagwan Ganesh. Maa Laxami and god Ganesh represent wealth so they are the life and the breath of every being. Since our business speeds up from the month of Kartik on, we worship Maa Laxami and Buppa Ganesh and observe Dhanteras, praying to them for prosperity.

There is nothing in this world whose novelty does not wear off, but money is the exception that we never become bored with. It means the only beautiful thing that the world has ever had is money because it a joy forever. May Mata Mahalaxami and her loving son Mahaprabhu Ganesh make our business prosper, bring us success and shower us with health wealth and happiness!  
Happy Dhanteras, everyone!

धनतेरस के पावन पर्व पर मैं अपने सभी प्रिय मित्रों को सपरिवार शुभ कामनाएँ प्रेषित करता हूँ ! हम भगवान गणेश और माँ लक्ष्मी की अनुकम्पा का सदैव अभिषेक करते रहें !    

Saturday 7 November 2015

जै मैया !




माँ के आँचल में पलते पर

उसको अलग समझते हैं

माँ के दर्शन उनको होते

माँ भक्ति जो करते हैं



सागर तेरे चरण धुलें माँ

चँवर डुलावे पुरवाई

दिशा दिशाएं कीरति गावें

वन बागों की शहनाई

धरती पर सब तेरे बच्चे

उछल-कूद माँ करते हैं

माँ के दर्शन उनको होते

माँ भक्ति जो करते हैं



सारा नभ दरबार सज़ा माँ

सूर्य चंद्र से आलोकित

निशा दिवस पहरे देते हैं

तारों से मण्डप शोभित

मेघों के संगीत सुहाने

मन मोहित कर लेते हैं

माँ के दर्शन उनको होते

माँ भक्ति जो करते हैं



माँ के आँचल में पलते पर

उसको अलग समझते हैं

माँ के दर्शन उनको होते

माँ भक्ति जो करते हैं

- रमेश चन्द्र तिवारी

Tuesday 3 November 2015

आचार्य प्रवर महामंडलेश्वर युगपुरुष श्री स्वामी परमानन्द गिरी जी महाराज द्वारा प्रवचन - प्रस्तुति रमेश चन्द्र तिवारी



गुरुवार, 29 अक्तूबर 2015

दिनांक 29-10-2015 को प्रातः 6.00 बजे आचार्य प्रवर महामंडलेश्वर युगपुरुष श्री स्वामी परमानन्द गिरी जी महाराज बहराइच आ गये तथा 30वाँ 'भक्ति योग वेदांत संत सम्मलेन’ हीरा सिंह लान, बहराइच में पूज्य साध्वी चैतन्य सिंधु के संचालन में प्रारंभ हो गया | सुबह 6=00 बजे से 7.30 तक योग साधना की शिक्षा तथा शाम 6.00 बजे से 9.00 तक संतो द्वारा भजन, कीर्तन तथा प्रवचन होता रहा | यह कार्यक्रम 01-11-2015 तक चला |

पूज्य श्री महाराज जी ने कहा कि सत्संग में या अन्य कहीं भी शब्दार्थ की व्याख्या से विवाद पैदा होते हैं | अतः लोगों को चाहिए कि वे शब्दों के उद्देश्य पर ध्यान दें | ऐसा करने पर स्वस्थ सोच की उतपत्ति होती है और मिथ्या प्रपन्च से बचा जा सकता है | अकसर लोग प्रवचनों में कहे गये शब्दों पर तर्क करके धार्मिक लड़ाइयाँ कर लेते हैं जबकि यदि वे उसके अभप्राय पर ज़ोर दें तो एक दूसरे के आपसी विरोध के बजाय समाज सदभावना पूर्ण ढंग चल सकता है | सत्संग का उद्देश्य जीवन की प्राप्ति है न कि उसके नाम पर लड़ाई | उन्होने इस सन्दर्भ में एक कहानी सुनाई और कहा कि एक माँ ने अपने बच्चे से कहा कि बेटा दही को कौओं से बचाना तब तक मैं आ रही हूँ | बच्चे ने दही को कौओं से बचाया | लेकिन जब माँ आई तो वह आश्चर्य में पड़ गयी क्योंकि बर्तन में दही नहीं था | उसने बच्चे से पूछा दही का क्या हुआ ? बच्चे ने जवाब दिया कि एक कुत्ता उसे चट कर गया | इस पर माँ ने कहा उसे क्यों नहीं रोका ? उसने उत्तर दिया आपने ऐसा करने को नहीं कहा था |

शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2015

सम्मेलन में उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए युग पुरुष स्वामी परमानंद जी महाराज ने आज दार्शनिक विषय पर प्रकाश डाला | उन्होने कहा कि श्रद्धा वह जगह है जहाँ प्रवचन ठहरता है और अहंकार वह टीला है जो प्रवचन रूपी वर्षात में बह जाता है | जब भगवान को तारना होता है तब वे गुरु बनकर आ जाते हैं, जब रक्षासों को समाप्त करना होता है तब भी भगवान अवतार लेते हैं, परंतु सृष्टि चलाने के लिए भगवान अवतार नहीं लेते | इसी तरह जिसको मुक्ति की इच्छा होती है उसे मनुष्य देह देते हैं क्योकि मनुष्य आहार, निद्रा, भय, मैथुन तो पशुओं की तरह ही करता है किन्तु विवेक, वैराग्य, षट् संपत्ति और मुमुक्षा के स्तर पर वह पशुओं से भिन्न होता है और यही वे मार्ग हैं जो मोक्ष प्रदान करते हैं | उन्होने धर्म की व्याख्या करते हुए कहा कि ईश्वर ने अलग-अलग लोगों को अलग-अलग कार्य सौपे हैं | अतः अपने कर्तव्य का पालन करना भी धर्म है | पशु भार्यागामी नहीं होते रितुगामी होते हैं जबकि मनुष्य भार्यागामी होते हैं रितुगामी नहीं | अतः जो शादी करके प्रजनन क्रिया करते हैं वे धर्म पालन करते हैं और जो विवाह के वगैर यह कार्य करते हैं वे अधर्म करते हैं | धर्म पूर्वक प्रजनन कार्य भी ईश्वर की सेवा है | लोग माँस खाने पर बड़ा विवाद कर रहे हैं | हमारे शास्त्र ने हमें माँस खाने की छूट नहीं दी है | फिर भी कुछ लोगों को माँस खाने की स्वतन्त्रता है क्योंकि उनके कर्तव्य पालन में उसकी आवश्यकता है | इसी तरह हमारे शास्त्रों ने अलग-अलग कार्यों के स्वभाव के अनुकूल अलग-अलग जीवन पद्ध्यति निर्धारित की है | शास्त्र यह नहीं कहता कि जहाँ सत्य बोलने से अकल्याण हो रहा हो वहाँ भी आप सत्य बोलो | वस्तुतः जितना समाज को बोलने से हानि हुई है उतना न बोलने से नहीं हुई है | सवाल यह नहीं है कि आपकी बोली कैसी है सवाल यह है कि आप बोल क्या रहे हो | वाण से व्यक्ति बच सकता है परंतु वाणी से नहीं |

सम्मेलन में साध्वी समन्युनिता ने भजन प्रस्तुत कर श्रोताओं को भक्ति रस से ओत-प्रोत कर दिया | परम विदुषी श्रीमद् भागवत व्यास साध्वी सत्यप्रिया जी ने कहा कि परमात्मा सर्व व्यापक है पर वह उसी तरह दिखाई नहीं देता जैसे दूध में घी दिखाई नहीं देता | अब जैसे मंथन से घी प्रकट होता है उसी तरह श्रवण, मनन, ध्यान, भक्ति से भगवान प्रकट होता है |

स्वामी ज्योतिर्मयानंद जी महाराज ने कहा कि एक से बहुत की इच्छा परमात्मा की इच्छा है और इसी से संसार का सृजन हुआ है | नल के नीचे कोई पात्र रखा हो और पानी तेज़ी से निकल रहा हो तो पात्र भर जाता है | परंतु पात्र तब भी भरता है जब नल से एक-एक बूँद पानी गिर रहा हो | यदि हम धीरे-धीरे ईमानदारी पूर्वक धनार्जन करें तो धनवान हो सकते हैं | इसी तरह यदि हम धर्म पालन की कोशिश करते रहें तो जीवन के उत्तरार्ध में धर्मात्मा हो सकते हैं और असंभव नहीं है हम अंततः परमात्मा भी हो सकते हैं |

कानपुर से पधारे प्रोफ़ेसर प्रेम चंद्र मिश्र, योगीराज मानव जीवन के लक्ष्य का दिगदर्शन करते हुए आज लोगों को पातंजलि योग के विभिन्न आसनो की शिक्षा दी और कहा कि स्वस्थ व्यक्ति में ही ज्ञान का उत्सर्जन हो सकता है और ज्ञान ही मोक्ष का मार्ग है | जनपद निवासियों ने प्रातः बड़े ही लगन से योग शिक्षा प्राप्त की |

शनिवार, 31 अक्तूबर 2015

पत्रकारों से वार्ता करते हुए पूज्य महाराज श्री ने कहा कि कामना के बेग में नियम और क़ानून की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए | प्रबल इच्छा पर नियंत्रण न रख पाने की स्थिति में उसका लाभ दूसरे लोग उठा लेते हैं | इसलिए जो अपनी कामना के वेग में बह जाते हैं वे मूर्ख होते हैं | वस्तुतः, कामना का त्याग ही आध्यात्म है | आकांक्षाओं की पूर्ति बुद्धि का विषय है जो मन और इंद्रियों की तरह यंत्र नहीं है | अतः बुद्धि को विवेक से नियंत्रित करना चाहिए |

‘महाजनों जेन गतो सपन्था’ को उद्धृत करते हुए उन्होने आगे कहा कि भीड़ को देखकर निर्णय नहीं लेना चाहिए | दुनिया में गिने-चुने ही लोग हैं जिनका अनुकरण करने योग्य होता है |

आजकल राजनीति में बहुचर्चित गोमांस के विषय पर पूछे गये सवाल पर गुरुदेव ने कहा कि माँसाहारी जीवों की शारीरिक बनावट शाकाहारियों से भिन्न होती है | माँसाहारियों के दाँत, आँत या शरीर के अन्य अंग शाकाहारियों की तुलना में अलग ही होते हैं | अब यह विषय विज्ञान की कसौटी पर सिद्ध करने का है कि माँस खाने से मनुष्य को किस सीमा तक हानि पहुचती है |

गुरुदेव ने यह भी बताया कि वे अपने प्रथम आश्रम जो कि सीजई छतरपूर (मध्य प्रदेश) में है वहाँ 22 नवम्बर को सामूहिक विवाह संपन्न कराने जा रहे हैं जिसमें लगभग 45 जोड़ों की शादियाँ होंगी |

हीरा सिंह लान, बहराइच में चल रहे भक्ति योग वेदांत संत सम्मेलन में श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए परम पूज्य सद्गुरुदेव स्वामी परमानंद जी महाराज ने कहा भगवान ने अपनी दुनिया को चलाने के लिए सबको बाँध कर रखा है | कर्म हमें बंधन में ले जाता है और कर्मों का फल हमें भोगना ही पड़ता है, परंतु कर्म फल भोगना न पड़े इसका उपाय केवल मनुष्य ही कर सकता है | गीता में कर्म को ही धर्म कहा गया है | कर्म के फल को शुभ कार्य या अशुभ कार्य निर्धारित करते हैं | ज्ञानी व पशु दोनो ही कर्म के कर्ता नहीं होते और जो कर्म का कर्ता नहीं है वह न धर्म करता है और न ही अधर्म | कर्म को तीन भागों में बाँटा गया है: क्रियमान, संचित और प्रारब्ध | इसमें से प्रारब्ध कर्म का वह भाग है जो एक जीवन के अंत में अगले जन्म में भोगने के लिए शेष रहता है | दूसरी ओर हमें अपने प्रारब्ध का ज्ञान भी नहीं होता इसी को हम अपना भाग्य मान लेते हैं | फिर भी अपने कल्याण की बात यदि समझ में आ जाए तो समझ लीजिए सब कुछ समझ आ गया | राम कथा सारे सन्सय को दूर करने वाला है जिसे महाराज तुलसी दास जी कहा है “ राम कथा सुंदर कर्तारी सन्सय विहग उड़ावन हारी |”

अंत में गुरुदेव ने साधुओं की अच्छी ख़ासी आलोचन भी की और कहा कि लाखों लाख साधू प्रचार में फँस जाते हैं उन्हें ब्रह्म ज्ञान का ध्यान ही नहीं रहता | भगवान ने ऐसा बनाया है कि कहीं तुम उसकी दुनिया में अपनी भूमिका से बच न सको | साधू साधू से जलता है और साधुओं के पास वेवकूफ़ बनाने के अतिरिक्त और कोई धंधा नहीं है | अतः जो लोग अपनी गृहस्ती धर्म के नियमों के अनुसार चलाते है उनकी भगवान से कुछ अटकी नहीं होती | वह तो यह कह सकता है कि हमारी अटकी नहीं उसकी अटकी होगी तो वह हमें अपने पास बुला लेगा |

स्वामी ज्योतिर्मायानंद जी महाराज ने निम्न श्लोक पढ़ते हुए जीवन के चार आयामों में मनुष्य के विभिन्न कर्तव्यों पर प्रकाश डाला और निष्कर्ष में कहा पून्य से चित्त शांत होता है |

प्रथमें न अर्जिता विद्या, द्वितीयम न अर्जितम धनम

तृतीय न अर्जितम पुण्यम, चतुर्थे किम करिस्यती |

साध्वी सत्य प्रिया दीदी व समनुयिता दीदी ने बांके बिहारी के प्रेम में भाव पूर्ण भजन गाकर श्रोताओं के मानस को भक्तिमय कर दिया |

योगीराज प्रोफ़ेसर प्रेम चंद्र ने प्रातः व्यक्तित्व के सर्वांगीन विकास के लिए अष्टांग योग का प्रशिक्षण कृतमक रूप से दिया | उन्होने कहा आसान, प्रायाम और ध्यान साधना के द्वारा शारीरिक, मानसिक और अध्यात्मिक विकास होते हैं |

रविवार, 1 नवम्बर 2015

बहराइच जनपद के तहसील महसी में खम्हरिया शुक्ल नाम का एक गाँव है जहाँ पूज्य गुरुदेव स्वामी परमानंद जी महाराज की कृपा से 'स्वामी परमानंद शिक्षा निकेतन' नाम के एक विद्यालय की अब से करीब दस वर्षों पहले उसी गाँव के निवासी श्री शुक्ल जी के द्वारा महाराज को दान में दिए गये एक भू खंड में एक झोपड़ी के रूप स्थापना हुई थी | धीरे-धीरे विद्यालय का विकास हुआ और अब इस विद्यालय में भव्य भवन, बाग, खेल का मैदान इत्यादि सब कुछ है | विद्यालय में 12 अध्यापक हैं और लगभग 300 बच्चे निःशुल्क विद्या प्राप्त कर रहे हैं | विद्यालय में अभी प्राथमिक स्तर तक की कक्षाएँ चल रही हैं |

विद्यालय ने आज अपने संस्थापक स्वामी परमानंद जी महाराज की अध्यक्षता में अपना वार्षिकोत्सव बड़े ही धूम-धाम से मनाया | विद्यालय में ऐसी भीड़ जुटी कि मानों वहाँ कोई बहुत बड़ा महोत्सव होने वाला हो और स्वामी परमानंद जी महाराज की जै घोस के साथ पूज्य गुरु विद्यालय पहुचे | संगीत शिक्षक श्री आशुतोष पांडे के निर्देशन में विद्यालय के छोटे-छोटे छात्रों ने बड़े ही सुंदर सास्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए जिसमें गुरु बँदना, सुदामा एकांकी, राजा हरिशचंद्र एकांकी, गणपति बप्पा लोक नृत्य, हिन्दी व अँग्रेज़ी में भाषण, रमेश चंद्र तिवारी द्वारा रचित ‘सच्चा वीर. नामक कविता का पाठ शामिल हैं | बच्चियों ने लोकगीत एवं लोकनृत्य का अद्भुत प्रदर्शन किया | विशेष बात यह थी कि एक बच्चे ने ही इन कार्यक्रमों का संचालन किया |

बच्चे द्वारा हिन्दी में दिया गया भाषण:

परम पूज्य वन्दनीय श्री गुरुदेव जी महाराज के पवित्र चरणों में हम सभी विद्यार्थियों का शत-शत नमन, और देश के विभिन्न जनपदों से पधारे पूज्‍यनीय संतों को प्रणाम |

अखण्ड परंधाम समिति के सम्मानित पदाधिकारियों, सदस्यों, उपस्थित श्रद्धेय अतिथि गण, हमारे अविभावक गण तथा विद्यालय के आदरणीय अध्यापक श्रेष्ठ,

आज ईश्वर तुल्य गुरुदेव जी महाराज के दर्शन करके हम सभी कितने अविभूत हुए हैं इसकी अभिव्यक्ति हम नहीं कर सकते | यह उनका आशीर्वाद है कि हममें ज्ञान का सूर्य शनैः-शनैः उदित हो रहा है | हम उनके आभारी हैं परंतु यह कहना उचित नहीं होगा क्योंकि हममें उनके प्रति इतना स्नेह है कि अन्य सारी चीज़ें मात्र औपचारिकता प्रतीत होती हैं | इस उपेक्षित ग्रामीण अंचल के बच्चों के लिए यह विद्यालय वरदान है | यहाँ सभी वर्ग और समुदाय के बच्चे एक साथ इस तरह शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं कि मानों वे सभी एक परिवार के हों | भेदभाव रहित पूर्ण भारतीयता का वातावरण यदि कहीं है तो सबसे पहले इस विद्यालय में क्योंकि इसे गुरुदेव का आशीर्वाद प्राप्त है | देश में इसी तरह अन्य विद्यालयों को, योगालयों को, चिकित्सालयों को, गौशालाओं को, गुरुदेव की कृपा ने जन्म दिया है | विशेष बात यह है कि उनके सारे प्रकल्प मुख्य रूप से उनको लाभ पहुचा रहे हैं जो अन्यथा इन सूबिधाओं से वन्चित रहते | ईश्वर सबका है अतः हमारे गुरुदेव हम सबके हैं |

गुरुदेव, हम आपको आश्वस्त करते हैं कि हम भारत के श्रेष्ठ नागरिक बनेगे और हम अपनी क्षमता व विशिष्टता को इस स्तर तक ले जाएँगे जहाँ हम देश पर गर्व करेंगे और देश हम पर | सारांश में कहें तो हम राष्ट्र उत्थान के प्रति आपके प्रयास को निरर्थक नहीं जाने देगे |

अंत में मैं आप सभी महापुरुषों को प्रणाम करते हुए अपनी बात समाप्त करता हूँ |

बच्चे द्वारा अँग्रेज़ी में दिया गया भाषण:

Before I start my speech, I would like to venerate our pujy Gurudev.

Respected guests, office bearers and members of Akhand Param Dham Samiti, our guardians and teachers,

We feel elated to see our most revered Gurudev and are extremely grateful to him for his blessings that he has given to this temple of knowledge. Our gurudev is the embodiment of God because he loves us and cares for us like God does for His offspring. We are growing with new information everyday which we would be deprived of if it were not for him. Here I would like to read a few lines in his honour:

A lovely garden though we had,

Sweet, sweet voices made us mad,

Yet all was dark – oh, dark, dark, dark!

But soon we tried all around us to mark.



Grateful are we to our parents

And grateful are we to our friends,

But we know not how to say a thank

To the man who filled us with the light vibrant.

- By Ramesh Tiwari

We also make a commitment to be a good citizen of our country and to bring her pride by our distinct contribution to national unity and nation building.

Thank you all very much!

गुरुदेव ने भाग लेने वाले बच्चों को पुरस्कृत किया और अपने संबोधन में कहा कि वैराग्य के बाद उन्होने निर्णय लिया था कि वे पैसों को कभी नही छुएँगे किंतु जब उन्हें लोगों के कष्ट का आभास होना प्रारम्भ हुआ तब उन्होने अपना निर्णय बदलकर लोगों से जो मिला उसे लेना प्रारम्भ कर दिया और उस रकम को उन्होने उन प्रकल्पो में खर्च किया जो वन्चित लोगों को सहयोग करते हैं | साधु वही है जो किसी के कष्ट का आभास करता है | उन्होने विद्यालय को सहयोग करने वाले शहर बहराइच के लोगों को धन्यबाद ग्यापित किया और कहा कि यह दुनिया भगवान का संकल्प है जो भी इसके चलने में अपनी आहुति देते हैं वे भगवान का कार्य करते हैं |

सोमवार 2 नवम्बर 2015

भक्ति योग वेदांत के अंतिम सभा को संबोधित करते हुए पूज्य सद्गुरुदेव स्वामी परमानंद जी महाराज ने कहा कि मनुष्य को बहुत कुछ याद नहीं रहता परंतु ईश्वर कुछ नहीं भूलता | दुनिया की आँख से से हम अपने को बचा सकते हैं परंतु ईश्वर की आँख से नहीं | निर्गुन सबके अन्दर विराजमान है वही सबका साक्षी है | तुम अपने मन की बात जान सकते हो दूसरे की नहीं, तुम्हें दूसरे के कर्म तो दिखाई पड़ते हैं परंतु उसके इरादे नहीं, तुम अपने स्वप्न को देख सकते हो दूसरे के नहीं इसलिए तुम केवल एक क्षेत्र के क्षेत्रग्य हो | ईश्वर सभी क्षेत्रों का क्षेत्रग्य है सबका दृश्य प्रकाशक है | भगवान अंतर्यामी है और तुम केवर बाहरयामी हो | हमें सबसे ज़्यादा यदि कोई धोखा देता है तो वह हमारा मन है | इसी प्रकार तुम एक देह को अपना गुरु समझते हो और उससे कुछ न कुछ छिपाने की कोशिश करते हो लेकिन तुम उस गुरु से सदैव अन्भिग्य हो जो तुम्हारे अन्दर भी है और बाहर भी जिससे तुम कुछ नहीं छिपा सकते | एक देह तो कुछ वर्षों का होता होता है लेकिन जो दृष्टा है वह आदि और अनंत है | जब तुम शरीर को देखते हो तब तुम अभिमानी होते हो वहीं जब तुम ईश्वर को देखते हो तब ब्रह्म ज्ञानी हो जाते हो | इसलिए समझने की आवश्यकता है कि मैं तो अनादि हूँ अनन्त हूँ, मै अभौतिक हूँ चैतन्य हूँ | पूज्य महाराज श्री ने आगे कहा बच्चा जन्म ले इसमें तुम्हारा हाथ नहीं है, उसका लालन पालन भी तुम नहीं कर सकते | खाते तुम हो पर पाचाने का काम तुम नहीं करते | इसलिए प्रकृति के अतिरिकत और कोई कर्ता नहीं है | आप जी रहे हो यह आपको पता है लेकिन आप न मरो यह आपके बस में नहीं है | जागना, सोना दोनों तुम्हारे बस में नहीं है वह तो हमारे परम पिता हैं जो हमें जागते और सुलाते हैं | जब तुम्हें भूख लगती है तब तुम खाने के लिए मजबूर हो जाते हो - कुछ तो आपके हाथ में नहीं है और जब सब कुछ उसके हाथ में है तो उससे राज़ी हो जाओ – वह तुमसे अलग नहीं है | उसके अनुसार रहोगे तो वह तुम्हें ठीक से रखेगा | प्रार्थना करो हे प्रभु, हम वही करें जिसके लिए हमें आपने भेजा है |

भक्ति योग वेदांत की आज अंतिम सभा थी श्री मोहन लाल गोयल ने सभा के अन्त में धन्यबाद ग्यापित किया | सभी श्रद्धालुओं ने प्रसाद लिया और राम राम कहते हुए घर वापस चले गये |

प्रस्तुति रमेश चन्द्र तिवारी


                                                       

Sunday 1 November 2015

The Poverty Trap



Click on the link http://www.the-criterion.com/V6/n5/Ramesh.pdf and read ‘The Poverty Trap’, a very interesting short story by me, which has been published in ‘The Criterion: An International Journal in English’. Hard work is fundamental to success but responsibility, self-restraint, determination and logical mind are four vital keys to it. Since wasters lack these qualities, poverty tags along with them. And if someone comes forward to alleviate their misery, they are certain to be disappointed because no one on the earth can do it unless they provide them lifelong support.

एक मेहनती पुत्र अपने परिवार को ग़रीबी के फंदे से उबारने के असफल प्रयास के पश्चात इस निष्कर्ष पर पहुचता है कि कठिन परिश्रम सफलता की कुंजी अवश्य है परंतु यदि साथ-साथ आत्मनियंत्रण, पक्का इरादा और तर्क शक्ति का आभाव है तो कुछ नहीं किया जा सकता | चूँकि ख़र्चीले स्वभाव वाले व्यक्तियों में इन गुणों की कमी होती है इसलिए ग़रीबी उनका साथ नहीं छोड़ती | यदि कोई उनका सहयोग भी करना चाहे तो उसे निराश ही होना पड़ेगा | यह सब कैसे हुआ जानने के लिए नीचे दिए गये लिंक को क्लिक करें और अभी जल्दी ही प्रकाशित मेरी ‘पावर्टी ट्रैप’ नामक कहानी को पढ़ें: