Thursday 31 December 2015

Happy New Year,



I wish your hearts, my friends, go erupting like a volcano this New Year, with magma of desire blasting out through the clogged vent of days gone by and with red-hot lumps of love, scorching fame, molten achievements and clouds of joy and mirth being spewed out.

On the carousel of time the day of birth repeats,

A Sunday jaunt takes me where we did once meet,

A photograph in a pile holds my hand to halt,

Over the wall of my memory a face oft does vault,

An old song on the radio robs me so well of my soul

That I feel nothing but a throb across the inner whole.

I find a sweet smell around everywhere I thus go past.

Pieces of love I still have, though my love I have lost.

O god! Raise the same love for my country in me,

So this New Year with each bit of it I could delighted be.

Years divide the period of our life and thus give us fresh chance to start with a better plan, skill, experience, enthusiasm and mind-set. Let us determine to reform and be practical rather than sentimental in all our approach.

This New Year, may my country

Grow like the rich field of wheat,

Brighten in awareness like the day light,

Walk on through the valleys of time like an April river,

Lead the world to the lofty plateau of bliss like a saint,

And be safe on the palm of almighty Father!

May all of us delight in one another’s happiness!

Happy New Year, my dear, dear friends!
Ramesh Tiwari

Saturday 26 December 2015

धर्म



मैने ऐसे बहुत से लोगों के विचार सुने हैं जो धर्म के नाम से चिढ़ते हैं | किंतु यदि उनकी भावना को झाँकें तो लगेगा कि उनकी यह प्रतिक्रिया ग़लत नहीं है क्योंकि आज या कभी भी धर्म के नाम पर समाज का जितना भला हुआ है उससे कहीं अधिक नुकसान हुआ है | अब देखना यह है कि सांप्रदायिकता या सांप्रदायिक हिंसा का कारण धर्म है या उससे जुड़ी कोई दूसरी चीज़ जो निरन्तर घृणा का कारण बनती रही है | अब यहाँ पर ज़रूरत है यह जानने की कि धर्म है क्या | संस्कृति में धर्म की सबसे पूर्ण और सटीक परिभाषा है: ‘धारयेति इति धर्मः’ अर्थात जो धारण करने (अपनाने) योग्य है वही धर्म है | या यह कह लीजिए कि वह सब कुछ करना धर्म है जो अपने सहित सबके लिए कल्याणकारी हो: जैसे सहायता करना, सेवा करना, सत्य बोलना, दया करना, मिलजुल कर रहना आदि, आदि | यहाँ हम इस तथ्य पर पहुचते हैं कि धर्म मानवताबादी कार्यों की वकालत करता है जो किसी भी सूरत भेद-भाव उत्पन्न नहीं करता और न ही उसके पालन में किसी तरह की हिंसा की कोई गुंजाइश है | फिर क्यों धर्म के नाम पर सदभावना समाप्त होती है और हिंसा भड़क जाया करती है ? इस प्रश्न का उत्तर निकालने पर यदि विचार किया जाय तब यह निकल कर आएगा कि धर्म का पालन करने या कराने के उद्देश्य से विश्व के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग मार्ग तलासे गये जिन्हें पंथ कहा जा सकता है वे ही सारे विकार की जड़ हैं क्योंकि उसमें अलग-अलग वेश भूषा, पहनावा सहित ईश्वर आराधना के अलग-अलग तरीके निर्धारित किए गये और उन पर भौगोलिक, सामयिक और सामाजिक सभ्यता की असमानता का भी पूर्ण प्रभाव पड़ा | अब चूँकि हर पंथ एक दूसरे से भिन्न हो गये, इसलिए पूरा मानव मात्र विभिन्न संप्रदायों में बँट गया और हर संप्रदाय के लोगों में अपनी श्रेष्ठता का अहंकार पैदा हो गया |

धर्म और पंथ में क्या भेद है ? धर्म मानव के कई पीढ़ियो से विभिन्न विचारकों द्वारा प्रतिपादित सामाजिक नियमो का संग्रह है | पंत वह पध्यति है जिसे एक प्रभावशाली व्यक्ति किसी धर्म के कुछ नियमों को अपने अनुसार संशोधित करके तैयार करता है और अनुयायी बनाकर उन्हें एक विशेष जीवन शैली में जीने के लिए प्रेरित करता है | अर्थात, धर्म समाज से उत्पन्न होता है और पंथ किसी एक व्यक्ति से, धर्म किसी विशेष जीवन शैली के लिए बाध्य नहीं करता जबकि पंथ बाध्य करता है, धर्म परिवर्तन के लिए या नये विचारों को शामिल करने के लिए समाज को स्वतंत्र रखता है जबकि पंथ में कोई चीज़ नयी जोड़ने की कोई स्वतंत्रता नहीं होती | सरकार यदि बाबा राम रहीम के साम्राज्य को समाप्त न करती तो धीरे धीरे यह भी एक नया पंथ बना लेता जो शताब्दियों तक चलता रहता | यही कारण है कि संसार में धर्म तो एक है परंतु पंथ अनेक हैं |

विभिन्न पंथ में निहित अहंकार से समाज को बाँटने का काम राजनीति में बहुत समय से होता रहा है जिसका परिणाम कभी युद्ध, कभी गृहयुद्ध के रूपों में देखा गया है | इसके अतिरिक्त एक पंथ के अनुयायी दूसरे पंथ के अनुयाइयों के साथ रहने में असहज और असुरक्षित महसूस करते हैं क्योंकि वे एक दूसरे पर भरोसा नहीं करते | यही कारण है कि किसी भी देश का बहुसंख्यक किसी अन्य पंथ के अनुयायी शरणार्थी को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं होता | कुल मिलाकर, प्रत्येक पंथ की पृष्ठभूमि पर जो भी सार्वभौमिक और सनातन है, या सभी पंथों में स्थित वह भाग जो समरूपी है केवल वह ही धर्म है जो कि प्रेम का जनक है न कि घृणा का | यदि पंथ न होता, मात्र धर्म होता तो कोई समस्या न होती |

Sunday 6 December 2015

A No-Party Democracy

‘Galaxy: International Multidisciplinary Research Journal’ published one of my essays ‘A No-Party Democracy’. Read it and get a new idea about democracy. Just click on the link below to open the journal:

It is expected that no matter which of the parties wins, both sides must tolerate one another and acknowledge that each has a legitimate and important role to play and agree to cooperate in solving the common problems of the society. But the parties deliberately avoid serious discussions and choose to present a show of cussing and shouting at each other with a view to disrupting the working of the incumbent. 

आज ही प्रकाशित मेरा एक निबंध ‘A No-Party Democracy’  पढ़िए | इस निबंध में प्रजातांत्रिक प्रणाली पर एक नया तर्क प्रस्तुत किया गया है | आज विभिन्न पार्टियाँ प्रजातंत्र में बहुत सी समस्याएँ पैदा कर रही हैं | जनता के हाथ अब कुछ नहीं रह गया है | ऐसे में पार्टी विहीन प्रजातंत्र में जनता का सरकार पर संपूर्ण नियंत्रण और उसका संपूर्ण प्रतिनिधित्व कैसे हो सकता है जानिए | निम्न लिंक पर क्लिक करें:
http://www.galaxyimrj.com/V4/n6/Ramesh.pdf